November 16, 2024

विश्व वानिकी दिवस पर जूनियर रेड क्रॉस द्वारा पौधरोपण

 सराय ख्वाजा राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय की जूनियर रेड क्रॉस और सैंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड द्वारा आज विश्व वानिकी दिवस मनाया गया। इस अवसर पर विद्यालय के जूनियर रेड क्रॉस व सैंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड अधिकारी रविंदर कुमार मनचंदा ने बच्चों और अध्यापकों के साथ पौधरोपण किया। मनचंदा ने पौधरोपण करते हुए बच्चों को बताया कि विश्व वानिकी दिवस पहली बार वर्ष 1971 में इस उद्देश्य से मनाया गया था। कि दुनिया के तमाम देश अपनी मातृभूमि की मिट्टी और वन-सम्पदा का महत्व समझे तथा अपने -अपने देश के वनों और जंगलों का संरक्षण करें। अगर हम अपने देश भारत की बात करें तो 22.7 भूमि पर ही वनों और जंगलों का अस्तित्व रह गया है ।

वर्तमान में केवल 19.39 भूमि ही वन युक्त रह गई है । भारत में 19.39 भूमि पर वनों का विस्तार है। और छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे अधिक वन सम्पदा है उसके बाद क्रमश मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य में, भारत में वन महोत्सव तो जुलाई 1950 से ही मनाया जा रहा है। परन्तु वानिकी दिवस की शुरुआत तत्कालीन गृहमंत्री कुलपति कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने की थी।1952 में निर्धारित “राष्ट्रीय वन नीति” के तहत देश के 33.3 त्न क्षेत्र पर वन होने चाहिए। लेकिन वर्तमान समय में ऐसा नहीं है। वन-भूमि पर उद्योग-धंधों तथा मकानों का निर्माण, वनों को खेती के काम में लाना और लकडिय़ों की बढती माँग के कारण वनों की अवैध कटाई आदि वनों के नष्ट होने के प्रमुख कारण है। इसलिए अब समय आ गया है कि देश की ‘राष्ट्रीय निधि’ को बचाए और इनका संरक्षण करें। हमें वृक्षारोपण यानि पेड़-पौधे लगाने को बढ़ावा देना चाहिए। इसके सम्बन्ध में प्रसिद्ध पर्यावरणविद कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने कहा था कि ‘वृक्षों का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है’।

विद्यालय के इंग्लिश प्रवक्ता रविंदर कुमार मनचंदा ने कहा की इस दिन दक्षिणी गोलार्ध में रात और दिन बराबर होते हैं. यह दिन वनों और वानिकी के महत्त्व और समाज में उनके योगदान के तौर पर मनाया जाता है. रियो में भू-सम्मेलन में वन प्रबंध को मान्यता दी गई थी तथा जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी के तापमान में वृद्धि से निपटने के लिए वन क्षेत्र को वर्ष 2007 में 25 प्रतिशत तथा 2012 तक 33 प्रतिशत करने की आवश्यकता पर बल दिया गया था वन-भूमि पर उद्योग-धंधो तथा मकानों का निर्माण, वनों को खेती के काम में लाना और लकडिय़ों की बढती माँग के कारण वनों की अवैध कटाई आदि वनों के नष्ट होने के प्रमुख कारण है. जिसमें विगत नौ वर्शों में 2.79 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र विकास की भेंट चढ़ गये जबकि 25 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रत्येक साल घट रहा है। पेड़ों की अंधाधुध कटाई एवं सिमटते जंगलों की वजह से भूमि बंजर और रेगिस्तान में तब्दील होती जा रही है जिससे दुनियाभर में खाद्य संकट का खतरा मंडराने लगा है।

यूएनईपी के मुताबिक, विष्व में 50-70 लाख हेक्टेयर भूमि प्रतिवर्ष बंजर हो रही है वहीं भारत में ही कृषि-योग्य भूमि का 60 प्रतिषत भाग तथा अकृषित भूमि का 75 प्रतिशत भाग हास हो रहा है भारत में पिछले नौ सालों में 2.79 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र विकास की भेंट चढ़ गए जबकि यहां पर कुल वन क्षेत्रफल 6,90,899 वर्ग किलोमीटर है। वन न केवल पृथ्वी पर मिट्टी की पकड़ बनाए रखता है बल्कि बाढ़ को भी रोकता और मृदा को उपजाऊ बनाए रखता है। मानव को अपनी गतिविधियों पर सोच-समझकर काम करना होगा जिससे कि इंसान प्रकृति से दुबारा जुडक़र उसका संरक्षण कर सके अन्यथा वह दिन अब ज्यादा दूर नहीं जब जैव विविधता पर मंडराता यह खतरा भविश्य में हमारे अस्तित्व पर भी प्रश्न चिह्न लगा दे।

इस मौके पर प्राचार्या नीलम कौशिक, रविंदर कुमार मनचंदा, शारदा, प्रज्ञा देवी, सरोज दलाल, विनोद अग्रवाल, विनोद शर्मा, वीरपाल, रूपकिशोर, संजय शर्मा, श्रीनिवास, लीलू, ईश कुमार, ब्रह्मदेव यादव , बिजेन्दर सिंह, वेदवती और रमाकांत गुप्ता ने जूनियर रेड क्रॉस के माध्यम से घर में आफिस में जहाँ भी अवसर मिले पौधे लगा कर प्रदूषण दूर कर वन क्षेत्र बढाने का निवेदन किया।