November 17, 2024

ऐलानाबाद उपचुनाव के बाद केंद्र सरकार ने लिया बड़ा फैसला, किसानों की हुई जीत

New Delhi/Alive News : हरियाणा के ऐलानाबाद उपचुनाव में इण्डियन नैशनल लोकदल की जीत के नतीजों ने केंद्र में बैठी भाजपा (एनडीए) सरकार को आखिरकार तीन कृषि कानूनों को वापिस लेने के लिए मजबूर कर ही दिया। एनडीए के लिए अब शायद तीनों कृषि कानून किसानों के फायदे की बजाय राजनीति घाटे का सौदा साबित होने लगे थे। समय रहते भाजपा समर्थित राजनैतिक दलों ने गठबंधन सरकार को फैसला लेने के लिए मजबूर कर दिया। जिसको लेकर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार सुबह 9 बजे राष्ट्र के नाम संबोधन किया। इस दौरान उन्होंने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। बता दें कि इन तीनों कानूनों के विरोध में कई राज्यों के किसान पिछले एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए थे।

1955 के कानून में संशोधन कर बनाया आवश्यक वस्तु कानून, 2020
इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान किया गया था। ऐसा माना जा रहा था कि इस कानून के प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा, क्योंकि बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी। बता दें, कि साल 1955 के इस कानून में संशोधन किया गया था। इस कानून का मुख्य उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी रोकने के लिए उनके उत्पादन, सप्लाई और कीमतों को नियंत्रित रखना था। अहम बात यह है कि समय-समय पर आवश्यक वस्तुओं की सूची में कई जरूरी चीजों को जोड़ा गया है। उदाहरण के लिए कोरोना काल में मास्क और सैनिटाइजर को आवश्यक वस्तुओं में रखा गया। 

कृषि उत्पादन संवर्धन और सुविधा कानून, 2020
इस कानून के तहत किसान एपीएमसी यानी कृषि उत्पाद विपणन समिति के बाहर भी अपने उत्पाद बेच सकते थे। इस कानून के तहत बताया गया था कि देश में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया जाएगा, जहां किसानों और व्यापारियों को मंडी के बाहर फसल बेचने की आजादी होगी। प्रावधान के तहत राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही गई थी। साथ ही, मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च कम करने का भी जिक्र था। नए कानून के मुताबिक, किसानों या उनके खरीदारों को मंडियों को कोई फीस भी नहीं देनी होती। 

कृषक कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून
इस कानून का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी फसल की निश्चित कीमत दिलवाना था। इसके तहत कोई किसान फसल उगाने से पहले ही किसी व्यापारी से समझौता कर सकता था। इस समझौते में फसल की कीमत, फसल की गुणवत्ता, मात्रा और खाद आदि का इस्तेमाल आदि बातें शामिल होनी थीं। कानून के मुताबिक किसान को फसल की डिलिवरी के समय ही दो तिहाई राशि का भुगतान किया जाता और बाकी पैसा 30 दिन में देना होता। इसमें यह प्रावधान भी किया गया था कि खेत से फसल उठाने की जिम्मेदारी व्यापारी की होती। अगर एक पक्ष समझौते को तोड़ता तो उस पर जुर्माना लगाया जाता।

इसलिए हो रहा था विरोध
किसान संगठनों का आरोप था कि नए कानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा, जिससे किसानों को नुकसान होगा। नए बिल के मुताबिक सरकार आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पर अति-असाधारण परिस्थिति में ही नियंत्रण करती। ऐसे प्रयास अकाल, युद्ध, कीमतों में अप्रत्याशित उछाल या फिर गंभीर प्राकृतिक आपदा के दौरान किए जाते। नए कानून में उल्लेख था कि इन चीजों और कृषि उत्पाद की जमाखोरी पर कीमतों के आधार पर एक्शन लिया जाएगा। सरकार इसके लिए तब आदेश जारी करेगी, जब सब्जियों और फलों की कीमतें 100 फीसदी से ज्यादा हो जातीं है या फिर खराब न होने वाले खाद्यान्नों की कीमत में 50 फीसदी तक इजाफा होता।

किसानों का कहना था कि इस कानून में यह साफ नहीं किया गया था कि मंडी के बाहर किसानों को न्यूनतम मूल्य मिलेगा या नहीं। ऐसे में हो सकता था कि किसी फसल का ज्यादा उत्पादन होने पर व्यापारी किसानों को कम कीमत पर फसल बेचने पर मजबूर करें। तीसरा कारण यह था कि सरकार फसल के भंडारण का अनुमति दे रही है, लेकिन किसानों के पास इतने संसाधन नहीं होते हैं कि वे सब्जियों या फलों का भंडारण कर सकें।