श्रीकृष्ण शर्मा
हरियाणा में शिक्षा सुधार के नाम पर परिवर्तन पर परिवर्तन, प्रयोग पर प्रयोग देखते आ रहे है, जिनके परिणाम उलटे ही मिल रहे है, कोई भी प्रयोग 1990 से पूर्व की नीतियों नियमो के सन्दर्भ में कामयाब नही कहा जा सकता। सन 1994 के बाद से हर वर्ष कोई ना कोई नया नियम नीति हरियाणा के बच्चो पर थोंपी जाती रही है किसी भी वर्ष यह निश्चित नही होता है कि इस सत्र में क्या होना है? पुरानी नीति नियम क़ानून में इतने बच्चे सामंजश्य बिठा भी नही पाते है कि नई सरकारे आते ही कुछ ना कुछ नया प्रयोग कर बैठती, बोर्ड की नीति नियमो में स्थाईत्व होने ही नही दिया जाता, कभी बोर्ड तोड़ दिया जाता है तो कभी बना दिया जाता है, कभी पांचवी कक्षा में भी बोर्ड तो आठवी कक्षा में भी बोर्ड, कभी सैमेस्टर, कभी एनरोलमेंट, कभी फ़ैल, री-अपीयर जैसे विधार्थियो के जीवन बर्बादी के नियम बना दिए जाते है. इन किसान, मजदूर, गरीबो के बच्चो पर प्रयोग ही प्रयोग क्यों? दरअसल, जो लोग नीति नियम तय करते है या वो बोर्ड में कर्मचारी है या फिर जो हरियाणा शिक्षा बोर्ड के अंतर्गत परीक्षा लेते है. हरियाणा के अधिकतर अध्यापक स्कूलों में पढ़ाते है वे सभी धनाड्य वर्ग और पढ़े लिखे शिक्षित वर्ग के लोग आम लोगो की तरह अपने बच्चों को हरियाणा बोर्ड के स्कूलों में पढ़ते ही नहीं। क्योकि उनकी नजर में इस बोर्ड की कोई विश्वसनीयता नही है. अब फिर एक नया प्रयोग करने की बात सुनने में आ रही है कि पांचवी कक्षा और आठवी कक्षा के मासूम छात्रों की परीक्षा बोर्ड की होगी। पिछले 25 वर्षो से इस बोर्ड की कार्यप्रणाली को बेहद नजदीक से देखा है, स्टाफ की कमी और स्थानीय प्रसासन के असहयोग का बहाना बनाते हुए यह बोर्ड कभी भी दसवी और बारहवी की परीक्षा भी नकल रहित, स्वच्छ, राष्ट्रिय मानको के अनुरूप, पूर्ण प्रामाणिकता से संचालित नही करवा पाया है. इन नादान बच्चो पर बोर्ड परीक्षा का बोझ, पांचवी आठवी की परीक्षा लेने का फिर बोर्ड का एक बार से प्रयोग, क्या उचित कदम होगा?
हरियाणा बोर्ड में सबसे बड़ा विषय नकल है. इसकी उत्पत्ति कैसे और क्यों हुई. सवाल यही खतम नहीं होता। बल्कि कौन करवाता है और क्यों करवाता, बड़ा सवाल अभी यही है? जबकि स्कूल की आंतरिक परीक्षाओ में बिलकुल नकल नही होती है फेल पास तो सरकार की नीतियों से होते है. बच्चे तो नर्सरी से लेकर नौवीं और बारहवीं में भी प्रथम-द्वितीय स्थान पाते है, इतना ही नहीं अच्छे अंक भी लाते है. आप जैसा सोचते है कि बोर्ड परीक्षा के भय से बच्चे पढ़ते है और टीचर पढ़ाते है बिलकुल भी सही नही है, फिर तो नॉन बोर्ड क्लास में तो कोई पढएगा ही नही. क्यों जरूरत है फिर नर्सरी से सातवीं क्लास, नौवीं और बारहवीं की. अगर ऐसा हो तो मैट्रिक कक्षा का रिजल्ट आप देख सकते है. बोर्ड को कोई फर्क नही पड़ता, उल्टा बच्चे सीबीएसई की तरफ भाग रहे है. कुछ लोग आठवी-पांचवी में ही बोर्ड परीक्षा क्यों चाहते है? जबकि सीबीएसई एक राष्ट्रिय बोर्ड है जहा पूरे देश की क्रीमी लेयर के बच्चे पढ़ते है वहाँ मैट्रिक में भी ऑप्शनल बोर्ड परीक्षा है फिर हरियाणा जोकि एनसीआर में है, लेकिन हरियाणा बोर्ड प्रदेश के बच्चों पर प्रयोग क्यों कर रहा है. सरकार चाहती है तो पांचवी और आठवी कक्षा में बोर्ड को ऑप्शनल बना दे. लेकिन मैंडेटरी नही.
(लेखक एक निजी स्कूल के प्रबंधक है )