April 27, 2024

शिक्षा में नए आयामों को अपनाना हमारी मजबूरी नहीं, बल्कि बदलते समय की मांग है : प्रो. राजबीर सिंह

Faridabad/Alive News : डी.ए.वी. शताब्दी महाविद्यालय, फरीदाबाद में ऐनेट व् लिटरेरी वॉयस के सहयोग से कोरोना महामारी के बाद बदलती पढ़ने और पढ़ाने की रूपावली – विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया | संगोष्ठी का आगाज गायत्री मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। संगोष्ठी की रूपरेखा व् उद्देश्य की जानकारी अंग्रेजी विभाग में कार्यरत सहायक प्रोफेसर शिवम् झाम्ब ने रखी | सहायक प्रोफेसर मैडम अंकिता मोहिंद्रा ने देश-विदेश से शामिल हुए सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया | महाविद्यालय प्रधानाचार्या डॉ. सविता भगत ने कहा कि डिजिटल माध्यम से बेशक हम छात्रों को शिक्षित कर भी दें परन्तु उनके अंदर नैतिक मूल्यों का रोपन नहीं कर सकते । एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए लोगों का शिक्षित होना ही जरूरी नहीं है बल्कि उनके अंदर सामाजिक व् नैतिक मूल्यों की झलक भी जरूरी है |

एम. डी. यू. के कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने संगोष्ठी के शीर्षक की तारीफ करते हुए कहा कि पढ़ने और पढ़ाने की पद्धति में ये बदलाव का दौर काफी पहले शुरू हो गया था | उन्होंने सी. ई. सी. के साथ जुड़कर नए शिक्षण सामग्री तैयार की थी, परन्तु कुछ समय के बाद उस कार्य की गति कुछ शिथिल पड गई थी |वही सामग्री आज कोरोना काल में बहुत उपयोगी साबित हुई है | तकनीक केवल एक माध्यम है और समय के लिहाज से ये परिवर्तन शिक्षण पद्धति में भी होना जरूरी था | यही कारण है कि पढ़ने और पढ़ाने की पद्धति में बदलाव आज तीव्र गति से हो रहा है |

ऐनेट के प्रोफेसर अमोल पडवाड ने शिक्षा के क्षेत्र में कोरोना से पहले व् कोरोना के बाद उत्पन्न हुए इस नए शिक्षा जगत पर बात करने, दोनों के मध्य अवलोकन व् एक दूरगामी ठोस नतीजे पर जल्द आने की वकालत की | संगोष्ठी की मुख्य वक्ता व् लिटरेरी वॉयस में एसोसिएट एडिटर के तौर पर कार्यरत डॉ. चारु शर्मा ने बताया की कोरोना की वजह से आज हम ई-फेसिंग शिक्षण कर रहे हैं जिसकी वजह से परंपरागत शिक्षा पद्धति ख़त्म होने के कगार पर है | विशिष्ट अतिथि के रूप में संगोष्ठी से जुड़े, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में कार्यरत प्रो. निरंजन ने इस बात पर विशेष जोर दिया की कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा की उपलब्धियों के साथ-साथ इसकी खामियों और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खतरनाक प्रभावों पर भी शोध किया जाना जरूरी है | डी.ए.वी. प्रबंधन संस्थान से जुड़े डी. वी. सेठी ने कहा कि परंपरागत शिक्षा पद्धति जिसमें शिक्षक और छात्र एक-दूसरे से मुखातिब होते हैं उसका स्थान किसी भी तरह की आधुनिक डिजिटल शिक्षा नहीं ले सकती |

संगोष्ठी में देश-विदेश के पैंतालिस प्रतिभागियों ने कोरोना काल के दौरान ऑनलाइन माधयम से दी गई शिक्षा के दौरान हुए अपने अनुभवों, डिजिटल पाठन सामग्री का प्रबंधन, उपयोगिता व् सामने आई कठिनाइयों को लेकर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये | आने वाले समय में किस तरह की शिक्षा होनी चाहिए, इस विषय वस्तु पर अपने विचार रखने के लिए शोध के दौरान जुटाए गए सांख्यिकी आंकड़ों के आधार पर अपनी बात को पुख्ता करने की कोशिश की |

संगोष्ठी के विदाई में अभिवादन डॉ. प्रिया कपूर ने किया | महाविद्यालय प्रधानाचार्या डॉ. सविता भगत ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.हरीश अरोरा, निदेशक, महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, मुख्य वक्ता शशिधर, प्रिंस सत्तम बिन अब्दुल अज़ीज़ यूनिवर्सिटी, सऊदी अरब का स्वागत किया | डॉ. हरीश अरोरा ने इस बात पर जोर दिया कि हमें तकनीक के इस दौर में उन वंचित बच्चों का भी ध्यान रखना है जो बहुत दूर गावों में हैं या जिनके पास मोबाइल या लॉपटॉप नहीं है | हमें भारत के विकास को ध्यान रखना तो है पर सभी को साथ लेकर, कहीं कोई इस विकास में पीछे न छूट जाये | उन्होंने हिंदी भाषा के विकास पर भी ध्यान देने के लिए कहा |उन्होंने डी.ए.वी. शताब्दी महाविद्यालय प्रधानाचार्या डॉ. सविता भगत का बहुत आभार व्यक्त किया जिन्होंने इस जरूरी मुद्दे पर चर्चा के लिए एक ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय मंच तैयार करके दिया |