Faridabad/Alive News : ग्राम भूपानी स्थित प्रमुख पर्यटक स्थल, ध्यान-कक्ष की भव्य शोभा देखने ज्ञानदीप पब्लिक स्कूल के विद्यार्थी और बी.ए. कालेज की छात्राएं पहुंची। बता दें, कि स्कूली बच्चों के साथ उनके समस्त अध्यापकगण और कालेज की छात्राओं के साथ उनके प्रोफेसर उपस्थित रहे। सभी की जानकारी के लिए एकता के प्रतीक नाम से प्रसिद्ध इस भव्य स्थल को सतयुग की पहचान व मानवता का स्वाभिमान माना जाता है।
उपस्थित सभी बच्चों व उनके अध्यापकों को सतयुग दर्शन वसुन्धरा के मुख्य द्वार पर सभी सजनों को बताया गया कि हम इस सृष्टि के इतिहास के उस निर्णायक मूहुर्त में हैं जो आज तक अपनाए नैतिक मूल्यों को खो रही है। इस अनैतिकता से बचने हेतु हमें अतीत से विरासत में प्राप्त पतनकारी विकार वृत्तियों के अनुरूप ढले भाव-स्वभावों को नि:संकोच व निर्भयता से त्यागना होगा और भविष्य को अनुशासित ढंग से अपनाने के लिए जाग्रत होना होगा। ऐसे में सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ के अनुसार इस ध्यान-कक्ष से बताई जा रही। इस हेतु नि:संदेह हमें चेतनायुक्त हो बुद्धिमान व विवेकशील बनना होगा और अति सावधानी व समझदारी के साथ अपने अंत:करण की सब वृत्तियों जैसे मन, बुद्धि, अहंकार आदि को प्रकाशित कर उन्हें जाग्रत एवं कुशल बनाना होगा।
उन्हें समझाया गया कि इस महान कार्य की सिद्धि हेतु घबराओ नहीं अपितु अभी से मन सृष्टि की गिरी हुई अवस्था से निकल कर उन्नत होने का प्रत्यन आरंभ कर दो और उस जाग्रत अवस्था को प्राप्त करो जिसमें इन्द्रियों द्वारा सब प्रकार के व्यवहारों और कार्यों का अनुभव होता रहे। इस प्रकार सब विषय-वस्तुओं का सूक्ष्मतया निश्चयात्मक पूर्णज्ञान प्राप्त करते हुए भविष्य उज्ज्वल बनाने हेतु दूरदर्शी बनो।
यही नहीं अपने यथार्थ को प्रत्यक्ष रख स्पष्टता से यह समझो कि मैं नित्य चेतन सत्ता आत्मा में परमात्मा अपने आप में ही ब्रह्म या पारमार्थिक सत्ता के ज्ञान का स्रोत समस्त वेदराशि है और ब्रह्म से उत्पन्न जगत का एक हिस्सा हूँ इसलिए मोक्ष प्राप्ति यानि ब्रह्म पद प्राप्त करना ही मेरा मुख्य लक्ष्य है और इसी सत्य पर बने रह उस का प्रचार करना मेरा महान कर्त्तव्य है। अत: प्रणव के अजपा जाप द्वारा उस ब्रह्म के ज्ञान से मिलने वाला आनंद प्राप्त करो।
इस संदर्भ में उन्हें यह भी बताया गया कि जहां चेतनता सद्गुणों व सदाचार की पगडंडी व रास्ता है वहां अचेतन अवस्था पाप है, अधर्म है जो हमारे सुख, आनंद और खुशी का विनाश कर उसे विध्वंस कर देती है। अत: अचेतन अवस्था को सब बुराईयों व बीमारियों की जड़ मानते हुए अपनी चेतन आत्मा में स्थित परमेश्वर से जोड़े रखो और अपने मन-वचन-कर्म द्वारा जो भी करो। वह इतना सावधान होकर करो कि छोटे से छोटा किया हुआ कार्य व व्यवहार भी पूरी जाग्रति से किया जाए।
इस क्रिया को कुशलता से संपादित करने के लिए समभाव-समदृष्टि की युक्ति का अनुशीलन करने के अतिरिक्त कोई अन्य आधार बल नहीं है। क्योंकि समभाव-समदृष्टि की युक्ति में कुशलता ही प्राणी को शारीरिक, प्राणिक, मानसिक व अध्यात्मिक ज्ञान के प्रति जागरूक रख उसे पूर्ण स्वस्थता प्रदान करते हुए आजीवन नौजवान युवावस्था में बनाए रखती है। यही नहीं इसके अतिरिक्त ऐसे मानव का मानसिक संतुलन कभी नहीं बिगड़ता और उसका मन-मस्तिष्क एक अवस्था में यानि सदैव चैतन्य बना रहता है। अत: हृदय व्याप्त दिव्य शक्ति के बल पर यथार्थता से जीवन जीते हुए अपने लक्ष्य की प्राप्ति करो।