April 18, 2024

NDTV की मुसीबतों का दौर : रॉय दंपत्ति के एक ‘गलत’ कदम से शुरू

2007 में एनडीटीवी के संस्थापकों – राधिका और प्रणय रॉय – ने इसके कुछ और शेयर खरीदने का फैसला किया. इसके बाद से उनकी और एनडीटीवी की मुसीबतों का दौर शुरू हो गया

बीते सोमवार को एनडीटीवी के संस्थापकों के घर पर सीबीआई ने छापे मारे. एनडीटीवी पर वित्तीय गड़बड़ियों और एक प्राइवेट बैंक को करीब 48 करोड़ रूपये का नुकसान पहुंचाने के आरोप हैं. ये आरोप नए नहीं हैं बल्कि बीते कई सालों से एनडीटीवी पर लगते रहे हैं. इसलिए इस पूरे मामले को समझने की शुरुआत वहीँ से करते हैं जहां से वित्तीय गड़बड़ियों का ये सिलसिला शुरू हुआ था.

साल 2007 की बात है. दूरदर्शन पर एक छोटे-से स्लॉट से शुरू हुआ एनडीटीवी अब तक देश का सर्वश्रेष्ठ मीडिया ग्रुप बन चुका था. ख़बरों की गुणवत्ता से लेकर कर्मचारियों को मिलने वाली सुविधाओं तक में उसका कोई सानी नहीं था. इसके संस्थापक राधिका रॉय और प्रणय रॉय ने इसी साल एनडीटीवी के 7.73 प्रतिशत अतिरिक्त शेयर खरीदने का मन बनाया. इस फैसले में कुछ भी गलत नहीं था लेकिन यहीं से एनडीटीवी और इसके प्रमोटरों की मुसीबतों का दौर शुरू हो गया.

साल 2015 में ‘कारवां’ पत्रिका ने इस पूरे मामले पर एक विस्तृत रिपोर्ट की थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक राधिका और प्रणय रॉय ने ये 7.73 प्रतिशत शेयर ‘जीए ग्लोबल इन्वेस्टमेंट्स’ से खरीद लिए. उस दौर में एक शेयर की कीमत 400 सौ रूपये हुआ करती थी. लेकिन रॉय दम्पति ने ये शेयर 439 रूपये प्रति शेयर की दर से खरीदे. भारतीय स्टॉक मार्किट के नियमों के अनुसार इससे स्वतः ही एक ‘ओपन ऑफर’ शुरू हो गया जिसके तहत कंपनी के बाकी शेयरहोल्डर अपने-अपने शेयर का एक निर्धारित प्रतिशत इसी कीमत पर रॉय दम्पति को बेच सकते थे. जब ये तमाम शेयर खरीदने की बारी आई तो रॉय दंपत्ति के पास पैसों की कमी हुई. इसके लिए उन्होंने ‘इंडिया बुल्स फाइनेंसियल सर्विसेज’ से 501 करोड़ रूपये का कर्ज लिया. यही कर्ज आज तक रॉय दम्पति और एनडीटीवी के गले की फांस बना हुआ है.

रॉय दम्पति ने अपनी ही कंपनी के शेयर बाज़ार भाव से भी मंहगे खरीद लिए थे. लेकिन जुलाई 2008 में उनके जिस शेयर की कीमत 400 रूपये थे, अक्टूबर आते-आते उसी शेयर की कीमत घटकर मात्र 100 रूपये रह गई. ये वैश्विक मंदी का दौर था जिसकी चपेट में तमाम देशी-विदेशी कंपनियों की ही तरह एनडीटीवी भी आया था. रॉय दम्पति को इंडिया बुल्स से लिया कर्ज वापस करना था. इसे चुकाने के लिए अब उन्होंने आईसीआईसीआई बैंक से 375 करोड़ रूपये का कर्ज लिया. इसके एवज में उन्होंने अपनी व्यक्तिगत और आरआरपीआर (राधिका रॉय प्रणय रॉय होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड) की एनडीटीवी में हिस्सेदारी को दांव पर लगा दिया जो मिलकर 61.45 प्रतिशत बनती थी.

