ब्लोक्स एडवाइस नाम का एक फेसबुक ग्रुप मई में शुरू हुआ. आज उसके 2 लाख मेंबर हैं. ये सभी मर्द हैं.
आप सोच रहे होंगे कि इतने कम दिनों में ग्रुप के इतने मेंबर कैसे हो गए. जाहिर सी बात है, या तो धर्म से जुड़ी हुई कोई चीज होगी. या सेक्स से.
लेकिन ये ग्रुप दोनों के ही बारे में नहीं है. असल में ये रेप के बारे में है. रेप की बुराइयों के बारे में नहीं. उसकी तारीफ के बारे में. जहां पुरुष ये बताते हैं कि लड़की का किस तरह रेप किया जाए. किस तरह उसकी मर्जी के खिलाफ उससे एनल सेक्स किया जाए. और दूसरे मर्द उन बातों के मज़े लेते हैं. उसमें अपने अनुभव जोड़ते हैं.
ये सीक्रेट ग्रुप ऑस्ट्रेलिया में शुरू हुआ था. पेज के बारे में लोगों को तब पता चला जब राइटर क्लीमेंटीन फोर्ड ने अपने फेसबुक पेज से इस ग्रुप के कुछ स्क्रीनशॉट पोस्ट किए. इस ग्रुप में बहुत कुछ लिखा पाया गया. देखिए उसके दो नमूने:
‘अगर औरतों से उनकी वेजाइना, कूल्हे, मुंह और खाना पकाने की कला निकाल दी जाए, तो समाज को उनकी कोई जरूरत नहीं होगी.’
‘औरतों को अगर हमारे साथ सेक्स न करना हो, तो वो हमसे मीटर भर दूर ही रहें.’
अजीब दलील : ग्रुप समाज की भलाई के लिए बनाया गया है!
ये पहली बार नहीं है जब ग्रुप के बारे में पब्लिक में बातें की जा रही हैं. मई में, जब ये ग्रुप शुरू हुआ था, तब मीडिया में इसका जिक्र हुआ था. ग्रुप शुरू करने वाले ब्रोक पॉक ने डेली टेलीग्राफ को बताया था कि ये ग्रुप मर्दों ने एक-दूसरे को सहारा देने के लिए बनाया है.
‘हमने ग्रुप के कुछ नियम बनाए हैं. जो उन्हें तोड़ता है, हम उसे ग्रुप से निकाल देते हैं… हम ये चाहते हैं कि जो बातें पुरुष किसी से नहीं कह पाते, वो आपस में कह सकें. हम टीशर्ट बनाते हैं. और उन्हें बेचकर आए पैसों को चैरिटी में दे देते हैं.’
कितनी बहकी हुई सोच है ये. अगर चैरिटी रेप से मज़े लेकर होती है, तो ऐसी चैरिटी की किसी को जरूरत नहीं है. बात ये नहीं कि ये प्रो-रेप बातें किसी सीक्रेट ग्रुप में कही जा रही हैं तो इनसे कोई नुकसान नहीं होगा. मुद्दा ये है, कि ये कैसी सोच है लोगों की? जिसमें हिंसा के नाम पर मज़े लिए जाते हैं?
लेकिन ऐसे वर्चुअल ग्रुप से औरतों को क्या नुकसान होता है?
आप कह सकते हैं कि ये तो सिर्फ बातें हैं. आप ये भी कह सकते हैं कि ऐसे बातें करने वाले लोगों का ये एक छोटा ग्रुप है. सारे मर्द ऐसे नहीं होते. जी हां, सारे मर्द ऐसे नहीं होते. लेकिन 2 लाख की संख्या कोई छोटी नहीं होती. सोचिए, इस सोच वाले मर्द दुनिया में घूम रहे हैं. हमारे आस-पास हैं. अलग अलग रूप में. इनकी बेटियां होंगी. पत्नियां होंगी. आज जब ये गैंग रेप जैसी अमानवीय हिंसा के मज़े ले सकते हैं, कल ये ऐसा सच में होते हुए देख भी मजे ले सकते हैं.
सेक्स सभी की फंतासी का हिस्सा होता है. लेकिन रेप सेक्स नहीं होता. सेक्स तो वो होता है, जिसमें दोनों पार्टनर्स की मर्जी हो. वो नहीं जिसमें मर्द औरत पर जानवर की तरह सवार हो. और औरत रो रही हो. ये किसी की भी फंतासी का हिस्सा कैसे हो सकती है. जिस समाज में ऐसे ग्रुप सुपरहिट हों, वहां की औरतें सेफ कैसे महसूस कर सकती हैं.
औरतें सेफ कैसे सेफ महसूस कर सकती हैं जब उन्हें लगे कि पब्लिक बसों, पार्कों, मॉल में उनके सामने खड़ा मर्द उनके रेप के बारे में सोच रहा है. और रेप न कर पाने की सूरत में किसी वेबसाइट पर उसको लेकर अपनी फंतासी की भड़ास निकालेगा.
रेप कल्चर की सच्चाई सचमुच बहुत डरावनी है. बहुत डरावनी.