May 6, 2024

सदा अमर रहेगा हरियाणा के इतिहास में शहीद राजा नाहर सिंह का नाम

Faridabad/Alive News : देश की आजादी के लिए अनगिनत वीरों ने अपने जीवन का बलिदान दिया है। भारतीय इतिहास में जिन शहीदों का नाम अंकित है, उनमें बल्लभगढ़ रियासत के आजादी के मतवाले शहीद राजा नाहर सिंह का नाम हरियाणा के इतिहास में सदा अमर रहेगा। प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम जिसे 1857 की महान क्रांति के नाम से जाना जाता है। बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह अग्रणी क्रांतिकारियों में थे, जिन्होंने बहादुरशाह जफर को दिल्ली का शासक स्थापित करने तथा राजधानी की सुरक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा दी थी। वीर सपूत राजा नाहर सिंह को नौ जनवरी 1858 को लालकिले के सामने चांदनी चौक में ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध विद्रोह के आरोप में फांसी पर लटकाया था, उनके साथ उनके विश्वस्त साथियों गुलाब सिंह सैनी तथा भूरा सिंह को भी फांसी दी गई थी। राजा नाहर सिंह के संघर्ष की कहानी खून और आंसुओं की है। उनका बलिदान अनूठा और प्रेरणादायक था। 23 दिसम्बर 1857 को लालकिले के सामने आजादी के मतवाले नवाब झज्जर अब्दुल रहमान खां को फांसी के पश्चात् यह रक्त-रंजित बलिदान था। 6 अप्रैल 1821 को महाराजा राम सिंह के घर जन्में नाहर सिंह का विवाह 16 वर्ष की आयु में कपूरथला घराने की राजकुमारी किशन कौर से हुआ था तथा 18 वर्ष की आयु में 20 जनवरी 1839 को बसंत पंचमी के दिन इनका राज्यारोहण हुआ।

मात्र 36 वर्ष की आयु में 9 जनवरी 1858 को फांसी के बाद उनका मृतक शरीर भी अंग्रेजी शासन ने उनके परिवारजनों को नहीं दिया। अंग्रेजी शासन को भय था कि कही उनके मृतक शरीर को देखकर रियासत के लोग भडक़कर शोला न बन जाएं और अंग्रेजों पर कहर बनकर न टूटें। राजा नाहर सिंह बचपन से ही निडर, स्वभाव से दयालु अपनी मातृभूमि से प्रेम करने वाले थे। बड़े होकर उनके कंधों पर रियासत का बोझ आ पड़ा तो वे किंचित भी न डरें। बल्लभगढ़ के गांव अलालपुर जनौली में चरण दास के घर बल्लू नाम के प्रतापी पुत्र ने जन्म लिया। छोटी सी आयु में बल्लू अपने पिता के साथ गांव सीही में आया। दिल्ली के मुगल शासकों के दबाव में अत्याचार का विरोध करने के लिए बल्लू ने पालों और खापों के हजारों मुसलमानों, मेवों, राजपूतों तथा जाटों को संगठित किया। राजा नाहर सिंह न केवल तलवार के धनी थे बल्कि शासकीय कूटनीति में भी दक्ष थे। दिल्ली में दोबारा अधिकार के लिये ब्रिटिश सैनिकों का दबाव बढ़ा तो बहादुरशाह जफर ने नाहर सिंह को दिल्ली की सुरक्षा के लिए बुलावा भेजा। नाहर सिंह दक्षिण दिल्ली पर लोहे की दीवार बन गए। किसी भी फिरंगी को उन्होंने दक्षिण की ओर से नहीं घुसने दिया।

आगरा से आती हुई ब्रिटिश सैनिक टुकडिय़ों को उन्होंने मौत के घाट उतार दिया। ब्रिटिश सेनाधिकारी नाहर सिंह की रक्षा पंक्ति से आतंकित थे। राजा नाहर सिंह लाल किले की रक्षा बल्लभगढ़ से आगे निकलकर कर रहे थे। अंग्रेजों ने चाल-चली बल्लभगढ़ पर अचानक हमला बोल दिया। किले में नियुक्त सेनापति मारे गए, राजा नाहर सिंह का घोड़ा दिल्ली और बल्लभगढ़ के बीच दौड़ता रहता था। नाहर सिंह अंग्रेजी सेना के लिए शेर बन गया था। दिल्ली के तख्त पर दोबारा अंग्रेजी अधिकार हो जाने पर बहादुरशाह जफर बंदी बना लिए गए। शहजादों को मौत के घाट उतार दिया गया। दिल्ली की सडक़े रक्त रंजित हो उठी। अंग्रेजों के अत्याचारों से दिल्ली कांप उठी। तब नाहर सिंह बल्लभगढ़ की रक्षा के लिए दिल्ली से वापस आ गए थे। शहीद राजा नाहर सिंह बल्लभगढ़ स्थित ऐतिहासिक महल आज भी राजा व उनके वंशजों की याद दिलाता है। राजा के प्रपौत आज भी यहां निवास करते है जो निरन्तर इसी प्रयास में जुटे रहते है कि उनके पूर्वजों का नाम सदा बना रहे।

राजा नाहर सिंह की स्मृति में बल्लभगढ़ के सैक्टर-3 में एक हाईस्कूल की भी स्थापना की हुई है, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को शिक्षा दी जाती है। इसके अतिरिक्त राजा नाहर सिंह के नाम पर एक भव्य नाहर सिंह पैलेस की भी स्थापना की गई है। शहीद राजा के प्रपौत्र राजकुमार तेवतिया, सुनील तेवतिया व अनिल तेवतिया बल्लभगढ़ में राजा नाहर सिंह पैलेस की मर्यादाओं के तहत राजा नाहर सिंह की याद में उनके शहीद दिवस के रूप में 9 जनवरी को विशेष समारोह का आयोजन करते हैं। इन्ही के प्रयास से फरीदाबाद स्थित स्टेडियम का भी नामकरण शहीद राजा के नाम पर हुआ है। राजा नाहर सिंह के महल का भी बल्लभगढ़ में जीर्णोद्वार हो चुका है, लेकिन प्रशासन द्वारा इस महल को पर्यटन विभाग को सौंपने से उनके वंशज काफी दुखी हैं क्योंकि इस महल में मयखाना चलता है। उनके वंशजों की मांग है कि बल्लभगढ़ में उनके महल को पर्यटन विभाग से वापस लेकर वहां एक संग्रहालय बनाया जाए। जिससे दिल्ली से आगरा जाने वाले लोग शहीद राजा नाहर सिंह की जीवनी को जान सकें।