December 5, 2024

महाराणा प्रताप जयंती: शौर्य बल साहस और बलिदान से भारत भूमि सदा उनका गुणगान करती रहेगी

“जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमे रसधार नहीं ह्रदय नहीं वो पत्थर है स्वदेश का जिसमे प्यार नहीं” मैथिलीशरण गुप्त की ये अमर पंक्ति देशधर्म हेतु बलिदान होने का भाव सदा जगाती रहेंगी। आज देशधर्म हेतु अमर हुए महाराणा प्रताप की जयंती है। उनके अप्रितम शौर्य बल साहस बलिदान से भारत भूमि सदा सदा उनका गुणगान करती रहेगी। करीब 45 किलोमीटर लंबी 20 फुट चौड़ी कुम्भलगढ़ की पक्की प्राचीर के सबसे ऊंचे स्थान बादल महल में उनका जन्म हुआ था।

उनके पूर्वज सुर्यवंशी सिसोदिया राजपूतों में वीर बप्पा रावल, मोकल, कुम्भा, उदयसिंह, रतनसिंह और रानी पदमावती रहें हैं। जिनकी आन बान और शान सदा हमें देशधर्म हेतु प्रेरित करती रहेगी। गम्भीरी नदी के किनारे स्थित 18 किलोमीटर परिधि 6 किलोमीटर लम्बाई 2 किलोमीटर चौड़ाई और समुद्रतल से 2000फुट ऊँचा महान चित्तौड़गढ़ 7 दरवाजे और मछली के आकार वाला किला अपने शौर्य की गाथा आने वाली नस्लों को सदा सुनाता रहेगा।

किले में 50 से ज्यादा तालाब रानी पद्मिनी महल उनका लगभग 12000 वीर राजपुतनियो सहित अग्निहोम जौहर स्थल,122फुट ऊंचा 9 मंजिली 600 वर्ष पुराना विजय स्तम्भ, मीराबाई जी के श्रीकृष्ण प्रेम स्वरूप पूजित मन्दिर ,गोरा बादल ,जयमल फत्ता की शौर्य स्थली, दानवीर भामाशाह की हवेली ,गौमुख धारा तालाब ,पन्ना धाय के बलिदान सबको गाइडों से सुनकर देखकर आपकी बाजुएँ फड़कने लगेगी ये मेरा स्व अनुभव है।

चित्तौड़गढ़ की लड़ाई अकबर से हारकर महाराणा प्रताप ने यज्ञ से 150 किलोमीटर दूर अरावली के ऊंचे सघन वनों से युक्त गोगूंदा चावण्ड को अपनी राजधानी बनाया जहां पुंजा भील ने उनकी बहुत सहायता की आज भी उदयपुर में रहने वाले महाराणा प्रताप के वंशज महाराजाओं का जनता बहुत बहुत आदर सम्मान करती है। आज भी इनके झंडे पर भगवान सूर्यदेव और पुंजा भील तलवार भाले का निशान बना है नीचे राज वाक्य लिखा है “जो दृढ़ राखे धर्म को ताहि राखे करतार ” उदयपुर से 40 किलोमीटर दूर गोगुंदा के पास जंगलों में मायरा कि गुफाएं हैं जिनमें स्वाधीनता को समर्पित महाराणा प्रताप ने कई वर्ष गुजारे थे।

यहीं पर कुंभलगढ़ किले के पास स्थित हल्दी घाटी रक्त तलाई है जिसके नाम से ही ज्ञात होता है कि यहां राजपूतों और मुगलों की सेनाओं को भीषण युद्ध हुआ था कि यहां एक रक्त का तालाब सा बन गया था जरा सोचकर देखिए कि अपने से 4 गुणा ज्यादा बड़ी सेना और देशधर्म हेतु बलिदानी वीरों का साहस यहीं पर उस चेतक कि समाधि भी बनी है जिसपर सवा मण यानी 50 किलोमीटर के भाले और ढाई मण यानि 100 किलोमीटर के योद्धा बाने से सज्जित 170 किलोमीटर वजनी और साढ़े सात फुट ऊंचे महान महाराणा प्रताप ने अपनी 8 फुट लंबी 40 किलोमीटर वजनी तलवार से ऐसा जौहर दिखाया था कि उनके एक वार से घोड़े सहित घुडसवार 2भाग में कट जाते थे।

हल्दी घाटी के युद्ध के बाद अकबर ने मानसिक हार मान ली थी इसके बाद महाराणा प्रताप ने अधिकांश किले वापस जीत लिए थे। उन्होंने जंगलों में कभी भी घास कि रोटी नहीं खाई ये सब बनावटी बाते हैं। ये समूचा इलाका मैंने भलीभांति कई बार देखा है आज भी अरावली के इन ऊंचे पहाड़ों में खूब फलदार पेड़ मिलते है। जब आज से 500 वर्ष पहले इतनी ज्यादा बारिश होती थी फिर इस इलाके में कोई कमी कैसे रहती और एक बात बहुत बड़े तालाब के मध्य बनी महाराणा प्रताप की समाधि चावंड गोगुंदा के किले महल देखकर ही पता चलता है कि इस पूरे इलाके में उनका बहुत वर्षों तक राज रहा था अंतिम बात जब अकबर ने बहाने से प्रात स्मरणीय गोस्वामी तुलसीदास महाराज को दिल्ली लाल किले में बुला कर श्रीराम भक्ति का चमत्कार दिखाने हेतु कैद किया।

तब हजारों हजार बंदरो ने उसके किले महलों में घुसकर उसकी सारी सेना को काट काटकर चमत्कार दिखाया तो उसकी आंख खुली तबसे वो हिन्दू धर्म के प्रति उदार बना तो उसने गोस्वामी जी की कई दिनों तक सेवा करते हुए पूछा की महाराणा प्रताप से मै कैसे जीतूंगा तो गोस्वामी तुलसीदास ने कहा कि महाराणा प्रताप सूर्यवंशी भगवान श्रीरामचंद्र का वंसज है। उसके सामने मत जाना तू मारा जाएगा इसीलिए अकबर कभी भी राणा के सामने सामने नहीं लडा तो महान कों हुआ निश्चय ही सूर्यवंशी महाराणा प्रताप।