Faridabad/Alive News : बीके अस्पताल में डॉक्टर और स्टाफ की बहुत एक आठ माह की लड़की को भुगतना पड़ रहा है। बल्लभगढ़ सरकारी अस्पताल से रेफर होकर बीके अस्पताल पहुंचे एक पिता को अपनी बच्ची के इलाज के लिए दर- दर भटकना पड़ा। क्योंकि अस्पताल के किसी स्टाफ ने उन्हें यह नहीं बताया कि एंबुलेंस व पंजीकरण के लिए किस काउंटर पर जाना है। इससे परेशान आठ माह की बेटी रोशनी के पिता अपनी बेटी और पत्नी के साथ इमरजेंसी के बाहर पार्क में जाकर बैठ गए। इसके बाद बीके अस्पताल के स्टाफ ने उन्हें सफदरजंग अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। इससे पहले शनिवार को इलाज में देरी होने से सात वर्षीय बच्चे ने अपने मां की गोद में दम तोड़ दिया था। बावजूद इसके अधिकारियों के रवैये में कोई सुधार देखने को नहीं मिल रहा है।
मिली जानकारी के अनुसार तिगांव निवासी रविंदर राम रविवार को अपनी आठ माह की बेटी रोशनी के इलाज के लिए सिविल अस्पताल बीके की इमरजेंसी में पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि बच्ची को उल्टी, दस्त, बुखार की शिकायत हैं। इमरजेंसी में तैनात डॉक्टर ने रोशनी की नाजुक हालत को देखते हुए उसे दिल्ली रेफर कर दिया और कैनुला लगाकर दवा चढ़ा दी। रविंदर का आरोप है कि स्टाफ ने इमरजेंसी में बेड पर रोशनी को लिटाने भी नहीं दिया। उन्होंने बताया कि पहले उन्होंने बल्लभगढ़ सरकारी अस्पताल में दिखाया था। वहां से बीके अस्पताल रेफर किया गया था। उसने एंबुलेंस के लिए आवश्यक कार्रवाई के लिए कई लोगों से पूछा, लेकिन किसी ने सही से जवाब नहीं दिया। इससे परेशान होकर वह अपनी बेटी रोशनी व पत्नी सुनीता सहित अस्पताल के बाहर आकर पार्क में आकर बैठ गया।
पंजीकरण काउंटर पर नहीं मिले कर्मचारी
मिली जानकारी के मुताबिक सिविल अस्पताल बीके में काउंटर नंबर 40 पर रेफरल पर्जी बनाई जाती है। रविंदर राम का आरोप है कि वह कई बार काउंटर पर आया, लेकिन कोई कर्मचारी मौजूद नहीं था। इमरजेंसी में तैनात डॉक्टर ने बताया कि बच्ची की छाती कफ से भरी हुई थी और निमोनिया की वजह से हालत गंभीर थी। उसे सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी और शिशु रोग विशेषज्ञ की सलाह के बाद ही उसे सफदरजंग अस्पताल रेफर किया गया है।