May 5, 2024

सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा आयोजित मानवता-फेस्ट-2023

Faridabad/Alive News : सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा अपने ही विशाल परिसर सतयुग दर्शन वसुन्धरा में मानवता ‘फेस्ट 2023’ का आयोजन किया गया। इस समारोह में देश के विभिन्न भागों से सैकड़ो की संख्या में युवा सदस्य पधार रहे हैं। फेस्ट के आयोजको के अनुसार यह फेस्ट भौतिकता के प्रसार के कारण, नैतिक रूप से पथभ्रष्ट हो रहे बाल-युवाओं को अध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर, सद्मार्ग पर लाने का एक अभूतपूर्व प्रयास है। सबकी जानकारी हेतु इस फेस्ट में खेल-कूद, मौज-मस्ती, सांस्कृतिक कार्यक्रम, जूम्बा, योगा, पेंटिग प्रतियोगिता, टेलन्ट हंट इत्यादि का भी समुचित प्रबन्ध किया गया है।

फेस्ट के अंतर्गत ट्रस्ट के मार्गदर्शक सजन जी ने सब बाल युवाओं को आत्मज्ञान प्राप्ति के विधि-विधान व आवश्यकता से परिचित कराते हुए कहा कि ब्राहृ ही इस विश्व का वास्तविक स्वामी है और वह ही सम्पूर्ण जगत अर्थात् जनचर, बनचर, जड़-चेतन यानि कीड़ी से लेकर हाथी तक व ब्राहृा से लेकर तृण तक, समरसता से सर्वव्यापक है व सर्वज्ञ है यानि सबके दिलों की जानने वाला है। इससे स्पष्ट होता है कि इस ब्राहृाण्ड का सिरजनकत्र्ता ब्राहृ है जो अपने आप में सर्वशक्तिमान है व जीव शरीरधारी आत्मा/माया के आवरण में ढँकी चेतन आत्मा है जिसे प्राणी कहते हैं।

इस जीव को पाँच तत्वों यथा आकाश, अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी द्वारा किसी भी प्रकार के नश्वर शरीर पर शासन करने का परिपूर्ण अधिकार होता है। इसलिए हर जीव के लिए निरन्तर सत्तावान अवस्था में सधे रहने हेतु ह्मदय स्थित, जगत रूपी मन को अपने आत्मस्वरूप में, लीन रखने का कुदरती विधान है ताकि उसके अन्दर किसी विध् भी नश्वर जगत न घर कर पाए। जानो ऐसा सुनिश्चित करने का अदम्य पुरुषार्थ दिखाने पर ही प्राणी ब्राहृ-सम्बन्धी सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है और ब्राहृज्ञान के तेज से समरस युक्त रहते हुए, ब्राहृरूप होकर निर्विकारितापूर्ण जगत में विशेषतया विचरते हुए व वेद-विहित कर्म निष्कामतापूर्ण सत्यनिष्ठा से समयबद्ध सम्पादित करते हुए, निर्लेप अवस्था में सधे रह, धर्मज्ञ कहला सकता है।

उन्होंने कहा कि यही सबसे सहज और सरल युक्ति है, जिसका विधिवत् अनुसरण करने पर हम अपने मन को जगत के हर फुरने से आज़ाद रख तथा मन में उठने वाली भिन्न-भिन्न प्रकार की क्षणभंगुर सुखप्रदायक इच्छाओं को शांत कर यानि बाह्र जगत से मुख घुमा व अलौकिक अंतर्जगत वल मुख भँवा, आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार अपने मन-वचन-कर्म को साध यानि आत्मज्ञानी बन जीवन को विचारयुक्त सवलड़े रास्ते पर निरंतर आगे बढ़ाते हुए, सतयुगी इन्सान बन सकते हैं। परिणामत: कुदरत प्रदत्त आद् संस्कृति को पहचान पुन: सत्-वादी व धर्मपरायण इंसान बन सज्जनता के प्रतीक कहला सकते हैं।

इसी संदर्भ में सजन ने सजनों को समझाते हुए कहा कि कर्मानुसार चौरासी लाख योनियों का दु:ख-सुख भोगने के पश्चात् हर जीव को मानव रूप में अपनी सर्वोत्कृष्टता निर्विकारिता से सिद्ध करने के योग्य बनाने हेतु, कुदरत उसे विशेषतया विवेकशक्ति प्रदान करी है ताकि वह स्वार्थपरता व असत्य-अधर्म यानि रजोगुण व तमोगुण के दुष्प्रभाववश अपने ह्मदय में छाए घोर अज्ञान अंधकार से मुक्ति प्राप्त कर, पुन: सतोगुणी बन आत्मस्मृति में आ सके।

अत: हमारी सबसे प्रार्थना है कि आज के इस शुभ अवसर को परमात्मा की असीम कृपा मानो और वेद शास्त्रों में जो आत्मस्मृति में आने हेतु, शब्द ब्राहृ विचारों के रूप में धारणीय आज्ञाओं का वर्णन है, उन्हें सहर्ष स्वीकारो। ए विध् आत्मिक ज्ञान प्राप्त कर अपने मन-मन्दिर को प्रकाशित अवस्था में इस तरह साध लो कि आपको सहज ही आत्मसाक्षात्कार हो जाए। याद रखो ऐसा पुरुषार्थ दिखाने पर ही आप सहज ही जान जाओगे कि “आत्मा विच है परमात्मा”। मानो यह द्वि-द्वेष व कामनायुक्त शारीरिक भाव-स्वभावों से परिपूर्णतया ऊपर उठ, हर मानव के लिए कुदरत प्रदत्त सर्वोत्कृष्टता को प्राप्त होने की बात है। इसीलिए तो सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ में कहा गया है:-

समभाव नज़रों में कर सजन वृत्ति फड़ियो।
सजन भाव नज़रों में कर सजनों, सजन भाव प्रकृति में लियाईयो।।

जानो इस युक्ति को अपनाने पर ही हम परमेश्वर के आज्ञाकारी सुपुत्र बन, इसी जीवन में आत्मोद्धार कर अक्षय यश कीर्ति को प्राप्त कर सकोगे और अपने सच्चे घर परमधाम पहुँच विश्राम को पा सकोगे। सो पुरुषार्थ दिखाओ, पुरुषार्थ दिखाओ और इसी जीवन में जन्म की बाजी जीत जाओ। यहाँ याद रखो ऐसा करने हेतु रोज़ी-रोटी, कपड़ा व मकान, जो जीवन की आधारभूत आवश्यकताएँ हैं, उनको पाने हेतु भौतिक ज्ञान तो प्राप्त करो ही साथ ही मानसिक स्वस्थता हेतु आत्मिक ज्ञान प्राप्त करने पर भी समय अवश्य लगाओ।