November 27, 2024

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर बन रहा है दुर्लभ योग, पूजा में श्रीकृष्ण की लोकप्रिय वस्तुएं शामिल करने से मिलेगा लाभ

Faridabad/Alive News : कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे केवल जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता है, यह हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल जन्माष्टमी का त्योहार 30 अगस्त 2021 को मनाया जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी तिथि सोमवार रोहिणी नक्षत्र व वृष राशि में मध्य रात्रि में हुआ था।

ऐसे में इस साल जन्माष्टमी के अवसर पर कई विशेष संयोग बनने जा रहे हैं। श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, तो इस बार भी जन्माष्टमी पर कृष्ण के जन्म के समय रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि विद्यमान रहेगी। जिससे जयंती योग का निर्माण होता है। इसके अलावा वृष राशि में चंद्रमा रहेगा। इस दिन सोमवार भी है तो यह काफी शुभ माना जा रहा है।

आज जन्माष्टमी का पावन त्योहार है और आधी रात को बाल गोपाल का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। जन्माष्टमी का त्योहार भारतीय जनमानस में रचे-बसे योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जन-जन के लिए ऐसे आदर्श हैं। जो सभी को सुखी जीवन जीने के सूत्र सिखाते हैं। वे पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक से परे पूर्ण पुरुष की अवधारणा को साकार करते हैं। श्रीकृष्ण के जीवन में संघर्ष, प्रेम, रस, विरह, कलह, युद्ध, ज्ञान, भक्ति सब कुछ समाहित है। श्रीकृष्ण के जन्म दिवस उनके गुणों को याद करने और उन्हें आत्मसात का दिन है।

चंदन भगवान कृष्ण को अत्यंत प्रिय है। इसके बिना इनकी पूजा पूर्ण नहीं होती। यह गोपी चंदन, हरि चंदन, सफ़ेद चंदन सहित कई प्रकार का होता है। चंदन ताजगी का प्रतीक है। श्री कृष्ण के बृज में स्थित गोवर्धन पर्वत उठाए स्वरुप की पूजा-अर्चना की जाती है। गोवर्धन पर्वत को भक्तजन गिरिराज भी कहते हैं। ये भगवान से सरंक्षण पाने का प्रतीक है। भगवान का यह स्वरूप मन को सकारात्मक ऊर्जा से भरने वाला एवं आनंद देने वाला है। इस रूप के दर्शन मात्र से समस्त चिंताएं दूर होती हैं। अतः ये आनंद का प्रतीक है।

वहीं सर्वप्रथम नंदबाबा ने अपने कान्हा के लिए बांसुरी लेकर दी थी। श्री कृष्ण हर पल प्रेम और शांति का संदेश देने वाली बांस की बांसुरी को अपने साथ रखते हैं। बांसुरी सम्मोहन, ख़ुशी, आकर्षण व मन की शांति का प्रतीक मानी गई है। विश्वरूप अथवा विराट रूप भगवान कृष्ण का सार्वभौमिक स्वरूप है। महाभारत युद्ध होने से पूर्व कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट रूप के दर्शन करवाए थे। यह रूप ऊर्जा का प्रतीक है।

इसके अलावा वैजयंती माला श्री कृष्ण अत्यधिक प्रिय है। को वैजयंती के फूल और इसकी माला बेहद प्रिय है भगवान श्री कृष्ण ने जब पहली बार राधा व अन्य गोपियों के साथ रासलीला खेली थी, तब वैजयंती की माला राधाजी ने उन्हें पहनाई थी। यह प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। इसके अलावा श्रीकृष्ण के मुकुट पर मोरपंख सबसे पहले उनकी माता यशोदा ने लगाया था। प्रेम में ब्रह्मचर्य की महान भावना को समाहित करने के प्रतीक रूप में कृष्ण मोरपंख को अपने सिर पर धारण करते हैं। यह उनके प्रेम और सौंदर्यबोध का प्रतीक है।