November 7, 2024

अमृता अस्पताल में किया गया जेस्टेशनल गिगेंटोमैस्टिया का सफल इलाज

Faridabad/Alive News: जेस्टेशनल गिगेंटोमैस्टिया रोग से ग्रस्त होने के कारण मध्य पूर्व की एक 23 वर्षीय महिला, अपनी युवावस्था के दौरान गर्भवती होने के बाद से एक कष्टदायी जीवन जी रही थी। एक दुर्लभ विकार के कारण, उसके स्तन आकार में बड़े हो गए थे, और स्तनों का वजन करीब 11 किलोग्राम तक पहुंच गया था और ज्यादा वजन होने की वजह से स्तन घुटनों तक पहुँच गए थे। उसकी हालत ऐसी हो गई थी की वो पांच मिनट से ज्यादा खड़ी नहीं हो पाती थी, जिसकी वजह से वो बाहर नहीं निकलती थी। 7 महीने तक इस स्थिति से पीड़ित रहने के बाद, वो फरीदाबाद के अमृता अस्पताल पहुंची, जहां विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा दस घंटे तक चली सर्जरी में उसका सफलतापूर्वक ऑपरेशन किया गया।

यह एक दुर्लभ स्थिति है, जिसमें गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक और विषम स्तन टिश्यू की वृद्धि के कारण स्तन तेजी से बढ़ने लगते हैं। महिला गंभीर शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक अक्षमता का सामना कर रही थी। उसके लिए चलना बेहद मुश्किल था, और वह अपने रोजमर्रा के काम भी नहीं कर सकती थी। इस स्थिति से निजात पाने के लिए मरीज ने अपने देश और भारत के कई दूसरे अस्पतालों में इलाज के लिए गई थी, लेकिन वहां उससे कहा गया कि उसे स्तन के विच्छेदन और बाद में फिर स्तन प्रत्यारोपण के साथ अलग पुनर्निर्माण की आवश्यकता होगी। उसे यह भी बताया गया कि सर्जरी के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव होने के कारण उसकी जान जाने का भी खतरा ज्यादा था। इसके बाद महिला फरीदाबाद के अमृता अस्पताल पहुंची। फरीदाबाद के अमृता अस्पताल में प्लास्टिक और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के प्रमुख डॉ. मोहित शर्मा ने कहा: “मरीज हमारे पास बहुत बड़े स्तनों के साथ आई थी।

पिछले सालों में उसके तीन गर्भपात हुए थे। वह अपनी तीसरी गर्भावस्था के दौरान द्विपक्षीय जेस्टेशनल गिगेंटोमैस्टिया से पीड़ित हुई थी, ये प्रेग्नेंसी भी 22 सप्ताह में ही गर्भपात होने की वजह से समाप्त हो गई। इस अवधि के दौरान महिला के स्तनों में अत्यधिक वृद्धि शुरू हो गई और कई महीनों तक स्थिति से पीड़ित होने के बाद हमारे पास आई। इस मामले में सर्जरी बहुत चुनौतीपूर्ण थी और परिणामों को अनुकूलित करने के लिए एक बहु-विषयक टीम दृष्टिकोण की आवश्यकता थी।”डॉक्टर के अनुसार, यह एक पेचीदा और अनूठा मामला था, जहां महिला के पूरे स्तन के टिश्यू ढह गए थे और छाती से घुटनों तक नीचे लटक रहे थे। डॉ. मोहित शर्मा के नेतृत्व में सर्जनों ने मास्टेक्टॉमी और फ्री निप्पल ग्राफ्ट का विकल्प चुना, जहां स्तन से निपल्स को पूरी तरह से हटा दिया जाता है और स्किन ग्राफ्ट के रूप में बदल दिया जाता है। अन्य प्रकार की ब्रेस्ट रिडक्शन सर्जरी इस मामले में कारगर नहीं होती, क्योंकि निप्पल और एरियोला को रक्त की आपूर्ति बनाए रखना संभव नहीं होता। डॉक्टरों ने मास्टक्टोमी की और निप्पल-और-एरियोला कॉम्प्लेक्स को अलग कर, घटे हुए स्तन के ऊपर ग्राफ्ट किया।

डॉक्टर ने आगे बताया, “हमने फिर पूर्व-चिह्नित साइट पर एक निप्पल-और-एरियोला ग्राफ्ट रखा, इसे एक विशिष्ट गोंद के साथ सुरक्षित कर, इसे ड्रेसिंग के साथ कवर किया ताकि ग्राफ्टिंग के बाद पूरी तरह से ज़ख्म भर सके। यह मामला बेहद जटिल था क्योंकि रक्तस्राव को रोकना और सामान्य दिखने वाले स्तन बनाना बहुत मुश्किल था। हालांकि, हमारी योजना और दो-टीम दृष्टिकोण के साथ, हम खून की कमी को कम कर सके और मरीज को संतोषजनक परिणाम दे सके।” यह सर्जरी डॉ. मोहित शर्मा ने अमृता अस्पताल, फरीदाबाद के तीन अन्य सर्जनों के साथ की, जिनमें सीनियर कंसलटेंट, डॉ. अनिल मुरारका, डॉ. वसुंधरा जैन और डॉ. नेहा सूरी शामिल थे।

सर्जरी के बाद महिला ने कहा, “सर्जरी के नतीजों से मैं बहुत खुश हूं और अब मैं फिर से पहले जैसी दिखती हूं। मैं एक बार फिर सामान्य जीवन जीने की उम्मीद करती हूं। मैं अमृता अस्पताल के डॉक्टरों को इस सर्जरी का प्रयास करने और इसे सफल बनाने के लिए धन्यवाद देती हूं।”