Faridabad/Alive News : क्षत्रिय समाज फरीदाबाद द्वारा फरीदाबाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसमे राजपूत सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार एवं राजपूत महाराजा अनंगपाल तोमर के नाम के आगे गुर्जर शब्द लगाकर उनकी प्रतिमा ऐतिहासिक गाँव अनंगपुर में स्थापित करने के भूमाफियाओं के प्रयास को रोकने के बारे में एवं कल जो गुर्जर महासभा के तत्वाधान में राजपूत क्षत्रिय समाज की ऐतिहासिक विरासत पर निराधार अप्रमाणिक तर्क दिये गए उनका भारत सरकार द्वारा स्थापित पुरातात्विक विभाग एवं सर्वेक्षण के अकाट्य तथ्यों को विस्तार से सर्व समाज के सामने रखा गया।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में सर्व प्रथम क्रमबद्ध तरीके से भारतीय इतिहास एवं राजपूत काल खंड के बारे सर्वमान्य ऐतिहासिक पुस्तको, धर्म ग्रंथो के सन्दर्भ के साथ यह बताया गया कि क्यों वैदिक काल ,महाकाव्य काल, प्राचीन काल एवं उसके बाद राजपूत काल ,सल्तनत काल, मुगल काल, ब्रिटिश काल इसका नाम पड़ा । साथ ही यह भी बताया कि सम्राट हर्षवर्धन बैश के हर्ष चरित में क्यों सम्राट बैश ने अपने नाम के आगे ‘राजपुत्र’ उपाधि धारण की एवं उसके बाद 7वीं से लेकर 12 वी सदी के काल खंड को ही राजपुत्र(राजपूत) काल कहा गया । इसके बाद क्षत्रियों का अग्निवंश में 4 कुल चौहान, परमार, चालुक्य(सोलंकी) एवं प्रतिहार(परिहार) में से केवल प्रतिहार कुल को ही बड़गुर्जर या गुर्जर प्रतिहार क्यों कहा जाने लगा । शक, सीथियन, हूण जैसी बर्बर जातियों का भारत मे गुर्जर प्रतिहार कुल से युद्ध एवं फिर प्रतिहारो का उदय गुर्जर नरेश गुर्जराधिपति एवं गुर्जर प्रतिहार कुल के स्वर्णिम काल को राजपुत्र(राजपूत) काल ही क्यों कहा गया ? गुर्जर प्रतिहार कुल के वैवाहिक सम्बन्ध किन कुलो एवं राजवंशों में थे एवं उनके बाद उदय हुए परमार, चालुक्य, तोमर, चौहान, राष्ट्रकूट, गैहलोत,कच्छवाह, पुंडीर, यदुवंशी (भाटी, जादौन, जाडेजा) आदि का उदय एवं तोमरो का अनंगपुर से दिल्ली राजधानी के बारे में बताया गया साथ ही महाराजा अनंगपाल तोमर प्रथम (0736 ईसवी) से लेकर दिल्ली संस्थापक राजपूत महाराजा अनंगपाल तोमर द्वितीय , दिल्ली की लाट(लौह स्तंभ) , लालकोट, राय पिथौरा, चौहान कुल एवं सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय के वंश, कुल गौत्र एवं वैवाहिक सम्बन्धो के भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा जारी प्रमाण प्रस्तुत किये ।
राजपुत्रों के राज्य एवं जाट राजपूत रेजिमेंट के गौरवपूर्ण योगदान पर भी सविस्तार बताया गया । क्षत्रिय वर्ण भी है और जाति भी ठीक वैसे ही जैसे कि ब्राह्मण है। साथ ही क्षत्रियो के सरनेम दूसरी जातियों में किस प्रकार गए इस पर भी बहुत तार्किक उत्तर दिए। क्षत्रियो की वैवाहिक परम्परा, संस्कृति एवं संस्कार पर भी प्रकाश डाला गया । मात्र 5-7 वर्ष से गुज्जर जाति के कुछ लोग अचानक क्षत्रियो के प्रति इतना वैमनस्य क्यों पाल बैठे इसका भी बहुत संतुलित शब्दो मे उत्तर दिया कि ताकि ये मार्शल कोम फिर से देश एवं धर्म की रक्षार्थ एक साथ न उठ खड़ी हो । गुज्जर एवं गुर्जर शब्द पर भी प्रकाश डाला और बताया कि गुर्जर अपभ्रंश कभी गुज्जर नही यह बात स्वयं गुज्जर संगठनो ने जनजातीय आरक्षण की मांग के समय रखी थी। नाता प्रथा, झगड़ा प्रथा आदि के प्रमाण उस समय गुज्जर समुदाय द्वारा प्रस्तुत किये गए थे । साथ ही इस बात को भी बड़ी जोर देकर कहा गया कि हमारी लड़ाई गुज्जर जाति से नही है क्योंकि क्षत्रिय समाज गुज्जर जाति का सदा ऋणी रहा है आगे भी रहेगा जब हमारी रानी माताएं जौहर कर लेती थी या सती हो जाती थी हम सभी के पूर्वजो ने गुज्जरी माताओं के दुग्धपान किया है उस दूध के कर्ज के कारण हम हमारे धायभाई गुज्जर समुदाय से लड़ ही नही सकते ।
भारत सरकार द्वारा घटित “महाराजा अनंगपाल तोमर द्वितीय स्मृति समिति के सदस्य कुँ. राजेन्द्र सिंह नरुका, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र सिंह तँवर , फायर ब्रांड सामाजिक नेता करनी सेना प्रमुख सूरजपाल अम्मू, जीवा संस्थान के प्रमुख श्री ऋषिपाल चौहान , श्री नारायण सिंह शेखावत (राजकुल संस्कृति संरक्षण) श्री रोहतास सिंह चौहान, राजेश रावत(राष्ट्रीय प्रवक्ता अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा), संजीव सिंह चौहान अध्यक्ष क्षत्रिय एकता मंच, गौरव भाटी अध्यक्ष युवा राजपूताना संगठन, प्रमोद तोमर अध्यक्ष क्षत्रिय जन कल्याण समिति,वीरेंद्र गॉड राष्ट्रीय अध्यक्ष अखंड राजपूताना सेवा समिति, मूलचंद सिंह तोमर वीरांगना निकिता तोमर ट्रस्ट, कमल सिंह तवर अध्यक्ष राजपूत सभा फरीदाबाद, संजीव ठाकुर महाराणा प्रताप सेवा समितिऔर क्षत्रिय संघर्ष समिति ने सम्बोधित किया । फरीदाबाद स्थित क्षत्रिय समाज की सभी संस्थाए एवं संगठनों के प्रमुख विशेष रूप से उपस्थित थे ।