New Delhi/Alive News : देश में कोरोना के खिलाफ जंग जारी है. इस बीच कोरोना को हराने के लिए देश में वैक्सीनेशन की गति को भी बढ़ा दिया गया है. ऐसे में लाखों की संख्या में लोगों को वैक्सीन लग चुकी है, लेकिन अभी भी कई ऐसे लोग हैं जो वैक्सीन लगवाने से घबरा रहे हैं. दरअसल, देश में कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर लोगों के मन में कई तरह के भ्रम पैदा हो चुके हैं. इस पर एनटीएजीआई (NTAGI) में कोविड-19 पर काम कर रहे कार्यकारी समूह के अध्यक्ष, डॉ. एन.के. अरोड़ा, ने साइंस और टेक्नोलॉजी विभाग के ओटीटी- इंडिया साइंस चैनल को दिए एक इंटरव्यू में भारत में कोरोना वैक्सीनेशन अभियान के विभिन्न पहलुओं पर बात की है और इससे जुड़े तमाम सवालों के जवाब दिए हैं.
नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑफ इम्यूनाइजेशन (NTAGI) के कोविड- 19 वर्किंग ग्रुप के अध्यक्ष डॉ नरेंद्र कुमार अरोड़ा कहते हैं कि हम जल्द ही Zydus Cadila द्वारा दुनिया का पहला डीएनए-प्लास्मिड वैक्सीन बनाने जा रहे हैं, जिसे भारत में तैयार किया गया है. अन्य वैक्सीन बायोलॉजिकल ई- एक प्रोटीन सब-यूनिट वैक्सीन है. इस वैक्सीन के आने की उम्मीद जल्द ही की जा सकती है. वह आगे बताते हैं कि इन वैक्सीनों का परीक्षण काफी उत्साहजनक रहा है. हमें उम्मीद है कि ये वैक्सीन सितंबर तक उपलब्ध हो जाएगी.
साथ ही भारतीय एम-आरएनए वैक्सीन जिसे 2-8 डिग्री सेल्सियस तापमान पर स्टोर किया जा सकता है, सितंबर तक उपलब्ध हो जानी चाहिए. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा नोवावैक्स नामक दो अन्य वैक्सीन की भी जल्द ही उम्मीद की जा सकती है. जुलाई के तीसरे सप्ताह तक भारत बायोटेक और एसआईआई की उत्पादन क्षमता में वृद्धि हो सकती है. इससे देश में वैक्सीन की सप्लाई बढ़ेगी. अगस्त तक, हमें एक महीने में 30-35 करोड़ डोज की खरीद की उम्मीद है. डॉ. अरोड़ा का कहना है कि इससे एक दिन में एक करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन किया जा सकेगा.
नई वैक्सीन कितनी प्रभावी होंगी- जब हम कहते हैं कि एक निश्चित वैक्सीन 80% प्रभावी है, तो इसका मतलब है कि वैक्सीन कोविड- 19 की बीमारी की संभावना को 80% तक कम कर देती है. इंफेक्शन और बीमारी में अंतर है. यदि किसी व्यक्ति को कोरोना इंफेक्शन हुआ है, लेकिन वो एसिम्प्टोमेटिक है, तो इस व्यक्ति को केवल इंफेक्शन है. हालांकि, यदि व्यक्ति में इंफेक्शन के कारण लक्षण दिखाई दे रहे हैं, तो इस व्यक्ति को कोरोना की बीमारी हुई है. दुनिया में सभी वैक्सीन कोविड बीमारी को रोकती हैं.
वैक्सीनेशन के बाद गंभीर बीमारी की संभावना बहुत कम होती है जबकि वैक्सीनेशन के बाद मृत्यु की संभावना न के बराबर होती है. अगर किसी वैक्सीन की प्रभावशीलता 80% है, तो वैक्सीनेटिड लोगों में से 20% लोग माइल्ड कोविड से संक्रमित हो सकते हैं.
