Faridabad/Alive News : हरियाणा अभिभावक एकता मंच ने कहा है कि फीस को लेकर उच्चतम न्यायालय द्वारा जो फाइनल फैसला 3 मई को दिया गया था वह सिर्फ राजस्थान राज्य के लिए है। मंच ने हरियाणा के अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. महावीर सिंह को पत्र लिखकर उच्चतम न्यायालय के आखिरी फैसले का बारीकी से अध्ययन करने और उच्चतम न्यायालय के अंतरिम फैसले 12 मार्च के संदर्भ में 9 अप्रैल को शिक्षा निदेशक पंचकूला द्वारा जल्दबाजी में निकाले गए आदेश को वापस लेने की मांग की है।
मंच के प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट ओपी शर्मा व प्रदेश महासचिव कैलाश शर्मा ने कहा है कि राजस्थान सरकार व राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा फीस को लेकर अभिभावकों के हित में दिए गए फैसले को लेकर वहां के प्राइवेट स्कूल संचालकों की ओर से राजस्थान शिक्षा भारतीय स्कूल, जोधपुर ने उच्चतम न्यायालय में एक याचिका एएनआर बनाम राजस्थान राज्य के नाम से दर्ज की। जिस पर उच्चतम न्यायालय ने दिनांक 12 मार्च को अंतरिम फैसला सुनाया। जिसमें राजस्थान के प्राइवेट स्कूलों को कुछ राहत प्रदान की गई।
मंच का आरोप है कि हरियाणा के प्राइवेट स्कूलों के दबाव में शिक्षा निदेशक सीनियर सेकेंडरी जे. गणेशन ने 9 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय के इस अंतरिम फैसले को संलग्न करते हुए सभी जिला शिक्षा अधिकारी को आदेश दिया कि वे अपने-अपने जिले में राजस्थान के मामले में उच्चतम न्यायालय के अंतरिम फैसले के दिशा निर्देशों को लागू करें। शिक्षा निदेशक के इस आदेश के बाद सभी प्राइवेट स्कूल संचालकों ने अभिभावकों पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि वे बड़ी हुई ट्यूशन फीस, एनुअल चार्ज, डेवलपमेंट, आईटी, एग्जाम, ट्रांसपोर्ट आदि फंडों में फीस जमा कराएं।
जिन अभिभावकों ने इस मनमानी का विरोध किया स्कूल प्रबंधकों ने उनके बच्चों का रिजल्ट रोका और उन्हें प्रमोट नहीं किया, आगे ऑनलाइन क्लास बंद कर दी और भी कई तरह से बच्चों और उनके अभिभावकों को हरासमेंट किया। मंच ने इसकी शिकायत चेयरमैन एनसीपीआरसी से की। तब जाकर प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर कुछ हद तक रोक लगी, लेकिन उन्होंने बढ़ी हुई ट्यूशन फीस व अन्य फंडों में फीस लेना जारी रखा। मंच के प्रदेश संरक्षक सुभाष लांबा व जिला सचिव डॉ. मनोज शर्मा ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय के फाइनल फैसले का उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ एडवोकेट खगेश बी. झा व ऑल इंडिया पैरेंट्स एसोसिएशन आईपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने बारीकी से अध्ययन करके बताया है कि उच्चतम न्यायालय के फाइनल फैसले के पैरा 80 में यह स्पष्ट किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय के सभी दिशा निर्देश, आदेश केवल राजस्थान राज्य पर ही लागू होते हैं न कि अन्य राज्यों पर।
मंच का कहना है कि उच्चतम न्यायालय का फैसला पूरी तरह से राजस्थान राज्य के लिए है। हरियाणा के प्राइवेट स्कूल संचालक उच्चतम न्यायालय के अंतरिम फैसले के आधार पर जो मनमानी कर रहे हैं वह पूरी तरह से गैरकानूनी है इस पर रोक लगनी चाहिए। मंच ने इस बात पर हैरानी जताई है कि हरियाणा सरकार ने उच्चतम न्यायालय के अंतरिम फैसले के बाद तो पत्र जारी कर दिया, लेकिन उच्चतम न्यायालय के फाइनल फैसले के बाद आज तक कोई भी पत्र जारी नहीं किया है। जिसे जारी करने के लिए ही अतिरिक्त मुख्य सचिव शिक्षा डॉ. महावीर सिंह को पत्र लिखा गया है और यह भी मांग की गई है कि शिक्षा निदेशक द्वारा 9 अप्रैल को जो पत्र जारी किया गया है। उसे तुरंत वापस लिया जाए, प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए और अभिभावकों से सिर्फ बिना बढ़ाई गई ट्यूशन फीस ही मासिक आधार पर बिना किसी अन्य फंडों के वसूल की जाए। जिन अभिभावकों से मनमानी फीस वसूली गयी है। उसे वापस कराया जाएगा या आगे की ट्यूशन फीस में एडजस्ट कराया जाए।