May 2, 2024

आज गोवर्धन पूजा पर जानिए महत्व, तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

New Delhi/Alive News: कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। यह दिन गिरिराज गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण को समर्पित होता है। इस बार गोवर्धन पूजा आज यानि 5 नवंबर 2021 दिन शुक्रवार को मनाई जा रही है। इस दिन को गोवर्धन पूजा के साथ-साथ अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है। इस दिन नई फसल के अनाज और सब्जियों को मिलाकर अन्न कूट का भोग बनाकर भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है।

जानकारी के मुताबिक घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और गाय, बछड़ो आदि की आकृति बनाकर पूजन किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण के द्वारा इंद्रदेव का अंहकार दूर करने के स्मरण में गोवर्धन का त्योहार मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा का महत्व
भगवान कृष्ण के द्वारा इंद्रदेव का अंहकार दूर करने के स्मरण में गोवर्धन का त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण के द्वारा ही सर्वप्रथम गोवर्धन पूजा आरंभ करवाई गई थी और गोवर्धन पर्वत तो अपनी उंगली पर उठाकर इंद्रदेव के क्रोध से ब्रज के समस्त नर-नारियों और पशु-पक्षियों की रक्षा की थी।

यही कारण है कि गोवर्धन पूजा में गिरिराज के साथ कृष्ण जी के पूजन का भी विधान है। इस दिन अन्नकूट का विशेष महत्व माना जाता है। यह एक तरह का पकवान होता है जिसे अन्न और सब्जियों को मिलकर बनाया जाता है और भगवान को भोग लगाया जाता है। गोवर्धन की पूजा करके लोग प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त
गोवर्धन पूजा 5 नवंबर 2021 दिन शुक्रवार
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि आरंभ- 5 नवंबर 2021 को प्रातः तड़के 2 बजकर 44 मिनट से
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि समाप्त- 5 नवंबर 2021 को रात्रि 11 बजकर 14 मिनट पर
गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त – 06 बजकर 35 मिनट से 08 बजकर 47 मिनट तक
अवधि- 02 घण्टे 11 मिनट्स
गोवर्धन पूजा सायाह्नकाल मुहूर्त – 3 बजकर 21 मिनट से 5 बजकर 33 मिनट तक
अवधि – 02 घण्टे 11 मिनट्स

 गोवर्धन पूजा विधि
इस दिन प्रातः काल जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं और साथ ही पशुधन यानी गाय, बछड़े आदि की आकृति भी बनानी चाहिए। इसके बाद धूप-दीप आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए। भगवान कृष्ण को दुग्ध से स्नान कराने के बाद उनका पूजन भी करना चाहिए। इसके बाद अन्नकूट का भोग लगाना चाहिए।