Chandigarh/Alive News : देश में बिना जरूरत के एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग ने स्वास्थ्य विभाग की चिंता बढ़ा दी है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार वर्तमान में एंटीबायोटिक दवाओं का गलत व अनियंत्रित प्रयोग लोगों को मुसीबत में डाल सकता है 20 साल बाद एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं रहेगा। ऐसे में सबसे अधिक मौत संक्रमण से होगी। एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बनने का खतरा बढ़ता जा रहा है। भविष्य में संक्रमण से लड़ने के लिए एडवांस एंटीबायोटिक दवाएं नहीं हैं। आने वाले समय में मामूली चोट भी संक्रमण या व्यक्ति की मौत का कारण बन सकती है। यह अंदेशा जताया है पीजीआईएमएस के पीसीसीएम विभागाध्यक्ष ने
दरअसल, कई मरीज स्वयं एंटीबायोटिक लेते हैं तो कुछ डॉक्टर या झोलाछाप बगैर जरूरत के एंटीबायोटिक दवा देते हैं। कुछ मरीजों को कम डोज की जरूरत होती है, लेकिन दी अधिक जाती है। इतना ही नहीं जीव-जंतुओं को भी बिना वजह इसे फूड में दिया जा रहा है, जोकि नॉनवेज के रूप में वापस मनुष्य में आ रहा है। यह खतरनाक है। शुरुआत में संक्रमण से लड़ने के लिए पेनिसिलिन नामक एंटीबायोटिक आई थी और जीवन को लगभग 25 साल बढ़ा दिया। आज अज्ञानता के चलते यह संजीवनी एंटीबायोटिक प्रतिरोधी नामक खतरे में बदलती जा रही है।
एंटीबायोटिक प्रतिरोधी
अक्सर बैक्टीरिया एंटीबायोटिक से बचने के लिए स्वयं को बदलता है और इतना मजबूत बनता है कि उसे एंटीबायोटिक से खत्म करना मुश्किल हो जाता है। इसे एंटीबायोटिक प्रतिरोधी कहते हैं। यही वजह है कि निमोनिया, टीबी, रक्त विषक्ता और खाद्य पदार्थों से होने वाले संक्रमण को ठीक करना अब मुश्किल होता जा रहा है। ये रोग पहले कुछ ही एंटीबायोटिक से ठीक हो जाते थे, अब इन पर असर कम होता जा रहा है।
एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध उपयोग देश में हो रहा है। फार्मा कंपनियां एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बनने पर काबू पाने के लिए रिसर्च कर रही हैं। नए अपडेट की लागत अधिक आ रही है। इसे वहन करना मध्यम वर्गीय परिवार के लिए भी संभव नहीं होगा।