November 18, 2024

भाग-1 : लोकतंत्र कैसे मरता है?

जे.बी.शर्मा

आज कमोबेश समूचे विश्व में लोकतांत्रिक राज-व्यवस्थाओं को बचाने के प्रयास बड़ी शिद्दत से चल रहे हैं, और इस बात पर भी गहन विचार-मंथन हो रहा कि विभिन्न देशों में डेमोक्रेसी कैसे समाप्त हो रही है ? ऐसे में हमें भी अपने देश में चल रही मौजूदा दौर की राजनैतिक -प्रवृति को समझना चाहिए या यूं कहें कि समझना ही होगा। निसंदेह जिस तरह के राजनीतिक घटनाक्रम रह-रह कर उभरते हैं। उससे तो कई बार शंका पैदा होने लगती है कि क्या भारत में लोकतंत्र सुरक्षित है या आने वाले समय में सुरक्षित रहेगा? लोक तंत्र कैसे मरता है ? इसे समझने के लिए हम जिस पुस्तक की मदद ले रहे हैं उसका विवरण इस प्रकार है:

How Democracies Die
Written by Steven Levitsky and Daniel Ziblatt.

हम बात शुरू करते हैं स्टिवन लेवितस्की और डेनियल जि़बलात द्वारा उपरोक्त पुस्तक में लिखे उस परिचय से जिसमें उन्होंने एक सवाल से बात शुरू की है:
Is our democracy in danger? It is a question we never thought we’d be asking. We have been ( both the writers) colleague for fifteen years, thinking, writing, and teaching students about failures of democracy in other places and times –Europe’s dark 1930s, Latin America’s repressive 1970s,. We have spent years researching new forms of authoritarianism emerging around the globe. For us, how and why democracies die has been an occupational obsession.

स्टिवन और डेनियल अपनी पुस्तक के परिचय की शुरूआत एक अहम सवाल से करते हैं और वह यह कि : क्या हमारे देश में लोकतंत्र ख़तरे में है? (यहां वे बात अमेरिका की कर रहे हैं) ऐसा उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि हम यह भी सवाल पूछ रहे होंगे। वे दोनों पिछले 15 सालों से सहकर्मी, हैं और विचार-चिंतनमनन करते रहे हैं, पढ़ रहे है और विद्यार्थियों को अन्य स्थानों पर डेमोक्रेसी की असफलताओं के बारे बताते आ रहें हैं- यूरोप में 1930 में आई मंदी के बारे में और लैटिन अमरिका में 1970 में पनपी दमनकारी व्यवस्था के बारे में। उनका आगे कहना है कि, ‘हमने कई साल इस बात का अनुसंधान करते हुए बिताये हैं कि सारे विश्व में नई तानाशाही कहें या निरंकुशवाद भावी प्रतीत हो रहा है।

कथित पुस्तक के लेखकों, स्टिवन लेवितस्की और डेनियल जि़बलात द्वारा परिचय में ही दक्षिण अमरिका के चिली देश की राजधानी सेंटीएगो के नव-आदर्श राष्ट्रपति – राजमहल- ला-मोनेडा पर ब्रिटिश के हंटर विमानों द्वारा बंबारी करके तबाह कर दिया जाता है। इसके बाद वहां के तत्कालीन वामपंथी गठनबंधन से बने राष्ट्रपति सलेवेडर एलेन्डा को कैसे ज़बरन अपदस्थ किया। उसका उल्लेख किया है। पुस्तक में उल्लेखित विवरण के अनुसार कथित घटना 11 सिंतबर 1973 की दोपहर की है, कुछ महीनों की बड़ती बेचैनी के कारण लोग सेंटीएगो, चिली की सड़कों पर उतर आए थे। राष्ट्रपति सलेवेडर वामपंथी गठबंधन के दम पर केवल तीन साल पहले ही राष्ट्रपति बने थे, जिन्हें राज-भवन में बंधक बना लिया गया। उनके समय के दौरान चिली सामाजिक अशांति के कारण तबाह था, आर्थिक संकट से गुज़र रहा था, राजनीतिक गतिहीनता के दौर से गुज़र रहा था। वहीं तत्कालीन राष्ट्रपति सलेवेडर का कहना था कि वह अपने पद का तब तक त्याग नहीं करेंगे जब तक वे अपना कार्य पूरा नहीं कर लेते- लेकिन अब सच्चाई सामने आन खड़ी हुई थी। जनरल अगस्तो पिनोचैट के नेतृत्व में चिली के शस्त्र बलों ने देश पर कब्ज़ा कर लिया था। विनाश की प्रात: चिली के राष्ट्रपति सलेवेडर एलेंडा ने रेडियों से अपना नाफरमानी के पैगाम का राष्ट्रीय प्रसारण इस उम्मीद के साथ पेश किया कि उनका यह पैगाम सुनकर लोग डेमोक्रेसी की रक्षा के लिए गलियों – सड़कों पर उतर आयेंगे। लेकिन किसी प्रकार का प्रतिरोध प्रकट हो ना सका। परिणामत: राज-भवन की सुरक्षा में जुटी मिलेट्री पुलिस ने सलेवेडर को मुक्त कर दिया, उनकी नाफरमानी के पैगाम का नशर हो रहा प्रोग्राम खामोश कर दिया गया। इस घटना के मात्र एक घंटे बाद सलेवेडर एलेंडा की मौत हो जाती है। उसी के साथ चिली के लोकतंत्र की भी।

At midday on September 11, 1973, after months of tensions in the streets of Santiago,Chile, British- made Hawker Hunter jets swooped overhead, dropping bombs on La Moneda, the neo classical presidential palace in the centre of the city. As the bombs continued to fall, La Moneda burned. President Salvador Allende, elected three years earlier at the head of a leftist coalition,was barricaded inside. During his term,Chile had been wracked by social unrest, economic crisis, and political paralysis. Allende had job- but now the moment of truth had arrived. Under the command of General Augusto Pinochet, Chile’s armed forces were seizing control of the country. Early in the morning on that fateful day, Allende offered defiant words on a national radio broadcast, hoping that his many supporters would take to the streets in defense of democracy. But the resistance never materialized. The military police who guarded the palace had abandoned him; his broadcast was met with silence. Within hours, President Allende was dead. So, too, was Chilean democracy

तो हमारे पाठक इस लेख में उल्लेखित पुस्तक के माध्यम से इतनी बात अवश्य समझ सकते है कि तानाशाहों द्वारा डेमोक्रेसी कैसे समाप्त की जा सकती है। इसी शीर्षक की दूसरे भाग में हम आपको लोकतंत्र की महत्ता आदि और इसको कैसे मारा जाता है को समझने के लिए पुस्तक में उल्लेखित अन्य दृष्टांतों की मदद लेंगे। क्रमश:

(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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