November 15, 2024

जानिए, हम क्यों करते हैं किस

जब हम किसी को ‘किस’ करते हैं तो एक ‘किस’ के दौरान करीब 8 करोड़ बैक्टीरिया का आदान प्रदान होता है. इनमें से सभी बैक्टीरिया नुकसान पहुंचाने वाले नहीं हों, ऐसा भी नहीं है.

इसके बावजूद कोई भी व्यक्ति शायद ही अपनी पहली ‘किस’ भूल पाता हो. इतना ही नहीं रोमांटिक जीवन में चुंबन की अपनी अहम भूमिका भी है. पश्चिमी समाज में एक दूसरे को ‘किस’ करने का चलन कुछ ज़्यादा है. पश्चिमी दुनिया के लोग ये भी मानते।

‘किस’ करने का चलन
ऐसे में ‘किस’ करने के व्यवहार का चलन क्या है? अगर यह उपयोगी है तो फिर ऐसा तो सभी जानवरों को करना चाहिए, या फिर सभी इंसानों को करना चाहिए? हालांकि हक़ीक़त यह है कि ज़्यादातर जानवर ‘किस’ नहीं करते हैं.

इस नए अध्ययन में दुनिया के 168 संस्कृतियों का अध्ययन किया गया है, जिसमें केवल 46 प्रतिशत संस्कृतियों में लोग रोमांटिक पलों में अपने साथी को ‘किस’ करते हैं. पहले यह अनुमान लगाया जाता रहा है कि 90 प्रतिशत संस्कृतियों में लोग रोमांस के पलों में अपने साथी को ‘किस’ करते हैं. लेकिन ऐसा है नहीं.

इस अध्ययन में केवल ‘लिप किस’ का अध्ययन किया गया है. माता-पिता अपने बच्चों को जो ‘किस’ करते हैं उसे अध्ययन में शामिल नहीं किया गया है. कई आदिम समुदाय के लोगों में ‘किस’ करने के कोई सबूत नहीं मिले हैं. ब्राज़ील के मेहिनाकू जनजातीय समुदाय में इसे अशिष्टता माना जाता है.

ऐसे समुदाय आधुनिक मानव के सबसे नज़दीकी पूर्वज माने जाते हैं, इस लिहाज़ से देखें तो हमारे पूर्वजों में भी ‘किस’ करने का चलन शायद नहीं रहा होगा. इस अध्ययन दल के प्रमुख और लॉस वेगास यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर विलियम जानकोवायक के मुताबिक यह सभी मानवों के स्वभाव में नहीं है.

पश्चिमी सभ्यता की देन
प्रोफ़ेसर विलियम जानकोवायक के मुताबिक ‘किस’ करना पश्चिमी समुदाय की देन है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता रहा है.

इस विचार को सत्य के करीब मानने के लिए कुछ ऐतिहासिक कारण भी मौजूद हैं. ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफोर्ड के प्रोफ़ेसर राफ़ेल वलोडारस्की कहते हैं कि ‘किस’ करना हाल-फिलहाल का चलन है. ‘किस’ जैसी किसी क्रिया का सबसे पुराना उदाहरण हिंदुओं की वैदिक संस्कृति में मिलता है जो करीब 3500 साल पुराना है.

वहीं मिस्र की प्राचीन संस्कृति में ‘किस’ करने की बजाए लोग एक दूसरे को बाहों में समेट कर करीब आते थे. बहरहाल बड़ा सवाल यह है कि क्या हम प्राकृतिक तौर पर ‘किस’ करते आए हैं या आधुनिक इंसानों ने इसकी खोज की है. मानव समुदाय का सबसे नजदीकी रिश्ता चिम्पांजी से रहा है.

जॉर्जिया, अटलांटा स्थित एमरी यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञानी फ्रांस डि वाल के मुताबिक चिम्पांजी एक दूसरे से लड़ने झगड़ने के बाद एक दूसरे को ‘किस’ करते हैं या एक दूसरे को ‘हग’ करते हैं. यह मादा चिम्पांजियों में ज़्यादा होता है. लेकिन चिम्पांजी के लिए ‘किस’ का रोमांस से कोई लेना देना नहीं है.

जानवरों में भी चलन नहीं
चिम्पांजियों की एक प्रजाति बोनोवो के सदस्य ज़्यादा मौकों पर ‘किस’ करते हैं और ‘किस’ करते वक़्त जीभ का इस्तेमाल भी करते हैं.

बोनोबो सेक्स के मामले में ज़्यादा सक्रिय भी होते हैं. जब दो इंसान मिलते हैं तो आपस में हाथ मिलाते हैं, जब दो बोनोबो मिलते हैं तो सेक्स करते हैं. लेकिन उनमें भी ‘किसिंग’ की प्रवृति का रोमांस से लेना-देना नहीं है.

ये दोनों जीव इस मामले में अपवाद हैं. जहां तक हम जानते हैं, दूसरे जीवों में ‘किसिंग’ का चलन नहीं है. हालांकि कई दूसरे अध्ययनों से यह ज़रूर ज़ाहिर हुआ है कि अपने साथी के शरीर से निकलने वाली गंध के प्रति जानवर आकर्षित होते हैं और वे अपने साथी की तरफ खिंचे चले आते हैं. ऐसा जंगली सुअर सहित दूसरे जीवों में भी देखा गया है.

2013 में वलोडारस्की ने ‘किस’ करने की प्रवृति पर विस्तार से अध्ययन किया. उन्होंने सैकड़ों लोगों से ये पूछा कि एक दूसरे को ‘किस’ करते वक्त उनके लिए सबसे ख़ास बात क्या थी. इसमें पता चला कि शरीर की सुगंध से लोग एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं. वलोडारस्की कहते हैं, “हममें स्तनधारियों के सारे गुण हैं, इसमें समय के साथ हमने कुछ चीजें जोड़ भी ली हैं.”

इस नजरिए से देखें तो ‘किस’ करने को सांस्कृतिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया. यह इंसानों के एक दूसरे के करीब पहुंचने की कोशिश है. वलोडारस्की के मुताबिक इसकी शुरुआत कब हुई, ये पता लगाना बेहद मुश्किल है.