रॉय दंपत्ति के कर्ज लेने का सिलसिला यहीं नहीं थमा. अब आईसीआईसीआई का कर्ज चुकाने के लिए उन्होंने ‘विश्वप्रधान कमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड’ (वीसीपीएल) से 350 करोड़ का कर्ज लिया. ये पैसा मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज का था जो वीसीपीएल के माध्यम से एनडीटीवी तक पहुंचा था. इसे लेने के लिए प्रणय और राधिका रॉय के सामने यह शर्त रखी गई थी कि वे एनडीटीवी में अपनी व्यक्तिगत हिस्सेदारी का बड़ा हिस्सा आरआरपीआर को (130 रुपये बाजार भाव वाला शेयर सिर्फ 4 रुपये में) ट्रांसफर करेंगे. उन्होंने ऐसा किया भी. जिसके चलते आरआरपीआर की एनडीटीवी में हिस्सेदारी 15 से बढ़कर पहले 26 और बाद में 29 प्रतिशत हो गई. इसके साथ ही आरआरपीआर, जो कि रॉय दम्पति की ही कंपनी थी, का नियंत्रण वीसीपीएल को दे दिया गया.

वीसीपीएल से मिले 350 करोड़ रूपये से रॉय दंपत्ति ने आईसीआईसीआई बैंक का कर्ज चुका दिया. जो हालिया एफआईआर हुई है और जिसके चलते रॉय दम्पति के घरों पर सीबीआई ने छापे मारे हैं, वह इसी गड़बड़ी को लेकर है. एफआईआर में आरोप हैं कि 375 करोड़ का कर्ज लेकर उन्होंने सिर्फ 350 करोड़ ही बैंक को वापस किये और बैंक ने भी इस पर कोई आपत्ति नहीं की. आरोप हैं कि ऐसा होने से बैंक को करीब 48 करोड़ रूपये (ब्याज मिलाकर) का नुकसान हुआ. हालांकि कानून के कुछ जानकार ऐसा नहीं मानते. उनका मानना है कि इसमें आपराधिक जैसा कुछ भी नहीं है क्योंकि यह बैंक और उसके ग्राहक के बीच का आपसी मसला है. अक्सर बैंक अपना कर्ज वसूलने के लिए इस तरह के समझौते करते ही रहते हैं.

कारवां की रिपोर्ट के मुताबिक रॉय दंपत्ति को 350 करोड़ रूपये देने के कुछ समय बाद वीसीपीएल ने आरआरपीआर को 53.85 करोड़ रूपये और दिए. इस कर्ज को इक्विटी में बदलने के बाद आरआरपीआर में वीसीपीएल की हिस्सेदारी 99.9 फीसदी हो गई. वीसीपीएल के पास यह पैसा कहां से होता हुआ आया था? यह सवाल इस पूरे मामले को और भी ज्यादा पेचीदा बना देता है. उसने एनडीटीवी को कर्ज देने के लिए खुद ये पैसा रिलायंस की एक सहायक कंपनी – शिनानो रिटेल से उधार लिया था. इस मामले में आयकर विभाग ने जो पड़ताल की थी उसमें पाया था कि वीसीपीएल एक बोगस कंपनी है जिसने एनडीटीवी को कर्ज देने के अलावा कभी कोई और लेन-देन नहीं किया.

इस पूरे विवाद से जुड़े एक मामले में आयकर विभाग ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया था कि ‘आरआरपीआर ने करीब 403 करोड़ रूपये का कर्ज वीसीपीएल से लिया है जिसने यह कर्ज शिनानो रिटेल से लिया है और शिनानो रिटेल ने खुद यह कर्ज रिलायंस ग्रुप की कंपनियों से लिया है.’

इस मामले में एक दिलचस्प मोड़ साल 2012 में आया. इस साल शिनानो रिटेल ने अपने खाते में दिखाया कि उसने 403.85 करोड़ रूपये का जो कर्ज वीसीपीएल को दिया था, वह कर्ज वीसीपीएल ने उसे वापस कर दिया है. इसका मतलब यह भी हुआ कि रिलायंस ने जो कर्ज रॉय और आरआरपीआर को दिया था, वह वापस हो गया था. लेकिन आरआरपीआर के खातों अब भी यह लिखा था कि उस पर वीसीपीएल का 403.85 करोड़ का कर्ज बकाया है. यहां से इस मामले में कई और सवाल पैदा होते हैं.

