स्टीफन हॉकिंग का हमारे बीच से जाना वैज्ञानिक चिंतन और तर्कशीलता के लिए एक बड़ा नुकसान है। दुनिया में बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो जीते-जी अपने कर्म और चिंतन से महापुरुष का दर्जा पा जाते हैं। स्टीफन हॉकिंग ऐसे ही महापुरुष हैं, जो जीते-जी दुनिया के लिए किवदंती बन गए।
महापुरुषों की उत्पति के बारे में हमारे समाज में दो तरह की संकल्पनायें आम हैं। एक के अनुसार, महापुरुष बनाये नहीं जा सकते, वे जन्मजात होते हैं। दूसरी मान्यता है कि महापुरुष भी समय और परिस्थिति के अनुसार वांछित मौका मिलने पर खुद में छुपी संभावनाओं को युग की ज़रूरत के अनुसार उद्घाटित करता है।
भारत में महापुरुषों की उत्पति की पहली मान्यता आम लोगों में ज़्यादा लोकप्रिय है, जहां हम महापुरुष को अवतार तक का दर्जा दे देते हैं।
पर, उस महापुरुष को क्या कहेंगे, जो ईश्वरीय और अवतारवाद के दर्शन में विश्वास ही नहीं करता। स्टीफन हॉकिंग को जब 21 वर्ष की आयु में पता चला कि वे एक दुर्लभ बीमारी ‘मोटर न्यूरॉन’ से पीड़ित हैं और कई डॉक्टरों ने यहां तक कह दिया था कि वे ज़्यादा दिन तक नहीं बच पाएंगे, बावजूद इसके स्टीफन हॉकिंग ने ना केवल 76 वर्ष तक का जीवन जीया, बल्कि विज्ञान खासकर ब्रह्माण्ड की उत्पति और तर्कशील चिंतन को एक नया आयाम दिया।
आइंस्टीन के बाद स्टीफन हॉकिंग ने ही दुनिया को ब्रह्माण्ड और जगत की उत्पति के बारे में इतना कुछ बताया। ऐसा इसलिए हुआ कि विज्ञान, तकनीक और उससे बढ़कर उनकी इच्छाशक्ति ने इसे संभव बनाया। वैश्विक रूप से स्टीफन हॉकिंग तो सभी देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं ही, भारत के लिए तब वे और अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जब भारत में वैज्ञानिक चिंतन का अभाव और अंधश्रद्धा तथा आडम्बर का इतना बोलबाला है।
आज भी भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो विश्वास करते हैं कि ईश्वर की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। कुछ अन्य कहावत हैं, “समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता”, “सब कुछ ईश्वर की किताब में पहले से ही लिखा है”, “अच्छा कर्म नहीं करेंगे, तो मरने के बाद नरक में और बैतरनी में कष्ट सहना पड़ेगा”।
स्टीफन हॉकिंग इस तरह की सोच के खिलाफ थे। उन्होंने न केवल ऐसा कहा बल्कि अपने कार्य से इसे साबित भी किया। उन्होंने ब्रह्माण्ड के लगातार फैलने, ब्लैक होल आदि के सिद्धांतों से प्रकृति के नियमों को प्रधानता दी और ईश्वर के द्वारा ब्रह्माण्ड की उत्पति, संरक्षण और विनाश के सिद्धांत को खारिज कर दिया। भारत में इसे क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महेश द्वारा आम लोगों द्वारा आज भी माना जाता है।
जिस समाज में हर व्यक्ति अज्ञानता और डर को ईश्वरीय कह कर कारणों की सरलीकरण कर देता है, वहां संभव है कि उसके नाम पर बिचौलियों का खूब धंधा पनपे। आज भी धार्मिकता और ईश्वर को खुश करने के नाम पर कहीं हजारों लीटर दूध नाले में बहाया जाता है, तो कहीं शनि महाराज को खुश करने के नाम पर सैकड़ों टीन तेल बर्बाद किया जाता है। बाबाओं की अकूत सम्पति ईकट्ठा करने, चारित्रिक रूप से ज़्यादातर के पतित होने के बावजूद भी उनके अनुनायिओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है। दूसरी तरफ धर्म के नाम पर लोगों के बीच विद्वेष बढ़ाया जा रहा है। आज भी पद्मावती को सती का दर्जा देने, त्यौहारों के नाम पर दूसरे संप्रदाय के उपासना स्थल से जुलूस निकालने की ज़िद, मन्दिर-मस्जिद का विवाद आदि कायम है। आज भी राष्ट्र की सुरक्षा के लिए वैज्ञानिक और तकनीकि उन्नति की जगह यज्ञ करने की मानसिकता आम है।
स्टीफन हॉकिंग ने ऐसे में पूरी दुनिया को दिखाया कि एक इंसान का मस्तिष्क क्या कर सकता है।
उनकी कुछ उक्तियाों को पढ़ना उनको समझने के लिए ज़रूरी है, जो निम्न हैं –
परिवर्तन के हिसाब से खुद को ढाल लेना बुद्धिमता है।
ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु अज्ञानता नहीं है, बल्कि ज्ञान होने का भ्रम है।
मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो मानते हैं कि सबकुछ पहले से तय है, और हम कुछ भी बदल नहीं सकते, पर जब सड़क पार करना होता है, तो देखकर पार होते हैं।
यदि आप शारीरिक रूप से अक्षम हैं, तो शायद यह आपकी गलती नहीं है, लेकिन इसके लिए दुनिया को भी कोई दोष नहीं लगाया जा सकता या आप पर दया करने की उम्मीद नहीं की जा सकती। व्यक्ति में सकारात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए और उस स्थिति को देखते हुए जो सर्वोत्तम हो सकता है वह खुद से प्रयास करना चाहिए।
धर्म और विज्ञान के बीच एक बुनियादी अंतर है। एक सत्ता पर आधारित है और दूसरा अवलोकन और कारण पर आधारित है। विज्ञान जीत जाएगा, क्योंकि इसका सिद्धांत काम करता है।
हम सिर्फ एक बहुत ही औसत तारे के एक छोटे से ग्रह पर बंदरों की एक उन्नत नस्ल हैं, लेकिन हम ब्रह्मांड को समझ सकते हैं। यही बात हमें बहुत खास बना देती है।
हम में से प्रत्येक, जो हम चाहते हैं, विश्वास करने को स्वतंत्र हैं, और यह मेरा मत है कि कोई भगवान नहीं है। किसी ने भी हमारे ब्रह्मांड को नहीं बनाया है, और कोई भी हमारे भाग्य का निर्देशन नहीं करता है।
उपरोक्त स्टीफन हॉकिंग की उक्तियां इंसानी मस्तिष्क और कर्म के महत्व को स्पष्टता से ज़ाहिर करती है। इस प्रकार के वैज्ञानिक चिंतन और स्वंय अपने जीवन की ज़िम्मेदारी लेने के बाद किसी बाबावाद, आडम्बर, पुनर्जन्मवाद, अंधभक्ति, ओझा-गुनी में विश्वास करना संभव नहीं रहता, जिसका बोलबाला भारत में कल भी था और आज भी है। ऐसे में भारत के लिए स्टीफन हॉकिंग का होना, उनके वैज्ञानिक सोच और तर्कशीलता का होना है।