Faridabad/Alive News : ग्राम भूपानी स्थित, हरियाणा का प्रमुख श्रद्धा स्थल ध्यान-कक्ष यानि समभाव-समदृष्टि का स्कूल आजकल बहुत चर्चा में है। नित्य प्रति काफी सं या में सजन वसुन्धरा परिसर में पहुँचकर इसके कलात्मक सौन्दर्य का दर्शन तो करते ही हैं साथ ही यहाँ पर मानव होने के नाते उनको मानव-धर्म के प्रति जाग्रत कर मानवीय गुणों को आत्मसात् करने की प्रेरणा भी दी जाती है। इसी संदर्भ में आज एकता के प्रतीक, विश्व के प्रथम समभाव-समदृष्टि के स्कूल की भव्य शोभा देखने फरीदाबाद की एमरलड हाईट्स सोसाईटी के सदस्य सहपरिवार पहुँचे। परिसर की अद्वितीय शोभा देखते ही वे सब मंत्रमुग्ध रह गए और ध्यान कक्ष क्या है यह जानने के लिए उत्सुक हो गए? तभी उन्हे बताया गया कि यह ध्यान-कक्ष किसी मानव के मन की मनगढंत कल्पना की उपज नहीं है अपितु यह तो समय का फरमान है जिसका वर्णन सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ में किया गया है ताकि सच्चाई-धर्म से गिरे हुए इन्सान, सच्चाई-धर्म के दो मंत्र रटते हुए, अपनी वास्तविक हस्ती को पहचान सकें और आत्मनिर्भरता से मानव धर्म पर सधे रह सकें।
सोसाइटी के एक अन्य सदस्य के पूछने पर कि इस ध्यान-कक्ष में कोई शरीर/मूर्ति/तस्वीर स्थापित क्यों नहीं की गई है, ट्रस्ट के निष्काम स्वयंसेवकों ने बताया कि यहाँ शरीर/मूर्ति/तस्वीर आदि नहीं अपितु जगह-जगह यानि ध्यान-कक्ष परिसीमा के चारों ओर व सर्गुण-निर्गुण कक्षों में, वेद-शास्त्र विहित शब्द ब्रह्म विचार यानि कुदरत प्रदत्त सत्य ज्ञान प्रकाशित किया गया है।
इस संदर्भ में उन्होंनें आगे बताया कि कुदरत ने ही यह जगत बनाया है और उसी ने ही जगत का कुशलता से संचालन करने हेतु वेद-शास्त्रों में इन शब्द ब्रह्म विचारों को विदित किया है ताकि इंसान इन नश्वर शरीरों/तस्वीरों व मूर्तियों का चिंतन करने के स्थान पर, इन कुदरती विचारों का मनन कर, सत्यज्ञान को धारण करे और उसके आचार-व्यवहार द्वारा मन से कलुकाल छँट जाए व सतवस्तु छा जाए। आगे कहा गया कि जो भी इंसान जीवन की हर परिस्थिति में इन अटल विचारों पर मजबूती से डटा रहता है उसे कही बाहर भटकने की यानि इधर-उधर आने जाने की या किसी के आगे बार-बार मत्था टेकने की/झुकने की आवश्यकता नहीं रहती अपितु वह तो घर बैठे-बिठाए ही बिना किसी भाग दौड़ के इन विचारों का मनन कर आत्म संतोष प्राप्त कर लेता है।
ऐसा धीर विवेकशील इंसान फिर आत्मनिर्भर होकर आत्मविश्वास के साथ सच्चाई-धर्म के दो मंत्र रटते हुए एकता, एक अवस्था में आ एक अच्छा इंसान यानि श्रेष्ठ मानव बन जाता है। बताया गया कि ऐसा उत्तम इंसान बनाने हेतु ही यहाँ आने वाले हर सजन को शब्द है गुरु शरीर नहीं‘ इस कथन को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है यानि ‘ज्ञानी को नहीं ज्ञान को व ‘निमित्त में नहीं नित्य में श्रद्धा बढ़ाने के लिए‘ उत्साहित किया जाता है। फिर एक अन्य सदस्य के पूछने पर कि यहाँ इंसानों को क्या मंत्रणा दी जाती है ट्रस्ट के सदस्यों ने बताया कि यहाँ इंसानों को सत्य धर्म के निष्काम रास्ते को ध्यानपूर्वक साधने की शिक्षा दी जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि सत्य-धर्म का साधक ही सबसे उत्तम व धैर्यवान इंसान बन सकता है। इसी धैर्य के बलबूते पर फिर उसका संतोष कभी नहीं टूटता यानि वह हर हाल में कामना से रहित संकल्प रहित अवस्था में बना रहने में सक्षम हो जाता है। नतीजा उसकी मानसिक स्थिरता सदा सधी रहती है और वह आत्मज्ञानी बन सम पर खड़ा हो जाता है व ईश्वर की सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता व सर्वशक्तिमानता का रहस्य जान जाता है। उन्होने कहा कि हर मानव को ऐसा ही सशक्त इंसान बनाने हेतु इस ध्यान-कक्ष से सारा प्रयास चल रहा है।