New Delhi/Alive News : भगत सिंह का जन्म लायलपुर (पाकिस्तान) स्थित बंगा गांव में हुआ था। भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने में अहम योगदान निभाया और अंग्रजों से जमकर टक्कर ली।
जलियावाला बाग नरसंहार
कहा जाता है कि भगत सिह को देश भक्ति विरासत मे मिली थी, क्योंकि उनके दादा अर्जुन सिंह, उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह गदर पार्टी के अभिन्न हिस्से थे। जब 13 अप्रैल 1919 को जलियावाला बाग में नरसंहार हुआ, तो इसे देखकर भगत सिंह काफी व्यथित हुए थे और इसी के कारण अपना कॉलेज छोड़ वो आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे।
23 की उम्र में फांसी
भगत सिंह के आजादी के जंग में कूदने से जहां एक तरफ इस जंग को रफ्तार मिली, वहीं दूसरी तरफ अंग्रेज उन्हें देखकर हैरान रह गए थे। अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। इस दौरान उन्होंने अपने क्रांतिकारी साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर असेंबली में बम फेंका। इसके बदले में अंग्रजों ने राजगुरु और सुखदेव के साथ भगत सिंह को भी फांसी दे दी और उस समय भगत सिंह की उम्र महज 23 साल थी।
मानद न्यायाधीश ने सुनाई फांसी की सजा
वो दौर आजादी की लड़ाई का था और उस समय भगत सिंह इस लड़ाई का एक चर्चित चेहरा बन चुके थे। ऐसे में उनसे जुड़ी कोई भी खबर आग की तरह फैल जाती थी। जब भगत सिंह की फांसी मुकर्रर हुई तो उनकी कम उम्र और पूरे भारत में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए कोई भी मजिस्ट्रेट उन्हें फांसी की सजा सुनाने को तैयार नहीं था। ऐसे में अंग्रेजों ने एक मानद न्यायाधीश को बुलाया और उसके हस्ताक्षर लेने के बाद ही उनकी कस्टडी में भगत सिंह को फांसी दी गयी।
मिली जानकारी के मुताबिक उस समय भगत सिंह की मां विद्यावती चाहती थी कि उनके भगत सिंह के सिर पर सेहरा बंधे। ऐसे में उन्होंने भगत सिंह से जब शादी की बात की तो वह कानपुर चले गए और जाते हुए अपने माता-पिता से कह गए कि इस गुलाम भारत में मेरी दुल्हन बनने का अधिकार सिर्फ मेरी मौत को है, जिसके बाद वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएश में शामिल हो गए।