Surajkund/Alive News: 37वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में विरासत द्वारा लगाई गई कृषि प्रदर्शनी लाखों लोगों तक पहुंच रही है। इस प्रदर्शनी के अंतर्गत हरियाणा के ‘आपणा घर’ में कृषि के पुरातन औजारों ओरणा, डोल, कांटे बिलाई, डायल, ऊंट की कूचियां, हल, टांगली एवं ओरणों की प्रदर्शनी हरियाणा की लोक पारंपरिक कृषि संस्कृति के दर्शन तो करा ही रही है।
इसके साथ-साथ मेले में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित भी कर रही है। इस विषय में विस्तार से जानकारी देते हुए विरासत के निदेशक डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि ‘आपणा घर’ हमेशा की तरह पर्यटकों की भीड़ को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। यहां पर हरियाणा की हस्तशिल्प प्रदर्शनी के साथ-साथ लोक पारंपरिक विषय-वस्तुओं व कृषि प्रदर्शनी भी लगाई गई है। विरासत की कृषि प्रदर्शनी में जेली, जेले, टांगली के साथ-साथ ओरणों की प्रदर्शनी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है।
कूंए से पानी निकालने के लिए प्रयोग किए जाने वाले डोल की प्रदर्शनी आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। प्रदर्शनी में अलग-अलग आकार और प्रकार के प्रयोग किए जाने वाले डोल प्रदर्शित किए गए हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर भारत मेें गांवों में पानी के पीने के लिए आज से 50 साल पहले जो कूंए बनाए जाते थे उनमें से पानी निकालने का काम इन्हीं डोल के माध्यम से होता था। डोल की तली बिल्कुल गोल होती है।
तकनीकी दृष्टि से जब यह डोल पानी में गिरता है तो यह टेढ़ा हो जाता है। क्षेत्र के अनुसार इसके आकार और प्रकार अलग-अलग होते हैं। इसके साथ ही किसानों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले हलों की प्रदर्शनी, कूंए में किसी वस्तु के गिर जाने पर उसको ढूंढने के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले कांटे एवं बिलाई की प्रदर्शनी, ऊँटों पर बैठने के लिए प्रयोग में लाई वाली ऊँट की कूचियों की प्रदर्शनी, साथ ही बैलों द्वारा खेत की जमीन को समतल करने के लिए प्रयोग की जाने वाली गोड़ी की प्रदर्शनी में पर्यटकों की खूब भीड़ देखी जा रही है।
डॉ. पूनिया ने बताया कि हरियाणा में लोक पारंपरिक तरीके से किसान खेती करते समय बांस एवं लोहे के जिन ओरणों एवं जेलियों का प्रयोग करते थे वो विरासत प्रदर्शनी में प्रदर्शित किए गए हैं। ओरणा हल के पीछे बांधकर उसके माध्यम से फसल की बुवाई के लिए बीज बिजने के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। आरंभ में बांस के ओरणे प्रयोग किए जाते थे, बाद में लोहे के भी ओरणों का प्रयोग किया जाने लगा।
इसके साथ ही फसल की कटाई के पश्चात उसके अवशेषों को एक स्थान पर एकत्रित करने के लिए जेली एवं टांगली का प्रयोग किया जाता रहा है। लकड़ी से बनी जेली एवं टांगली प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गई है। इनका इतिहास 100 साल से भी अधिक पुराना है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान दौर में इन विषय-वस्तुओं का प्रयोग बंद हो चुका है। इसके साथ ही हरियाणा के लोक परिधान के रूप में विख्यात हरियाणवी घाघरों एवं खारों की प्रदर्शनी विशेष आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। विरासत हरियाणा सांस्कृतिक प्रदर्शनी हरियाणवी संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए मेले में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है।