May 2, 2024

78 वर्षीय दादा जी ने कक्षा 9 में लिया दाखिला, 3 किलों मीटर पैदल चलकर जाते है स्कूल, गरीबी के कारण छोड़ी थी पढ़ाई

Mizoram/Alive News : सीखने की कोई उम्र नहीं होती है। मिजोरम के चंफई जिले के रहने वाले 78 वर्षीय बुजुर्ग की कहानी इस बात का प्रमाण है। बजुर्ग होने पर लोग घर से भार निकलना भी पसंद नहीं करते है। वहीं 78 बुजुर्ग ने स्‍कूल में दाख‍िला ले कर कक्षा 9 में एडमिशन कराया है। बचपन में पिता के निधन की वजह से उनकी पढ़ाई छूट गई, क्‍योंकि इन्‍हें मां के साथ खेतों में काम करना पड़ता था ताकि पर‍िवार का खर्च चल सके लेकिन जैसे ही उन्‍हें मौका मिला, फ‍िर से पढ़ाई करने की इच्‍छा जागी।

मिजोरम के चम्फाई जिले के ह्रुआइकोन गांव के रहने वाले लालरिंगथारा की कहानी है। कहते है कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती है। मिजोरम के एक 78 वर्षीय बुजुर्ग मन पढ़ाई का ऐसा जज्बा जगा की बुजुर्ग अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में अपनी उम्र को आड़े नहीं आने दिया। लालरिंगथारा रोजाना स्कूल यूनिफॉर्म पहनकर और किताबों से भरा बैग लेकर अपनी कक्षा तक पहुंचने के लिए हर दिन 3 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। मिजोरम के चम्फाई जिले के ह्रुआइकोन गांव के रहने वाले लालरिंगथारा की कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गई है। उन्होंने गांव के राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) हाई स्कूल में कक्षा 9 में दाखिला लिया है।

1945 में भारत-म्यांमार सीमा के पास खुआंगलेंग गांव में जन्मे लालरिंगथारा अपने पिता की मृत्यु के कारण कक्षा 2 के बाद अपनी शिक्षा जारी नहीं रख सके। रिपोर्ट के अनुसार, उन्हें कम उम्र में ही खेतों में अपनी मां की मदद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। वह माता-पिता के इकलौते बच्चे थे। उनका परिवार 1995 में न्यू ह्रुआइकॉन गांव में बस गया। गरीबी के कारण उनके करियर के कई वर्ष बर्बाद हो गए।

उन्हें अपनी अंग्रेजी में सुधार लाना है। वह अंग्रेजी में आवेदन लिखने से लेकर न्यूज चैनलों की रिपोर्टों को समझना चाहते हैं। लालरिंगथारा को मिजो भाषा का ज्ञान है। वह पढ़ने और लिखने में सक्षम हैं। वह वर्तमान में न्यू ह्रुआइकॉन में चर्च में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करते हैं।

उन्होंने कहा, “मुझे मिजो भाषा में पढ़ने या लिखने में कोई समस्या नहीं है। शिक्षा की मेरी इच्छा अंग्रेजी भाषा सीखने के मेरे जुनून के कारण बढ़ी है। आजकल साहित्य के हर टुकड़े में कुछ अंग्रेजी शब्द शामिल होते हैं। ये शब्द अक्सर मुझे भ्रमित करते हैं। इसलिए मैंने अपने ज्ञान को बेहतर बनाने के लिए स्कूल वापस जाने का फैसला किया। खासकर मैं अंग्रेजी भाषा सीखना चाहता हूं।”

स्कूल के प्रभारी प्रधानाध्यापक वनलालकिमा ने कहा,, “लालरिंगथारा छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए समान रूप से एक प्रेरणा और चुनौती हैं। सीखने के जुनून के साथ एक सराहनीय व्यक्ति उस सभी समर्थन के हकदार हैं जो उन्हें प्रदान किया जा सकता है।”