April 28, 2024

भाग-1 : गोलवालकर का हिन्दू राष्ट्र व राष्ट्रीयता

        

जे.बी.शर्मा

निसंदेह भारत के पुनरुत्थान के लिए राष्ट्रीय सेवक संघ (आर.एस.एस) द्वारा, एम.एस. गोलवालकर को एक पैंगबर कहें या संत या फिर भविष्यवक्ता के रूप में स्थापित करने का भरसक प्रयास किया गया है। वहीं आर.एस.एस. ने इन्हें 20वीं सदी का भारत माता का योग्य सपूत और हिन्दू समाज के लिए उत्कृष्ट उपहार के रूप में माना है। बावजूद इसके कि गोलवालकर साहब अपने तमाम जीवन काल में हिन्दुतत्व के पक्षधर रहे और साथ ही उनके विश्वास में जातिवाद व अधिनायकवाद निहित रहा। वे हिन्दू- राष्ट्र स्थापित करने के घोर समर्थक थे। देश के अल्प संख्यकों के बारे में उनके विचार बड़े स्पष्ट थे।

उनका कहना था कि मुस्लिम, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यक या तो स्वयं का हिन्दू जाति में पूर्ण विलय करें वरना दोयम दर्जे के नागरिक बन कर अस्तित्व में रहें। उक्त के अलावा गोलवालकर साहब के विचारों से जुड़े बहुत से तथ्यों और तत्वों को जानने के लिए हम जिस पुस्तक की मदद ले रहें हैं उसका शीर्षक है: GOLWALKAR’S, WE OR OUR NATIONHOOD DEFINED (3rd Revised Edition). A Critique by SHAMSUL ISLAM.

इस लेख में हमराष्ट्र स्वंय सेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवालकर द्वारा रचित उपरोक्त पुस्तक में- हिन्दू, हिन्दू-राष्ट्र , हिन्दूत्व और अल्पसंख्यकों के अस्तित्व से जुड़ी जिन-जिन बातों, तत्वों और घटकों का उल्लेख किया गया है उनको जानना-समझना चाहेंगे। साथ ही संबंधित पुस्तक में उल्लेखित जानकारी को हम अपने पाठकों से भी साझा करना चाहेंगे। हम बात शुरू करते हैं उपरोक्त पुस्तक के पहले अध्याय से। जिसका शीर्षक है, ‘डैफिनेशन ऑफ ए नेशन।

DEFINITION OF A NATION

‘ For Golwalkar , a nation was made of five ‘incontrovertible’ components namely,’ Country,Race,Religion, Culture and language.’ However, like Savarkar, he combined culture with religion and called it Hinduism. Thus , these were basically four components required to make a nation. According to him, Hindus were a great and distinct Nation because , first, there were only Hindus, which ie., Aryan Race which inhabited Hinusthan, the land of Hindus.

Second, Hindus belonged to a race which had a hereditary [Sic] Society having common customs, common language, common memories of glory or disaster, in short it is a population with a common origin under one culture. Such a race is by far the important ingredient of Nation. Even if there be people of a foreign origin, they have become assimilated into the body of the mother race and inextricably fused in to it.

‘डैफिनेशन ऑफ ए नेशन चैपटर में गोलवालकर का मानना है कि राष्ट्र के मुख्य पांच घटक होते हैं। जिन्हें हम, ‘देश, जाति, धर्म, संस्कृत और भाषा कहते हैं। फिर भी गोलवालकर ने सावरकर की मानिंद संस्कृति को धर्म से जोड़कर इसे हिन्दुतत्व माना है। इस प्रकार राष्ट्र-निर्माण में मूलत: चार ही घटक रह जाते है। जिन्हें आवश्यक माना गया हैं। गोलवालकर के अनुससार हिन्दू महान थे और भिन्न व पृथक नागरिक थे। क्योंकि सबसे पहले वे केवल हिन्दू हैं, उदाहरण के लिए, आर्यन जाति थी।

जिन्होंने हिन्दूस्थान बसाया, अर्थात हिन्दूओं के स्थान की नींव रखी। दूसरा हिन्दू एक ऐसी जाति है जिसके वंशानुगत समुदाय का एक रीतिरिवाज, एक ही भाषा, एक सा वृतांत और एक सा वैभव व आपदा एक सी हैं। कम शब्दों में अगर कहा जाय तो यह एक ऐसी पोप्युलेशन है जिसका उदगम एक ही संस्कृति से हुआ है। ऐसी जाति, राष्ट्र की महत्वपूर्ण साधन सामग्री है। भले ही कुछ विदेशी मूल के लोग जिनकी उत्पति व अस्तित्व मातृ जाति के कारण रहा और वे यहां बहुत सी पेचिदगी के साथ यहा समावेशित हो गये।

यह सच है कि गोलवालकर साहब एक समय में बनारस विश्व विद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने एम.एस.सी से मास्टर डिग्री के अतिरिक्त लॉ की डिग्री हासिल कर रखी थी। यह भी ठीक है कि उनकी सोच में कट्टरता साफ झलकती है। परन्तु क्या उन्होंने भारतीय-जनता की संरचना और हिन्दू संस्कृति की उत्पति का सही से आत्मसात किया होगा? क्या उन्होंने भारतीय समाज में स्थापित सौर्हाद, प्रेम, सहयोग, आपसी भाइचारे व हमदर्दी जैसे आवश्यक पहलूओं की अनदेखी की है? इनके अलावा हमें जानना व समझना होगा कि आर्यन व द्रविड़ों के भारत में अनंत कालीन अस्तित्व के बारे पंडितो के क्या विचार हैं?

ऐसे अनेकानेक सवाल है जोकि गोलवालकर की राष्ट्रीयता की परिभाषा पर खड़े किये जा सकते है? लेकिन वर्तमान में संदर्भित सवाल यह है कि क्या कट्टरता और नफरत की ज़हरीली कटार भारतीय-जनता की संरचना को गंभीर हानी पहुंचा पायेगी? यह बात अलग है कि अगर ऐसा हुआ तो इतना तय है कि नफरत भरी ज़हरीली कटार से होने वाले सामाजिक-आर्थिक नुकसान की भरपाई में काफी वक़्त लग जाए।

योगी हरि ने अपने पुस्तक हमारी परंपरा के प्रकाशकीय में लिखा है कि भारतीय संस्कृति की पहचान उसकी बहुरैखिकता में है, जहां लोक और वेद, दोनो एक-दूसरे से उर्जस्वित और परिपुष्टित होकर आगे बढ़ते हैं। लेकिन यह भी सच है कि गोलवालकर साहब की राष्ट्र व राष्ट्रीयता की परिभाषा अध्ययन व अनुसंधान के लिए बाध्य करती है।
क्रमश….

(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं)