April 18, 2024

देश में ब्रेस्ट कैंसर के कारण होने वाली मौत को रोकने के लिए जागरूकता जरूरी

Faridabad/Alive News: भारतीय मरीजों में ब्रेस्ट कैंसर के जितने प्रकार और चरण हैं दुनिया के किसी देश में इतने नहीं हैं। कई तरह की गलत अवधारणाओं और जानकारी के अभाव के कारण वे लोग समय पर इलाज नहीं करा पाते हैं और वैकल्पिक उपचार आजमाने लगते हैं। कई लोगों में धारणा है कि ब्रेस्ट कैंसर वंशानुरोग है लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसे सिर्फ 5 से 10 मामले ही पाए गए हैं।

हालांकि मैमोग्राफी टेस्ट से असुविधा हो सकती है लेकिन इससे उतना दर्द नहीं होता और मैमोग्राम के दौरान यदि छोटी गांठ का पता नहीं चल पाता है तो डॉक्टर आपको एमआरआई की सलाह दे सकते हैं। मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, में मेडिकल के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. सफलता ने कहा, ‘भारत में हर साल 25 में से एक व्यक्ति में ब्रेस्ट कैंसर पाया जाता है जो अमेरिका या ब्रिटेन जैसे विकसित देशों के मुकाबले बहुत कम है। इन विकसित देशों में हर साल ऐसे आठ में से एक मामला पाया जाता है। लेकिन इन देशों में जागरूकता के कारण इतने सारे मामलों का शुरुआती चरण में ही पता भी चल जाता है और इलाज भी शुरू हो जाता है।

शहरी क्षेत्रों के ज्यादातर मरीजों की डायग्नोसिस कैंसर के दूसरे स्टेज में ही हो पाती है जब टी2 की गांठ स्पष्ट होने लगती है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इन गांठों का पता तभी चल पाता है जब ये मेटास्टैटिक गांठ में बदल जाती हैं।’किसी तरह के कैंसर की शुरुआती पहचान और इलाज ही इससे निपटने का मूलमंत्र है और किसी भी मामले में आशंका को देखते हुए लोगों को बायोप्सी जांच जरूर करा लेनी चाहिए। इससे न सिर्फ गांठ की पुष्टि होती है बल्कि कैंसर के प्रकार का भी पता चल जाता है और फिर इलाज कराने में आसानी हो जाती है।

दुनिया में 40 साल की उम्र से कम वाले 7 फीसदी लोग ब्रेस्ट कैंसर से जूझ रहे हैं जबकि भारत में यह दर दोगुनी यानी 15 फीसदी है। इनमें से 1 फीसदी मरीज पुरुष हैं जिस कारण वैश्विक स्तर पर भारत में ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों की संख्या सर्वाधिक है। आनुवांशिक होने के अलावा श्रमरहित जीवनशैली, अल्कोहल सेवन, धूम्रपान, कम उम्र में ही मोटापा, तनाव और खानपान की गलत आदतों जैसे अन्य जोखिम कारक भारतीय युवा महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले बढ़ाते हैं।

डॉ. सफलता ने कहा, ‘लोगों में यह जागरूकता फैलानी चाहिए कि शुरुआती चरण में ज्यादातर ब्रेस्ट कैंसर के मामलों की पहचान कराई जाए क्योंकि ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित ज्यादातर महिलाएं मेटास्टैटिस के बाद ही संभल पाती हैं। कैंसर के मेटास्टैटिक या एडवांस्ड चरणों में पूरी तरह इसका इलाज संभव नहीं हो पाता है और गांठ खत्म करने के लिए इलाज शुरू किया जाता है।
पिछले एक दशक के दौरान ब्रेस्ट कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं लेकिन बढ़ती जागरूकता, कैंसर की देखभाल को लेकर बदलती धारणाओं के कारण मृत्यु दर धीरे-धीरे कम हुई है।