हिंदू धर्म में शनि जयंती का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को शनि जयंती मनाई जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मनुष्य के कर्मों के अनुसार ही शनिदेव उसे फल देते हैं। मनुष्य द्वारा किया गया कोई भी बुरा या अच्छा कार्य शनिदेव से छिपा हुआ नहीं है। इस दिन शनिदेव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं। शनिदेव की विधि पूर्वक पूजा करने से भक्तों की सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन पर शनिदेव की कृपा बनी रहती है।
महत्व
मनुष्य द्वारा जान बूझकर और अंजाने में हुई गलतियों का संपूर्ण हिसाब शनिदेव के पास होता है। इसलिए शास्त्रों में शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। अगर सही तरीके और पूरे विधि विधान से शनिदेव की पूजा की जाए तो इससे ग्रहों की दशा में सुधार होता है। इसके साथ ही शनिदेव की असीम कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि शनि जयंती के दिन शनिदेव की पूजा करने से शनि की बुरी दृष्टि नहीं पड़ती। इसके अलावा शनि दोष से भी मुक्ति मिलती है।
पूजा विधि
शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा उसी मंदिर में करें, जहां वह शिला के रूप में विराजमान हों। प्रतीक रूप में शमी के या पीपल के वृक्ष की आराधना करनी चाहिए। शनि देव की पूजा करते वक्त सरसों के तेल का दीपक जलाना शुभ माना जाता है, लेकिन बिना किसी कारण शनि शिला पर सरसों को तेल नहीं डालना चाहिए।