April 20, 2024

फर्जी दस्तावेज : सरकारी विज्ञापनों के लिए न्यूजपेपरों को पैनल में शामिल करने पर बीओसी अधिकारियों पर केस

New Delhi/Alive News : सीबीआई ने ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन (बीओसी) के अज्ञात अधिकारियों समेत हरीश लांबा, आरती लांबा और अश्विनी कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इन लोगों पर फर्जी और मनगढ़ंत दस्तावेज के आधार सरकारी विज्ञापनों के लिए न्यूजपेपरों को पैनल में शामिल करने का आरोप है। 

एफआईआर में हरीश लांबा, आरती लांबा और अश्वनी कुमार का भी नाम
प्रारंभिक जांच के बाद एजेंसी ने आरोप लगाया कि विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) के अज्ञात सरकारी कर्मचारियों ने लांबा के साथ मिलकर छह न्यूजपेपरों को डीएवीपी के पैनल में शामिल किया। डीएवीपी अब बीओसी हो गया है। ये अर्जुन टाइम्स, द हेल्थ ऑफ भारत और द दिल्ली हेल्थ के दो-दो न्यूजपेपर थे।

यह काम फर्जी और मनगढ़ंत दस्तावेज के आधार पर किया गया। सीबीआई ने 30 अगस्त 2019 में अचानक तलाशी की कार्रवाई के बाद प्रारंभिक जांच शुरू की थी। तलाशी की कार्रवाई में पता चला कि डीएवीपी के पैनल में शामिल होने की शर्तों को पूरा न करने के बावजूद इन न्यूजपेपरों को शामिल किया गया। एजेंसी का आरोप है कि सीए के फर्जी प्रमाणपत्र समेत अन्य फर्जी दस्तावेज सरकारी विज्ञापन हासिल करने के लिए विभाग में जमा कराए गए। 

एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि इन न्यूजपेपरों ने अपने दस्तावेज में दिखाया कि 8 पेज के उनके पेपर की 1.50 लाख प्रतियां रोजाना छपती और वितरित होती हैं जबकि इनका सर्कुलेशन मुश्किल से प्रतिदिन का 100-150 प्रतियां से अधिक का नहीं था। एजेंसी का आरोप है कि इन पेपरों को दिए गए विज्ञापनों के चलते सरकारी राजस्व को करोड़ों का नुकसान पहुंचा। साथ ही इन न्यूजपेपरों के प्रेस और पब्लिशर के दिए गए पतों पर कोई प्रिंटिंग और पब्लिशिंग का काम नहीं होता था।

जांच में पता चला कि अर्जुन टाइम्स के लिए 2017 में जमा किए गए पेपरों के अनुसार, अश्विनी कुमार को पब्लिशर बताया गया था जबकि हरीश लांबा न्यूजपेपर के मालिक या प्रोपराइटर थे। प्रिंटिंग प्रेस का नाम डॉल्फिन पिक्टोग्राफी, झंडेवालान एक्सटेंशन नई दिल्ली, 110055 दिखाया गया था।

जांच में खुलासा हुआ कि डॉल्फिन पिक्टोग्राफी का मालिक दर्शन सिंह नेगी था और वह हरीश लांबा या अश्विनी कुमार को नहीं जानता था। अर्जुन टाइम्स इस प्रिंटिंग प्रेस में कभी छपा ही नहीं। एजेंसी का आरोप है कि इन न्यूजपेपरों ने 2016-2019 के दौरान 62.24 लाख रुपये के सरकारी विज्ञापन हासिल किए।