December 24, 2024

पत्रकार, प्रधान, दलाल व पुलिस की करतूत है हेमन्त की हत्‍या

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चंदौली में जितने दारोगा, उससे छह गुना पत्रकार : हत्‍या का मामला खोलने के बजाय सिर्फ मटरगश्ती कर रही है पुलिस, सिर्फ वादा : बात-बात पर वसूली करते हैं चंदौली के पराडकर-वंशज : चंदौली : 12 दिन बीत चुके हैं, लेकिन पुलिस अब तक हेमंत यादव के हत्यारों को नहीं खोज पायी है। हां, पिछले छह दिनों से पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों को हवालात में बंद रखा है, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल पाया। हैरत की बात है कि इस हत्या को लेकर चंदौली के एक बड़े पत्रकार संगठन उपजा में जबर्दस्त उठापटक शुरू हो चुकी है। यहां के एक बड़े पदाधिकारी विनय वर्मा ने उपजा से इस्तीफा दे दिया है। हत्या और उसकी साजिश की तपिश इस संगठन के मौजूदा अध्यक्ष दीपक सिंह का चेहरा झुलसा रही है।

आपको बता दें कि पिछले 3 अक्टूअबर की रात आठ बजे चंदौली के पत्रकार हेमन्त यादव की तब गोली मार कर हत्या कर दी गयी जब वे अपनी बाइक से धीमा थाना क्षेत्र के जमुरखा गांव के बाहर एक पुलिया से गुजर रहे थे। हत्यारों ने उनका पीछा किया और चलते-चलते उनकी दाहिनी कांख और ढुड्ढी पर फायर कर दिया। हेमंत की मौके पर ही मौत हो गयी। कहने की जरूरत नहीं कि चलती बाइक में जिस तरह से यह फायर किये गये, वह उसमें शातिर शूटर का ही कमाल प्रतीत होता है।

हेमंत की उम्र 40 बरस, गठीला बदन, तेज-तर्रार, सौम्या, शालीन, भाषा पर पकड़, खबर सूंघने की क्षमता, दो मासूम बच्चे, पत्नीे, मां-पिता और थोड़ी खेती-बगिया। बस इतनी ही सम्पत्ति थी हेमंत यादव के पास। चंदौली के धानापुर का रहने वाला था हेमंत, लेकिन लम्बे समय तक वाराणसी में उसने काम किया। वह क्या काम था, किसी को कुछ भी नहीं पता। लेकिन करीब सात साल पहले वह चंदौली में सक्रिय हुआ। तब तक चंदौली की पत्रकारिता में कई पत्रकारों की दूकानों चकाचक चौंधियाती रहती थीं। हेमंत ने अपनी धुंआधार आमद ने अपनी बड़ी दूकानें फैलाये लोगों की थाली से रोटियां छीनना शुरू कर दिया। जहां यहां के मठाधीश केवल फोन पर अपना काम निपटा लेते थे, हेमंत ने गांव-गांव, बाजार, टोल-टैक्सी बैरियर, दफतर, चौकी, थाना, डीएम, कप्ताान तक को छान मारा। उसके साथ कलम भी थी और कैमरा भी। कोटेदार की दूकान की फोटो खींची, ग्राहकों से बयान लिया और मालिक को हड़का दिया। शाम तक दो-चार हजार रूपया की दिहाड़ी हो ही जाती थी हेमंत थी। चूंकि दिग्गज पत्रकारों की दिहाड़ी दस-पंद्रह के आसपास थी, अफसरों में धमक भी थी, लेकिन इसके बावजूद मठाधीशों को हेमंत की आमद सख्त नागवार लगी। जाहिर है कि कुछ ही दिनों में दिग्गज पत्रकारों का आसन डोलने लगा।

इसी बीच पंचायत चुनाव की गुडडुगी बजने लगी। धीमा थाना के एवती गांव के प्रधान ने ग्राम सभा की जमीन का एक बड़ा हिस्सा। बांटने की तैयारी शुरू कर दी। यह लोहिया गांव है। एक दिन सरकारी अमला एवती गांव पहुंच गया। हेमंत को खबर लगी कि इसमें भारी घोटाला होने वाला है। कुछ लोगों का कहना है कि इसमें 60 बीघा जमीन थी तो कुछ उसे कम बताते हैं। बहरहाल, हेमंत अपने एक साथी देवानंद उपाध्याय के साथ कैमरों से लैस होकर मौके पर पहुंच गया। यानी शेर की मांद में भेडिय़े घुसने लगे। प्रधान के रिश्ते दिग्गज पत्रकारों से थे, तो उसने धौंस जमानी शुरू कर दी। बात भड़की। उस दिन थानाध्य क्ष महेंद्र यादव अवकाश पर थे और प्रभारी थे बिसनू राम गौतम। प्रधान और एक बड़े पत्रकार के मुंहलगे। पुलिस ने हेमंत और देवानंद को दबोचा और थाने पर ले गये। खबर पाकर हेमंत के साथी दीपक कुमार और संजय उपाध्याय थाने पर गये तो पुलिस ने उन्हेंप भी दबोच लिया और सरकारी कामधाम में हस्तक्षेप तथा धोखाधड़ी आदि अनेक धाराओं में उन चारों को जेल भेज दिया। करीब 20 दिनों तक पत्रकारों की यह टोली जेल में रही।

