Chhatarpur/Alive News : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि जिनको राम मंदिर बनाना है, पहले उन्हें खुद राम बनना पड़ेगा। मंदिर बनाने में पेश आने वाली कठिनाइयों को तोa दूर कर लिया जाएगा। बुधवार को भागवत एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मध्य प्रदेश के ओरछा पहुंचे थे। पिछले साल नवंबर में कर्नाटक के उडुपी में धर्म संसद में उन्होंने कहा था कि राम जन्मभूमि पर कोई दूसरा ढांचा नहीं, बल्कि सिर्फ राम मंदिर बनेगा। ये हमारी आस्था का मामला है। बता दें कि अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।
राम मंदिर का निर्माण इच्छा नहीं, संकल्प है
– संघ प्रमुख ने कहा, “रामजी का मंदिर बन रहा है। हमारी-आपकी केवल इच्छा नहीं है, ये हमारा-आपका संकल्प है। इस संकल्प हम पूरा करेंगे।”
– “1988 से पड़ा है। बनेगा…बनेगा। अभी तक नहीं बन रहा है। बाकी छोटी-मोटी कठिनाइयां हैं, जो हैं। मुख्य कठिनाई क्या है कि जिनको राम का मंदिर बनाना है, उनको कुछ-कुछ राम खुद को बनना है। वो काम हम जितना करेंगे, उतना प्रभु रामजी जल्द से जल्द यहां अवतरित होंगे।”
– “मंदिर में अपनी जन्मभूमि में स्थापित होंगे। अपने लिए एक भव्य परिवेश हमारे हाथ से उनकी इच्छा वो बना लेंगे। इसमें संदेह करने का कोई कारण नहीं है। यही होगा और कुछ नहीं होगा।”
कर्नाटक की धर्म संसद में भी उठा था राम मंदिर मुद्दा
– पिछले साल नवंबर में कर्नाटक में हुई धर्म संसद में करीब 2 हजार साधु-संत जुटे थे। तब भागवत ने कहा था, ”अयोध्या में राम मंदिर बनाने को लेकर कोई संदेह के हालात पैदा नहीं होने चाहिए। हम इसे बनाएंगे। ये कोई जनता को लुभाने वाला एलान नहीं है, बल्कि हमारी आस्था का मुद्दा है। ये कभी नहीं बदलेगा। मंदिर के लिए जागरूकता जरूरी है।”
– “सालों की कोशिशों और बलिदान के बाद अब यह (मंदिर निर्माण) संभव लग रहा है। हम अपना लक्ष्य हासिल करने के करीब है, लेकिन इस स्थिति में ज्यादा सावधानी बरतनी होगी। हालांकि, अभी मामला कोर्ट के पास है।”
अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई
– अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच में सुनवाई चल रही है।
– 14 मार्च को को सुनवाई टालने की मांग करते हुए बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह केस सिर्फ भूमि विवाद नहीं, राजनीतिक मुद्दा भी है। चुनाव पर असर डालेगा। 2019 के चुनाव के बाद ही सुनवाई करें। हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को बेतुका बताते हुए कहा- हम राजनीति नहीं, केस के तथ्य देखते हैं।
– इसी सुनवाई के दौरान कुल 19,590 पेज में से सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के हिस्से के 3260 पेज जमा नहीं हुए थे।
– सुप्रीम कोर्ट ने सभी वकीलों से कहा, “आप लोग आपस में बैठकर बात करें। ये निश्चित करें कि सभी डॉक्युमेंट्स भरे जाएं और उनका नंबर दर्ज हो। अगली सुनवाई 8 अप्रैल को होगी।
कितनी पिटीशन्स दायर की गई थीं?
– मामले में 7 साल से पेंडिंग 20 पिटीशन्स इस साल 11 अगस्त को पहली बार लिस्ट हुई थीं। पहले ही दिन डॉक्युमेंट्स के ट्रांसलेशन पर मामला फंस गया था। संस्कृत, पाली, फारसी, उर्दू और अरबी समेत 7 भाषाओं में 9 हजार पन्नों का अंग्रेजी में ट्रांसलेशन करने के लिए कोर्ट ने 12 हफ्ते का वक्त दिया था। इसके अलावा 90 हजार पेज में गवाहियां दर्ज हैं। यूपी सरकार ने ही 15 हजार पन्नों के दस्तावेज जमा कराए हैं।
7 साल में SC में 20 अर्जियां, 7 चीफ जस्टिस बदले
– हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुन्नी वक्फ बोर्ड 14 दिसंबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। फिर एक के बाद एक 20 पिटीशन्स दाखिल हो गईं। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया, लेकिन सुनवाई शुरू नहीं हुई। इस दौरान 7 चीफ जस्टिस बदले। सातवें चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने इस साल 11 अगस्त को पहली बार पिटीशन्स लिस्ट की।
HC ने विवादित जमीन 3 हिस्सों बांटने का दिया था ऑर्डर
– इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन 3 बराबर हिस्सों में बांटने का ऑर्डर दिया था। अदालत ने रामलला की मूर्ति वाली जगह रामलला विराजमान को दी। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को और बाकी हिस्सा मस्जिद निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया था।