May 1, 2024

अपना यथार्थ जानने के लिए मन के भावों पर नजऱ डालना जरूरी : सजन

Faridabad/Alive News : सतयुग दर्शन वसुन्धरा में आयोजित राम नवमी यज्ञ महोत्सव के द्वितीय दिवस सर्वोच्च मानव-धर्म अपनाने के प्रति सजनों को जाग्रत करते हुए सतयुग दर्शन ट्रस्ट के मार्गदर्शक सजन ने कहा कि अपना यथार्थ स्वरूप जानने के लिए अगर हम अपने मन के भावों पर नजऱ डालें तो हमें इस सत्य का बोध होगा कि मनुष्यत्व खुद में निहित होते हुए भी हम अभी मनुष्य नहीं वरन् मनुष्यत्व के प्रत्याशी हैं। मनुष्यत्व शब्द से अभिप्राय सब में विद्यमान मानव प्रतिष्ठा के केन्द्र अर्थात् आत्मा तथा दिव्यता से है, जिसके प्रति जागृत हो हमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसके गौरव को अभिव्यक्त करने के योग्य बनना है।

अत: हमें पूर्ण मानवीय विकास तथा उसकी पूर्णता पर ध्यान देने की आवश्यकता को समझना है और सर्व एकात्मा का भाव रखकर समस्त प्राणियों में समरूप निहित आत्मा में परमात्मा की हर बात को एक सपुत्र की तरह अंगीकार करते हुए व मन-वचन-कर्म द्वारा उस पर खरा उतरते हुए उनका आदर-सत्कार करना है। उन्होंने कहा कि ऐसा करना ही उत्तम भक्ति का प्रतीक है। इस संदर्भ में श्री सजन ने उपस्थित जन समुदाय को यह भी कहा कि पुन: पूर्ण मानव बनने के लिए हमें आत्मिक ज्ञान जो सही अर्थों में मानवता का आधार है उसे धारण कर अपनी आत्मिक शक्ति का बोध करना है और उसी शक्ति के प्रभाव व पराक्रम द्वारा अपना हर कार्य करना व कराना है।

यहां समझना है कि जहां अन्य भौतिक शक्तियों का प्रभाव परिस्थितियों के अनुसार घट-बढ़ सकता है, वहीं इस शक्ति का धारक अपनी आत्मिक शक्ति पर विश्वास रख आद् से अंत तक यानि जन्म से मरण तक समरूप से पराक्रमी बना रह पाता है। यही कारण है कि वह फिर जीवन में जो भी करता है नित्य-भाव से निषंग करता है। उन्होंने कहा कि पुन: मानव बनने हेतु हमारे लिए आवश्यक है कि इस अध्यात्मिक विद्या द्वारा हम अपने मन के दर्पण में आत्मसाक्षात्कार कर मानव धर्म के बोध द्वारा अपनी बुद्धि को इस तरह से प्रदीप्त कर लें कि सर्वव्यापक भगवान का सत्य हमारे लिए कभी भी सवाल न बने और हमें अपना आचार, व्यवहार सजन-भाव अनुरूप साधे रखने में किसी प्रकार की भी कोई कठिनाई न हो।

तभी हम इस सत्य के युक्तिपूर्ण, व्यवहारिक व क्रियाशील वाहक बन पाएंगे। सजन ने कहा कि परिसर में निर्मित समभाव-समदृष्टि का स्कूल इसी प्रयोजन सिद्धि हेतु खोला गया है जहां बड़ी उम्र के सजनों के अतिरिक्त बाल्यवस्था से ही बच्चों को आत्मज्ञान को धारणा करने की प्रेरणा प्रदान कर उन्हें तद्नुकूल जीवन में अमल में लाने की युक्ति प्रदान की जाती है ताकि वे एक अच्छे व नेक इंसान की तरह प्रसन्नतपूर्वक नि:स्वार्थ जीवन जीने के योग्य बन सके।