Faridabad/Alive News: फरीदाबाद जिले के सेक्टर 9-10 के डिवाइडिंग रोड़ के आसपास में बनी फैक्ट्रियों द्वारा शुक्रवार की सुबह सरेआम कैमिकल युक्त पानी सड़क पर छोड़ा गया। लेकिन इस पर ना तो प्रदूषण विभाग की नजर पड़ी और ना ही अन्य विभागों के उच्च अधिकारियों ने गंभीरता से लिया। इसकी शिकायत स्थानीय सेक्टर की आरडब्ल्यूए, समाजसेवियों, आरटीआई एक्टिविस्ट और पत्रकारों ने अधिकारियों को फोन से दी। लेकिन अधिकारियों ने गंभीरता से नही लिया। पाठकों को बता दें कि आजतक प्रदूषण विभाग के अधिकारी कार्यवाही के नाम पर लीपापोती करते आये है। पर्यावरण के सबसे बड़े दुश्मन तो अधिकारी है जो प्रदूषण पर नकेल कसने की बजाय प्रदूषण फैलाने वाले लोगों से मिलीभगत कर लेते है। फरीदाबाद के सामने एक बड़ा उदाहरण सरूरपुर उधोगीक क्षेत्र है जहां अंधेरा होते ही कबाड़ जलाया जाता है। इसकी आवाज क्षेत्रीय एनआईटी विधायक से लेकर समाचार पत्रों ने उठाई है, लेकिन संबंधित विभाग और अधिकारियों ने कार्यवाई के नाम पर मिलीभगत की है।
क्या कहा स्थानीय लोगों ने
स्थानीय सुशांत मिश्रा, विशाल राज और पूजा भाटिया का कहना है कि फैक्टरी मालिकों के हौसले इस कदर बुलंद है कि वह नियमों की सरेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। इंडस्ट्री से निकलने वाले गंदे पानी में केमिकल्स बहुत ज्यादा मात्रा में होता हैं। यह कैमिकल कैंसर, चर्म रोग को बढ़ावा देते हैं।
ये है नियम
जब फैक्टरी शुरू होती है तो उसमें ईटीपी प्लांट लगा होना चाहिए। बिना ईटीपी प्लांट के प्रदूषण बोर्ड उस फैक्टरी को एनओसी भी जारी नहीं कर सकता। कुछ फैक्टरी संचालक बिना एनओसी के ही फैक्ट्री लगा लेते हैं। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की अनदेखी की वजह से यही फैक्ट्रियां प्रदूषण फैलाती हैं। अगर, विभाग के अधिकारी समय रहते जांच करें तो प्रदूषण मुक्त फरीदाबाद बनाया जा सकता है।
सिर्फ कागजों में चल रहे ईटीपी प्लांट
जो भी फैक्ट्री वाटर डिस्चार्ज करती है उसको ईटीपी प्लांट लगाना बेहद जरूरी है। ताकि गंदा पानी ट्रीट करके फैक्ट्री संचालक उसे फिर से इस्तेमाल कर सके। लेकिन फैक्ट्रियों में ईटीपी प्लांट लगा है या नहीं इसकी अभी तक जांच ही नहीं हुई है। यह मुद्दा आमजन की सेहत से जुड़ा है फिर भी विभाग के अधिकारी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।