December 18, 2024

सतयुग दर्शन ट्रस्ट के ध्यान कक्ष में आध्यात्मिक अन्वेषण क्वीज का आयोजन

सतयुग दर्शन ट्रस्ट के ध्यान कक्ष में आध्यात्मिक अन्वेषण नामक एक मेगा क्वीज का आयोजन किया गया।

Faridabad/Alive News: सतयुग दर्शन ट्रस्ट के ध्यान कक्ष में आध्यात्मिक अन्वेषण नामक एक मेगा क्वीज का आयोजन किया गया। जिसका विषय था विषय-विकार एवं सद्‌गुण। इस क्विज के माध्यम से सैकड़ों सजनों को वर्तमान वातावरण के दृष्टिगत काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकार त्याग कर सम, संतोष, धैर्य, सच्चाई, धर्म, निष्कामता जैसे सद्‌गुण अपनाने के लिए प्रेरित किया गया । उन्हें समझाया गया कि आज युग परिवर्त्तन की कगार पर खड़ा है यानि पाप और अधर्म का युग कलियुग जा रहा है व सत्य और धर्म का प्रतीक सतयुग आ रहा है। ऐसे में सजनों के भावों-स्वभावों में व्यवहारिक स्तर पर क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता समय की सर्वप्रथम मांग है। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु ध्यान कक्ष से आध्यात्मिक क्रांति के तहत प्रत्येक सजन को सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ में वर्णित समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार, आपस में सज्जनतापूर्ण मैत्री भाव करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

विषय विकृतियों को त्यागने के संदर्भ में उन्हें कहा गया कि इस समय पूरा विश्व इस समय सत्ता और अर्थ की होड़ में अशांति की आग में जल रहा है। सबके सिर पर मौत मँडरा रही है जिसके चलते अपार अशांति है। यही हालत महत्त्वकांक्षाओं की होड़ में भटके मन की भी है। यही मन उपद्रव कराता है, युद्ध की आग भड़काता है, यही राग-विराग, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि पलते हैं और यही आशा-तृष्णा का संग्राम होता है। इस तरह बाह्य वातावरण प्रेरक और उद्दीपन का कार्य करते हैं और हमार मन शांति-अशांति का केन्द्र बन जाता है। अत: मन को पढना, मन को जानना और उसके भटकाव को रोकर उसे द्वंद्व रहित व कामना मुक्त कर सर्वप्रथम अनुकूल करना व तत्पश्चात्‌ शांत करना अनिवार्य है।

आत्मनिरीक्षण और आत्मसाक्षात्कार इसके साधन है जिसके लिए सब ओर से अपनी इन्द्रियों को समेट कर, भीतर यानि अंतमुर्खी कर लेना अनिवार्य है। ऐसा करने पर ही यह मन प्रवृत्ति-निवृत्ति, वैर-विरोध, तेरी-मेरी, मान-अपमान आदि से रहित हो अपनी अहंकार प्रवृत्ति का शमन कर सकता है व आत्मतुष्ट हो जीवन की हर परिस्थिति में सम बना रह सदा स्वस्थ व शांतमय बना रह सकता है। फिर न कोई कंपन होता है न हलचल, न उद्वेग न विक्षोभ अपितु निर्मल हृदय में समभाव का सूरज उदय होता है और अखंड शांति की प्रतीति होती है। अत: आप भी इस शांति की प्राप्ति हेतु सम, संतोष, धैर्य जैसे सद्‌गुण अपनाओ और सच्चाई धर्म के निष्काम रास्ते पर सीधे चलते हुए सर्वहित के निमित्त पर परोपकार कमाने का उद्यम दिखाओ।