2012 में महेंद्र नाहटा की कंपनी ‘एमिनेंट नेटवर्क्स’ ने वीसीपीएल को 50 करोड़ रूपये दिए थे. इसके साथ ही वीसीपीएल द्वारा दिए गए 403.85 करोड़ के कर्ज पर एमिनेंट नेटवर्क्स का अधिकार हो गया था. लेकिन यहां एक गंभीर सवाल यह भी उठता है कि महज़ 50 करोड़ देने से ही 403.85 करोड़ के कर्ज पर एमिनेंट नेटवर्क्स को पूरा अधिकार कैसे दे दिया गया? इस सवाल का जवाब अब तक भी अनसुलझा ही है. इसके साथ ही कुछ और आरोप भी रॉय दंपत्ति पर हैं. इनमें मुख्य हैं कि उन्होंने वीसीपीएल से जो कर्ज लिया, उसकी जानकारी न तो सेबी को दी और न ही सूचना और प्रसारण मंत्रालय को ही इस लेन-देन के बारे में कुछ बताया जबकि ऐसा करना जरूरी था. एक अनसुलझा सवाल यह भी है कि आज आरआरपीआर – जिसके पास एनडीटीवी के कुल 29.18 प्रतिशत शेयर हैं – किसके नियंत्रण में है? कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के आंकडों के मुताबिक सिर्फ प्रणय और राधिका रॉय ही अभी भी इस कंपनी के निदेशक हैं.

एनडीटीवी से जुड़ा मुख्य वित्तीय विवाद यही है जो रॉय दम्पति के उस एक फैसले से शुरू हुआ था जब उन्होंने अपनी ही कंपनी के कुछ अतिरिक्त शेयर खरीदे थे. इसके अलावा एनडीटीवी पर कुछ मामले विदेशी निवेश लेने के भी हैं जिनकी जांच प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है. लेकिन सीबीआई की जो कार्रवाई एनडीटीवी पर हाल में हुई है, उसका इन अन्य मामलों से ज्यादा लेना-देना नहीं है.

एनडीटीवी के खिलाफ हुए अधिकतर मामलों में मुख्य शिकायतकर्ता संजय दत्त नाम के एक स्टॉक ब्रोकर हैं जिनके पास एनडीटीवी के लगभग एक प्रतिशत औऱ आईसीआईसीआई के कुछ शेयर हैं. साल 2013 में संजय दत्त ने ही प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग में इस संबंध में शिकायतें दर्ज की थी. उन्होंने 2015 में दिल्ली उच्च न्यायालय में प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग के खिलाफ मुकदमा भी किया था कि वे दोनों उनकी शिकायत पर एनडीटीवी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. तब दोनों विभागों ने न्यायालय को बताया था कि एनडीटीवी के खिलाफ इस मामले में साल 2011 से ही जांच चल रही है.

बीते सोमवार सीबीआई ने इन्हीं संजय दत्त की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए रॉय दम्पति के घरों में छापे मारे हैं. ऐसे में सवाल उठाना स्वाभाविक हैं कि जब यह मामले पहले से ही न्यायालयों में लंबित हैं और इनमें कोई नया आधार नहीं जुड़ा है तो अचानक सीबीआई की छापामारी की जरूरत क्यों पड़ी. साथ ही आईसीआईसीआई बैंक और रॉय दंपत्ति के बीच पैसों के जिस लेन-देन को अपराध मानते हुए यह छापामारी की गई है, कानून के जानकार उसे उतनी गंभीर अनियमितता नहीं मानते. और आईसीआईसीआई बैंक भी खुद लिखित में न्यायालय को यह बता चुका है कि उसने रॉय की कंपनी – आरआरपीआर – को जो कर्ज दिया था, वह कर्ज वह वापस कर चुकी है. यह मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स की वेबसाइट पर भी मौजूद है.

सीबीआई की इस हालिया कार्रवाई को इसलिए भी कुछ लोग राजनीति से प्रेरित मान सकते हैं क्योंकि इस एफआईआर में रॉय दम्पति, आरआरपीआर और आईसीआईसीआई बैंक के अधिकारियों को तो आरोपित बनाया गया है लेकिन रिलायंस की जिन बोगस कंपनियों के जरिये ये लेन-देन हुआ, वे इसमें शामिल नहीं है. इसमें कोई दोराय नहीं कि इन कंपनियों के साथ अजीबोगरीब लेन-देन रॉय दंपत्ति पर सवाल खड़े करते हैं. लेकिन सीबीआई का एक व्यक्तिगत शिकायत पर सिर्फ उन्हीं पर कार्रवाई करना भी कुछ सवाल तो खड़े करता ही है.

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