May 3, 2024

एलएलबी कोर्स की मियाद कम करने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

New Delhi/Alive News: सुप्रीम कोर्ट ने आज 12वीं क्लास के बाद 5 साल की अवधि वाले 3 साल की लॉ डिग्री कोर्स करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। सीजेआई ने इस जनहित याचिका को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि 5 साल का समय भी कम ही है। गौरतलब है कि फिलहाल एलएलबी कोर्स 5 वर्ष का है। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने इस मामले पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, इसके बाद याचिकाकर्ता ने अपनी PIL वापस लेने का फैसला किया।

सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल कर कहा गया था कि बैचलर ऑफ लॉ कोर्स (LLB) के लिए 05 साल की अवधि अनुचित है। एलएलबी कोर्स की 5 साल की अवधि को तर्कहीन बताते हुए याचिका में इसे अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-21 का उल्लंघन बताया गया है। PIL में यह दलील दी गई है कि 5 साल के एलएलबी कोर्स के कारण छात्रों को न केवल ज्यादा फीस भुगतान करना पड़ता है, बल्कि कीमती समय भी बर्बाद होता है।

जनहित याचिका में कहा गया था कि 12वीं के बाद छात्रों के लिए पाठ्यक्रम 5 वर्ष की अवधि के लिए है, वहीं दूसरी ओर 3 वर्षीय कानून डिग्री पाठ्यक्रम केवल स्नातकों के लिए उपलब्ध है। PIL में कहा गया है कि केंद्र और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को 12वीं कक्षा के बाद बैचलर ऑफ साइंस, बैचलर ऑफ कॉमर्स जैसे 3 साल के बैचलर ऑफ लॉ कोर्स शुरू करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने का निर्देश दिया जाए।

वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर करते हुए दलील दी थी कि 12वीं के बाद छात्र 03 साल (6 सेमेस्टर) में 15-20 विषय आसानी से पढ़ सकते हैं। ऐसे में बैचलर ऑफ लॉ कोर्स के लिए 05 वर्ष की अवधि अनुचित और तर्कहीन है। यह व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-21 का उल्लंघन करती है।

याचिकाकर्ता ने दिया ये उदाहरण
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने वरिष्ठ कानूनविद् दिवंगत राम जेठमलानी का उदाहरण देते हुए कहा था कि उन्होंने मात्र 18 साल की उम्र में वकालत शुरू की थी। इसके अलावा फली. एस. नरीमन ने भी सिर्फ 21 साल की उम्र में कानून की डिग्री पूरी करके वकालत शुरू कर दी थी।

कॉलेज प्रबंधन का दबाव
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया था कि ऐसा प्रतीत होता है कि लॉ कोर्स की अतार्किक 05 साल की अवधि कॉलेज प्रबंधन के दबाव में तय की गई है, ताकि निजी कॉलेज प्रबंधन अधिक से अधिक पैसा कमा सकें। देशभर में निजी लॉ कॉलेजों की कोर्स फीस अत्यधिक फीस है और निचले तथा मध्यम वर्ग के छात्रों के लिए इतनी अधिक फीस वहन कर पाना काफी मुश्किल है।