May 20, 2024

ग्रीन फील्ड और ओल्ड फरीदाबाद अंडरपास पर डलेगी छत, निगम ने निजी कंपनियों से मांगे आवेदन

Faridabad/Alive News : ग्रीन फील्ड और ओल्ड फरीदाबाद अंडरपास पर नगर निगम छत डालने की योजना बना रही है, ताकि बारिश का पानी अंडरपास में भर सके। लेकिन निगम की यह योजना फेल हो सकती है, क्योंकि इन दोनो अंडरपासों में बरसात से ज्यादा आस पास की कालोनियों के सीवर का गंदा पानी भरता है। ओल्ड अंडरपास का भले ही निगम करोड़ों रुपए खर्च कर सौंदर्यकरण करवा रहा है। लेकिन अंडर पास की दीवारों से बहता संत नगर सीवर का पानी अंडर पास की शोभा पर दाग लगा रहा है।

मिली जानकारी के अनुसार नगर निगम की ओर से ग्रीन फील्ड अंडरपास के छत का डिजाइन तैयार करने के लिए निजी कंपनी से आवेदन मांगे हैं। निजी कंपनी तय करेगी छत के लिए फाइबर शीट का इस्तेमाल होगा या फिर धातु का। 27 अक्तूबर को टेंडर खोले जाएंगे और काम को पूरा करने के लिए दो माह का वक्त दिया जाएगा।

दरअसल, हल्की सी बारिश होने पर ही यहां अंडरपास में पानी भर जाता है। इससे कॉलोनी के लोगों का नेशनल हाईवे से संपर्क टूट जाता है। लोगों को दस किलोमीटर लंबा सफर तय करना पड़ता है और फिर अपने गंतव्य तक पहुंचना पड़ता है।

बता दें, कि 15 अक्तूबर को हुई ग्रीवेंस कमेटी की बैठक में ग्रीन फील्ड कॉलोनी को नगर निगम के अधीन करने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल के आदेश पर अमल शुरू हो गया है। ग्रीन फील्ड अंडर पास को जलभराव मुक्त करने के लिए नगर निगम की तरफ से की जा रही कवायद को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं, कॉलोनी की जर्जर सड़कों का भी निर्माण शुरू किया जाएगा। पानी, स्ट्रीट लाइट, पार्क आदि मूलभूत सुविधाएं भी मिल सकेंगी।

ग्रीन फील्ड कॉलोनी को अर्बन इम्प्रुमेंट कंपनी ने 1962 में हरियाणा सरकार से लाइसेंस लेकर बसाया था। 434 एकड़ भूमि में 3713 प्लॉट के साथ कॉलोनी विकसित की गई। लेकिन सालों बीतने के बाद भी कंपनी और आरडब्ल्यूए में विकास कार्यों को लेकर विवाद चलता रहा। आरडब्ल्यूए कॉलोनी को नगर निगम के अधीन करने की मांग करता रहा।

वहीं अर्बन इम्प्रुमेंट कंपनी ने कॉलोनी की कुछ जमीन को साल 2011 में करीब 200 करोड़ में बेच दिया था। आरडब्ल्यूए ने इसका विरोध किया और दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करके जमीन की बिक्री पर स्टे लगा दिया। तभी से मामला कोर्ट में चल रहा है। आरडब्ल्यूए के प्रधान वीरेंद्र भड़ाना का कहना है कि कंपनी जमीन बेचकर चली जाती और कंपनी पर सरकारी महकमों की जो देनदारी है, उसकी रिकवरी स्थानीय लोगों को अदा करनी पड़ती।