Kurukshetra/Alive News : हरियाणा के गांव के कलात्मक इतिहास का संकलन कर उसकी डॉक्यूेंटेशन की जाएगी ताकि हरियाणा के गरिमामय इतिहास एवं लोककलात्मक संस्कृति कों युवा पीढ़ी से जोड़ा जा सके। यह उद्गार हरियाणा संस्कृति एवं इतिहास अकादमी के निदेशक प्रो. रघुवेन्द्र तंवर ने शनिवार को जाट धर्मशाला में हरियाणा कला परिषद द्वारा आयोजित दस दिवसीय चित्तण एवं लोककलात्मक अलंकरण कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि संबोधन करते हुए कहे। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता डीन साईंस फैकल्टी प्रो. श्याम कुमार ने की। इस मौके पर डॉ. विश्वबन्धु शर्मा, राजकिशन नैन सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
प्रो. रघुवेन्द्र तंवर ने कहा कि चन्द्रगुप्त मौर्य एवं सिकंदर ने कहा था कि हरियाणा के वीर यदि उनके सेना मेें हो तो वे पूरे विश्व को फतेह कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हरियाणा की लोककला में चित्तण का विशेष महत्व है। इस तरह के आयोजन निरंतर होने चाहिएं ताकि हरियाणा की लोककला संरक्षित हो सके। इस मौके पर हरियाणा कला परिषद के निदेशक अजय सिंघल ने अपने संबोधन में कहा कि पचास वर्षों में हरियाणा में पहली बार इस तरह की चित्तण कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यशाला के माध्यम से हरियाणा की लोक सांस्कृतिक विरासत को संजोकर इंटरनेट के साथ सोशल मीडिय़ा में उजागर किया जायेगा ताकि युवा पीढ़ी उससे रूबरू हो सके। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. श्याम कुमार ने कहा कि हरियाणा संस्कारों की धरती है। वर्तमान में पाश्चात्य के बढ़ते प्रभाव की बदौलत युवा पीढ़ी लोककलाओं से कटती जा रही है। यह कार्यशाला लोककलाओं को संजोने का काम करेगी।
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विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ. महासिंह पूनिया ने कहा कि हरियाणा की लोककला का संबंध वैदिक परम्पराओं से जुड़ा हुआ है। हरियाणा में दीपावली, दशहरा, विवाह, भैयादूज, होली, नाग पंचमी, गूगा नवमी, देव उठनी ग्यास, अहोई अष्टमी, शीतला अष्टमी आदि पर चित्तण की परम्परा है। कार्यशाला में हरियाणवी चित्तणों का संरक्षण युवा पीढ़ी के लिए मील का पत्थर साबित होगा। इस मौके पर हरियाणा कला परिषद के कार्यक्रम अधिकारी सत्यवान, अजय गौरी शंकर, डॉ. सुशील टाया, मयंक, मनदीप कौर, डॉ. प्रवीण कादयान, डॉ. राजपाल, जाट धर्मशाला के मैनेजर भले राम, लोक सम्पर्क विभाग के एपीआरओ डॉ. नरेन्द्र सहित प्रदेश भर से आए कार्यशाला में भाग लेने वाले कलाकार उपस्थित थे।
हरियाणवी थापों पर हुआ मंथन
कार्यशाला में पहले दिन हरियाणवी साहित्य एवं संस्कृति के विद्वान डॉ. विश्वबंधु शर्मा एवं राजकिशन नैन ने लोक कलाकारों को हरियाणवी थापों की सांस्कृतिक महत्ता के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि हरियाणवी लोकजीवन में गूगा का थापा, गऊ-बाछड़ का थापा, शीली सातम का थापा, अहोई अष्टमी का थापा, धनतेरस का थापा, दीपावली का थापा, होली का थापा, विवाह का थापा आदि की महत्ता को दर्शाते हुए इनकी सांस्कृतिक परम्परा एवं बनाने की विधि पर भी वैचारिक मंथन किया गया।