November 15, 2024

सरकारी स्कूलों की कहानी, गडकरी की जुबानी

Delhi/Alive News: अपनी बेबाक टिप्पणी व सच्चाई का बखान करने वाले केंद्रीय मे एमजे मंत्री नितिन गडकरी ने एक स्कूल के भूमि पूजन समारोह में यू स्कूल की शिक्षा पद्धति पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा है कि जहां स्कूल की बिल्डिंग है, वहां टीचर नहीं हैं, जहां टीचर हैं, वहां बिल्डिंग नहीं है,जहां दोनों हैं, वहां पर विद्यार्थी नहीं हैं, और जहां पर तीनों हैं वहां पर पढ़ाई नहीं है। हरियाणा अभिभावक एकता मंच ने गडकरी के इस बयान की प्रशंसा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा है कि वे अपने तीसरे कार्यकाल में सरकारी शिक्षा खासकर प्राइमरी शिक्षा में गुणात्मक सुधार करके उसको आधुनिक बनाएं और उनमें सभी वे जरूरी सुविधाएं मुहैया कराएं जो प्राइवेट स्कूल संचालक प्रदान करते हैं।

मंच का मानना जु है कि आज भी सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं जैसे कि उपयुक्त कक्षा भवन, स्वच्छ पेयजल,शौचालय,पुस्तकालय, आधुनिक प्रयोगशाला,बिजली का अभाव है। कई सरकारी स्कूलों में प्रशिक्षित और योग्य शिक्षकों की कमी है। 2004 की ग्लोबल एजुकेशन रिपोर्ट में विश्व के 127 देशों में भारत का स्थान 106वां है। भारत विश्व की 10 सबसे तेज विकास करने वाली शक्तियों में शुमार है लेकिन अभी भी लगभग 40% लोग अशिक्षित या अल्प-शिक्षित हैं। स्वतंत्रता के 65 साल बीत जाने के बाद भी आज भारत के सामने गरीबों को शिक्षित करने की चुनौती बनी हुई है।भारत जैसे देश में विकास का एकमात्र जरिया शिक्षा है। इसको आम आदमी तक पहुंचाने के लिए 2009 में शिक्षा अधिकार कानून आरटीई एक्ट बनाया गया। इसमें 6 से 14 वर्ष के बच्चों की शिक्षा अनिवार्य कर दी गई है। इसका मुख्य उद्देश्य पूरे भारत में शत-प्रतिशत साक्षरता को प्राप्त करना है।

शिक्षा अधिनियम लागू हुए करीब 6 वर्ष हो गए हैं लेकिन अभी भी सरकारी स्कूलों की दिशा में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है। एक सर्वे के अनुसार सिर्फ 5% सरकारी स्कूलों में ही आरटीई के अनुसार जरूरी सुविधाएं पाई गईं हैं। 2013 में मानव विकास मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष पूरे देश में 5वीं तक आते-आते करीब 23 लाख छात्र-छात्राएं स्कूल छोड़ देते हैं। । इस समय देश में लगभग 13.62 लाख प्राथमिक स्कूल हैं जिनमें कुल 41 लाख शिक्षक मात्र हैं। करीब 1.5 लाख स्कूलों में 12 लाख से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। देश में अभी भी 1800 विद्यालय पेड़ के नीचे या टेंटों में लग रहे हैं। 24 हजार विद्यालयों में पक्के भवन नहीं हैं। सरकारी विद्यालयों में सिर्फ वे ही छात्र आते हैं जिनके मां-बाप मजदूरी करते हैं वे अपने बच्चो को सिर्फ इसलिए प्रवेश कराते हैं कि उनको छात्रवृत्ति व मिड डे मील मिलती रहे।

सरकारी स्कूलों में बच्चे उपस्थित नहीं रहते हैं क्योंकि माता-पिता बच्चे का नाम लिखवाकर उसे स्कूल भेजने की बजाय अपने साथ मजदूरी पर ले जाते हैं एवं कभी-कभार ही वह विद्यालय आता है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी है फिर भी जो हैं उनको गैर-शिक्षकीय कार्यों जैसे चुनाव, सर्वे, जनगणना, मध्याह्न भोजन, पशुगणना इत्यादि कार्यों में लगाया जाता है जिससे उनका अध्यापन क्रम टूट जाता है। पहले गुरु शिष्य का जो रिश्ता हुआ करता था वह अब कहीं दिखाई नहीं देता है। पहले शिक्षक स्कूल में संसाधन ना होने के बावजूद पूरी मेहनत से लगन से बच्चों को पढ़ाते थे,कमजोर बच्चों को अलग से पढ़ाते थे अब स्कूलों में संसाधन पहले से ज्यादा हैं उसके बावजूद शिक्षक अपनी ओर से ऐसा कोई प्रयास नहीं करते जिससे सरकारी स्कूलों की दशा में सुधार हो। केंद्र व राज्य सरकारों को सरकारी स्कूलों की स्थिति के बारे में अच्छी तरह से पता है लेकिन वह उनमें गुणात्मक सुधार करने की बजाय सरकारें पूरी सरकारी शिक्षा को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए उनमें कार्य कर रहे शिक्षकों का सहयोग बहुत जरूरी है।