भारत में उपलब्ध वैक्सीन कोरोना वायरस को फैलने से रोकने की क्षमता रखती हैं. अगर 60% -70% लोगों को वैक्सीन लगाई जाती है, तो वायरस को फैलने से रोका जा सकता है. सरकार ने सबसे पहले बुजुर्गों और कमजोर हेल्थ स्टेटस वाले लोगों को पहले वैक्सीनेशन करके कोविड- 19 प्रतिरक्षण अभियान शुरू किया. इससे स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ कम हुआ है. डॉ. एन.के.अरोड़ा ने कोविड वैक्सीन के मद्दों पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि हाल ही में, मैंने हरियाणा और उत्तर प्रदेश जाकर वहां के राज्यों में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के लोगों से बात की, ताकि वे वैक्सीन से जुड़ी बातों को समझ सकें. ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों के बहुत से लोग कोरोना को गंभीरता से नहीं लेते हैं और इसे सामान्य बुखार समझने की गलती करते हैं. लोगों को ये समझने की जरूरत है कि कई मामलों में कोविड हल्का हो सकता है. लेकिन जब ये गंभीर रूप लेता है तो यह आर्थिक बोझ बनने के साथ जानलेवा भी हो सकता है.
ये बहुत उत्साहजनक है कि हम वैक्सीनेशन के माध्यम से खुद को कोरोना से बचा सकते हैं. हम सभी को दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि भारत में उपलब्ध कोविड- 19 वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित हैं. डॉ. एन.के. अरोड़ा कहते हैं कि मैं सभी को विश्वास दिलाता हूं कि सभी वैक्सीन का कठोर परीक्षण किया गया है, जिसमें क्लीनिकल ट्रायल भी शामिल हैं. इसे विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है.
जहां तक साइड इफेक्ट्स की बात है, सभी वैक्सीन के हल्के साइड इफेक्ट्स होते हैं. इसमें एक या दो दिन के लिए हल्का बुखार, थकान, इंजेक्शन वाली जगह पर दर्द आदि शामिल हैं. इससे कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं होता है. जब बच्चों को उनकी नियमित वैक्सीन लगवाई जाती है, तो उनमें भी कुछ साइड इफेक्ट्स जैसे बुखार, सूजन आदि दिखाई देते हैं. परिवार के सभी बड़े लोग जानते हैं कि साइड इफेक्ट्स के बावजूद भी वैक्सीन बच्चे के लिए फायदेमंद है. इसी तरह बड़ों को भी ये समझने की जरूरत है कि हमारे परिवार और हमारे समाज के लिए कोविड वैक्सीन महत्वपूर्ण है. इसलिए, हल्के साइड इफेक्ट्स से हमें डरना नहीं चाहिए.
ऐसी अफवाहें हैं कि यदि किसी व्यक्ति को वैक्सीन लगवाने के बाद बुखार का अनुभव नहीं होता है, तो वैक्सीनेशन काम नहीं कर रहा है. इस पर डॉ. अरोड़ा कहते हैं कि ज्यादातर लोगों को कोविड वैक्सीनेशन के बाद किसी भी साइड इफेक्ट्स का सामना नहीं करना पड़ता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वैक्सीन प्रभावी नहीं है. वैक्सीनेशन के बाद केवल 20% – 30% लोगों को बुखार का अनुभव होता है. कुछ लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लगवाने के बाद बुखार आ सकता है और दूसरी डोज के बाद नहीं आ सकता है. ऐसे ही इसके विपरीत होता है. इसके साइड इफेक्ट्स एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं और इसके ज्यादातर साइड इफेक्ट्स अप्रत्याशित होते हैं.
कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं जहां वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद लोगों को कोरोना संक्रमण हो गया. इसलिए, कुछ लोग वैक्सीन की प्रभावशीलता पर सवाल उठा रहे हैं? इस सवाल का जबाब देते हुए डॉ. अरोड़ा कहते हैं कि वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी संक्रमण हो सकता है. लेकिन, ऐसे मामलों में, बीमारी निश्चित रूप से हल्की होगी और गंभीर बीमारी की संभावना शून्य के बराबर हो जाएगी. इसके अलावा, इस तरह की घटना से बचने के लिए लोगों को वैक्सीनेशन के बाद भी कोविड युक्त व्यवहार का पालन करने के लिए कहा जा रहा है. लोग वायरस को फैला सकते हैं. इसका मतलब वायरस आपके माध्यम से परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों तक पहुंच सकता है. अगर 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों का वैक्सीनेशन नहीं किया जाता है तो मृत्यु दर और अस्पतालों पर बोझ अकल्पनीय हो सकता है. अब जबकि दूसरी लहर घटती दिखाई दे रही है, इसका श्रेय वैक्सीनेशन को जाता है.
