हर वर्ष लोहड़ी का त्यौहार बड़े धूम धाम से मकर सक्रांति यानि 14 जनवरी से एक दिन पहले 13 जनवरी को मनाई जाती है। वैसे तो लोहड़ी का त्यौहार विशेष तौर से पंजाबी लोगों के द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन अब पुरे उत्तर भारत में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है और लोहड़ी की अग्नि जलाई जाती है।
लोहड़ी के महत्व : लोहड़ी का महत्व एक पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है ऐसा कहा जाता है कि द्वापर युग में मकर संक्रांति से एक दिन पहले गोकुल में लोग मकर संक्रांति की तैयारियों में लगे हुए थे। इस दौरान कंस , भगवान कृष्ण को मारने के लिए एक के बाद एक कई राक्षस भेजे थे। हर दिन कोई न कोई राक्षस आकर भगवान कृष्ण को मारने की कोशिश करता था। एक बार जब लोहड़ी का पर्व मनाया जा रहा था तो कंस ने भगवान कृष्ण को मारने के लिए एक राक्षसी को गोकुल भेजी था। राक्षसी का नाम लोहिता था लोहड़ी का नाम राक्षसी लोहिता के नाम से ही पड़ा है। इसके अलावा एक मान्यता यह भी है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री माता सती के योगाग्नि दहन की स्मृति में लोहड़ी की अग्नि जलाई जाती है।
लोहड़ी का उदेश्य : लोहड़ी की आग में रवि की फसल के तौर पर तिल, रेवड़ी, मूंगफली, गुड़ आदि चीजें अर्पित की जाती है। माना जाता है कि इस दिन सूर्य देव अग्नि देव को आभार व्यक्त करते है, जिससे कि फसल अच्छी उत्पन्न हो। इस दिन पंजाबी लोग सज धज कर ढोल की थाप में भांगड़ा आदि करते हैं और महिलाएं पारंपरिक लोहड़ी का गीत गाकर उत्साह बढ़ाती है। पारंपरिक तौर पर लोहड़ी का मनाया जाता है। इस दिन गजक, रेवड़ी, पॉपकॉर्न, मूंगफली आदि खूब्व खाये जाते है और साथ ही एक दूसरे को बड़े हर्षोल्लास के साथ बांटे जाते हैं।