लेकिन हैरत की बात है कि उपजा के अध्यक्ष दीपक सिंह ने अपने अखबार दैनिक हिन्दुस्तान में यह खबर लिखी कि उगाही और वसूली के लिए यह घटना फर्जी पत्रकारों के नाम पर कलंक बने लोगों ने किया है। यह भी खबर उछली कि दीपक सिंह ने प्रभारी थानाध्‍यक्ष सरोज को फोन करके कहा था कि यह साले सब फर्जी हैं, इनकी —– में डण्‍डा डाल दो, तो सब सुधर जाएगा। सरोज समेत जिले के अधिकांश दारोगों पर दीपक का खासा दबाव बताया जाता है। हालांकि दीपक इस बात से इनकार करते हैं। हिन्‍दुस्‍तान में यह छपते ही हंगामा खड़ा हो गया। उपजा के पूर्व अध्यक्ष विनय वर्मा ने इसके विरोध में उपजा की प्राथमिक सदस्य‍ता से ही इस्तीफा दे डाला और दीपक और उनकी टोली के लोगों पर बेहिसाब आरोप उछाल डाले। उधर दीपक ने भी विनय पर हमला बोलना शुरू कर दिया। दीपक का आरोप है कि सारी कारस्‍तानी विनय वर्मा की है वह भी बहुत विद्वान और चालू-टाइप आदमी हैं। जबकि विनय इस जिले की पत्रकारिता में होने वाले सारे बवालों की असल जड़ करार देते हैं। फिलहाल चंदौली की पत्रकारिता के हवन-कुण्ड में आजकल हाहाकारी लपटें भड़क रही हैं।

लेकिन हैरत की बात है कि इतना बवाल होने के बावजूद पुलिस अब तक इस मामले को सुलझाने के लिए सिरा तक नहीं पकड़ पायी है। घोटालों-रैकेटों को कोसों दूर बैठ कर फौरन सूंघ लेने वाले यहां के महान पत्रकारों को यह तक पता नहीं चल पाया है कि यह पूरा मामला क्‍यों हुआ। हालांकि हकीकत यह है कि इस बारे में जानते सब जानते हैं, मगर बोलते नहीं हैं। जाहिर है कि मगरमच्छों से पटे तालाब में बैठै दलाल पत्रकार किस-किस से झगड़ा पाले।

आपको बता दें कि चंदौली में 500 से ज्यादा पत्रकार हैं। अकेले उपजा में ही सवा दो सौ से ज्यादा सदस्य हैं। इसके अलावा ग्रामीण पत्रकार एसोसियेशन, आल इंडिया मीडिया जर्नलिस्ट एसोसियेशन और भारतीय पत्रकार संघ की जड़ें भी यहां खूब गहरी हैं। न जाने आईएफडब्यूजे के लोग यहां क्या करते हैं। उपजा के ताजा अध्यक्ष दीपक सिंह को यह तो पता है कि इस जिले में 4 तहसील और इतने ही एसडीएम हैं, लेकिन उन्हें यह कोई सूचना नहीं है कि इस जिले की जनसंख्या कितनी है और इस जिले का क्षेत्रफल कितना है। वे गर्व के साथ बताते हैं कि बडी संख्या में पत्रकारों के चलते थाना ही नहीं, चौकी स्तर तक पत्रकारिता की पहुंच हो गयी है। लेकिन आप दस-बीस साल तक के किसी भी अखबार का कोई भी अंक पलट लीजिए, आपको कोई भी एक खबर ऐसी नहीं मिलेगी, जिसमें दलाली से इतर कोई तथ्य हो। दीपक की गतिविधियों के खिलाफ उपजा छोड़ने वाले पूर्व अध्यक्ष विनय वर्मा मानते हैं कि यह हालत दर्दनाक है। उनका कहना है कि इस बारे में जल्दी् ही एक बड़ा अभियान छेड़ने जा रहे हैं।

हे ईश्‍वर। चंदौली में इतनी भारी संख्‍या में पत्रकार हैं। लेकिन वे क्‍या करते होंगे, हैरत की बात है। जरा सोचिये कि अगर कोई एसडीएम से रोजाना कम से कम सवा सौ पत्रकार मिले, तो वह क्‍या काम कर सकता है, यह यक्ष-प्रश्‍न है।

लखनऊ के वरिष्ठ और बेबाक पत्रकार कुमार सौवीर ने यह ग्राउंड रिपोर्ट चंदौली जाकर पड़ताल करने के बाद लिखी है.

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