शरीर में एंटीबॉडी कब तक रहती है? क्या कुछ समय बाद बूस्टर खुराक लेने की आवश्यकता है? इस पर डॉ. एन.के. अरोड़ा कहते हैं कि वैक्सीनेशन के बाद, विकसित की गई इम्यूनिटी को स्पष्ट रूप से एंटीबॉडी के विकास से पता लगाया जा सकता है, जिसे देखा और मापा जा सकता है. इसके अलावा हमारे शरीर में अदृश्य इम्यूनिटी भी विकसित होती है. इसे टी-सेल्स के रूप में जाना जाता है जिसमें स्मृति शक्ति होती है. वैक्सीनेशन के बाद से जब भी ये वायरस शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करेगा, पूरा शरीर सतर्क होकर इसके खिलाफ कार्य करना शुरू कर देगा. इसलिए, वैक्सीनेशन के बाद एंटीबॉडी परीक्षण कराने की कोई आवश्यकता नहीं है.
दूसरी बात, कोविड- 19 एक नई बीमारी है जो डेढ़ साल पहले सामने आई थी और अभी महज 6 महीने ही हुए हैं जब वैक्सीन दी जा रही है. लेकिन, ऐसा लगता है कि अन्य सभी वैक्सीन की तरह, इम्यूनिटी कम से कम छह महीने से एक साल तक रहेगी. समय बीतने के साथ,कोविड- 19 के बारे में हमारी समझ में सुधार होगा. इसके अलावा, टी-सेल जैसे फेक्टर्स को मापा नहीं जा सकता है. ये देखना होगा कि वैक्सीनेशन के बाद कब तक लोगों को गंभीर बीमारी और मृत्यु दर से बचाया जा सकता है. लेकिन, अभी ये कहा जा सकता है कि सभी वैक्सीनेटिड लोग छह महीने से एक वर्ष तक सुरक्षित रहेंगे.
एक बार जब हम किसी विशेष कंपनी की वैक्सीन ले लेते हैं, तो क्या हमें उस विशेष वैक्सीन को ही दोहराना होगा? अगर हमें भविष्य में बूस्टर डोज लेनी है, तो क्या हमारे पास भी उसी कंपनी की वैक्सीन होनी चाहिए? इस पर बात करते हुए डॉ. एन. के. अरोड़ा ने कहा कि कंपनियों के बजाय, हम प्लेटफॉर्म के बारे में बात करते हैं. मानव इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि एक ही बीमारी की वैक्सीन विकसित करने के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं और प्लेटफार्मों का उपयोग किया गया हो. चूंकि इन वैक्सीन के लिए निर्माण प्रक्रियाएं अलग हैं. इसलिए शरीर पर उनका प्रभाव अलग होगा.
विभिन्न प्रकार की वैक्सीन को दो डोज में लेने की प्रक्रिया, या फिर बाद में बूस्टर डोज (अगर जरूरी हो) में एक अलग वैक्सीन लेने की प्रक्रिया को इंटरचेंजबिलिटी कहा जाता है. क्या ऐसा किया जा सकता है ये एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रश्न है. इसका जवाब खोजने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. हम उन दुर्लभ देशों में से एक हैं जहां विभिन्न प्रकार की कोविड- 19 वैक्सीन लगवाई जा रही हैं.
इस प्रकार की अदला-बदली को केवल तीन कारणों में स्वीकार किया जा सकता है. 1) ये इम्यूनिटी को बढ़ाता है या बेहतर करता है. 2) ये वैक्सीन वितरण के कार्यक्रम को आसान बनाता है. 3) सुरक्षा सुनिश्चित करता है. लेकिन, इस अदला-बदली को वैक्सीन की कमी के कारण प्रेरित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वैक्सीनेशन एक वैज्ञानिक प्रकिया है.
कुछ विदेशी देशों में वैक्सीन के मिक्स एंड मैच पर शोध किया जा रहा है. क्या भारत भी ऐसा कोई शोध कर रहा है? इस बात पर डॉ. अरोड़ा कहते हैं कि इस प्रकार का शोध आवश्यक है और भारत में शीघ्र ही ऐसे कुछ शोध शुरू करने का प्रयास किया जा रहा है. इसे कुछ ही हफ्तों में शुरू किया जा सकता है. इसके अलावा, 2 से 18 साल की उम्र के बच्चों पर को वैक्सीन का ट्रायल शुरू किया गया है. देशभर के कई सेंटर्स में बच्चों पर ट्रायल किया जा रहा है. इस साल सितंबर से अक्टूबर तक इसके परिणाम मिल सकते हैं. बच्चे भी संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं, लेकिन वे गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ते हैं. हालांकि, बच्चे वायरस के लिए ट्रांसमीटर का काम कर सकते हैं. इसलिए बच्चों को भी वैक्सीन लगवाना जरूरी है.