March 29, 2024

ध्यान कक्ष की शोभा देखने पहुंचे डीएवी स्कूल के विद्यार्थी

Faridabad/Alive News : प्रमुख पर्यटक स्थल ध्यान कक्ष की शेभा देखने आज गुरुग्राम के डीएवी स्कूल के छात्र-छात्राएं पहुंचे। ध्यान-कक्ष की बनावट में निहित विशिष्ट अर्थ को स्पष्ट करने के पश्चात‌ उन्हें समझाया गया कि समता ही योग है यानि आत्मा-परमात्मा की एक अवस्था का प्रतीक है। समता मूलाधार है-समानता, एकरूपता, निष्पक्षता व धीरता की। इससे मन में विषमता नहीं पनपती। इसीलिए सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ के अनुसार समभाव नजरों में करने पर, मनुष्य के हृदय में, सजन-वृत्ति का विकास होता है, और फिर वह इसी विचारधारा अनुरूप, सबके साथ समदर्शिता का आचार-व्यवहार करता हुआ, सदा अफुर व आनन्दमय बना रहता है।

समभाव के अर्थ को स्पष्ट करते हुए फिर बताया गया कि समभाव राग-द्वेष का उपशमन कर, जन्म-मरण, रोग-सोग, खुशी-गमी, मान-अपमान, अमीरी-गरीबी, दु:ख-सुख, विजय-पराजय, लाभ-हानि आदि में समरस रहने का भाव है। समभाव अपना कर जो समग्र विश्व के प्रति एक सा नज़रिया रखता है, वह न किसी का प्रिय करता है, न अप्रिय। ऐसा समदर्शी अपने-पराए की भेद-बुद्धि व द्वन्द्वों से परे हो अर्थात्‌ समस्त 1लेशों, पापों व संघर्षों से छुटकारा पा, सर्वथा निराकुल व शांत हो जाता है।

इसके स्थान पर यह सत्य मान लो कि यह शरीर परिवर्त्तनशील है, नश्वर है और आत्मा नित्य एकरस व अजर-अमर-अविनाशी है। फिर इसी सत्य अनुरूप विचार में स्थिर बने रह, मन-वचन-कर्म द्वारा व्यावहारिकता अपनाओ। उन्हें यह भी कहा गया कि समभाव को अपनाने के लिए अन्य जिस चीज़ की आवश्यकता है वह है शान्ति। शान्ति की उत्पत्ति आत्मा की स्वतन्त्रता यानि आत्मतुष्टि से होती है। इसका समबन्ध संतोष से है यानि इच्छाओं के विनाश से है, व हर प्रकार के दंभ, वासनाओं की गंदगी, तुच्छ स्वार्थ व लिप्सा के भाव के त्याग से है। इसके लिए व्यक्तित्व का रूपान्तरण आवश्यक है तथा इसका अन्त परम शान्ति है।

भावना की तेजस्विता मनुष्य में साहस, तेज, ओज, मनोबल आदि की वृद्धि करती है तथा भावना की दुर्बलता जीवित मनुष्य को भी निर्जीव, दीन-हीन व क्षीण बना देती है। अत: याद रखो सजनों संसार के समस्त जीवों के प्रति मैत्री-भावना यानि सजनता का भाव, चित्त को निर्मल बना, व्यावहारिक जीवन में समभाव का सफल साधक बना सकती है। अंतत: सबसे प्रार्थना की गई कि राग-द्वेष के भाव से बचे रहने हेतु स्वभाव में रमण करो जोकि यही वास्तव में समभाव है।

समभाव-समदृष्टि की युक्ति को पढऩे-सुनने व समझने के पश्चात‌, विधिवत‌ प्रयोग करने में प्रवीण होने पर ही, वांछित सार्थक परिणाम, प्राप्त हो सकते हैं यानि व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक व वैश्विक उत्थान हो सकता है। अत: समभाव समदृष्टि अपनाओ और सुखी हो जाओ।

ध्यान-कक्ष आए सभी बच्चों व अध्यापको को आकर बहुत ही अच्छा लगा व उन्होंने कहा कि वे इस विषय में अपने अन्य मित्रों, परिवारजनों व सगे-समबन्धियों को भी बताएंगे, ताकि वे भी यहा आकर जीवन जीने की सही कला सीख सकें। आप भी सजनों ऐसा कर सकते हैं।