May 3, 2024

आज है अजा एकादशी, जानें महत्व और पूजा विधि

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह शुभ तिथि 3 सितंबर यानी आज है। वैसे तो शास्त्रों में सभी एकादशियों का पुण्यदायी माना गया है। लेकिन इनमें अजा एकादशी का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत के करने से न सिर्फ सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि सभी कष्टों से मुक्ति भी मिल जाती है और अश्‍वमेध यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है। अजा एकादशी के दिन गरुड़ की सवारी करते हुए भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक और शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं।

अजा एकादशी व्रत का महत्व
सनातन परंपरा में अजा एकादशी को भक्ति और पुण्य कार्यों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। श्रीकृष्ण ने बताया है कि अजा एकादशी का व्रत करने से सभी पाप और कष्ट से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद इंसान को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जितना पुण्य हजारों वर्षों की तपस्या से मिलता है, उतना पुण्य फल सच्चे मन से इस व्रत को करने से प्राप्त होता है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु का प्रिय व्रत है और कृष्ण जन्माष्टमी के बाद यह पहली एकादशी है। इस दिन नारायण कवच और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। साथ ही दान-तर्पण और विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।

अजा एकादशी व्रत पूजा विधि
अजा एकादशी का व्रत करने वाले जातक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रिया से निपटने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प ले। पूजा से पहले घट स्थापना की जाती है, जिसमें घड़े पर लाल रंग का वस्त्र सजाया जाता है और उसकी पूजा की जाती है। इसके बाद चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और गंगाजल से चारों तरफ छिड़काव करें। इसके बाद रोली का टीका लगाते हुए अक्षत अर्पित करें। इसके बाद भगवान को पीले फूल अर्पित करें और व्रत कथा का पाठ करें। साथ ही विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर सकते हैं। फिर घी में थोड़ी हल्दी मिलाकर भगवान विष्णु की आरती करें। जया एकादशी के दिन पीपल के पत्ते पर दूध और केसर से बनी मिठाई रखकर भगवान को अर्पित करें। इस दिन दान का भी विशेष महत्व बताया है। एकादशी के व्रत धारी पूरे दिन भगवान का ध्यान लगाएं और शाम के समय आरती करने के बाद फलाहार कर लें। अगले दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद गरीब व जरूरतमंद को भोजन कराएं और फिर स्वयं व्रत का पारण करें।