Faridabad/Alive News : स्कूल में बच्चों को मिड-डे मिल योजन के तहत दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता पर शिक्षा निदेशालय ने सवाल खड़े करते हुए मासूमों की सेहत के साथ खिलवाड़ बताया है।
शिक्षा निदेशालय के मुताबिक स्कूली बच्चों को मिड डे मिल के अंतर्गत कैसा भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है, इसकी सुध लेने वाला और भोजन की गुणवत्ता जांचने वाला कोई नही है। शिक्षा विभाग के अनुसार मासूमों को भोजन की कमी के कारण कुपोषण का शिकार ना होना पड़े, केंद्र सरकार और राज्य सरकार के सयुंक्त प्रयास से चलने वाली योजना है। लेकिन मिड-डे मिल की निगरानी करने वाले परियोजना परिषद् की लापरवाही के कारण पिछले साढ़े सात सालों से मिड-डे मिल गुणवत्ता की जांच नही हुई है। जबकि 2 सितंबर 2020 को सरकार ने निर्देश दिए थे कि माह में एक बार बच्चों को दिए जाने वाले मिड-डे मिल की जांच करवाना आवश्यक होगा। ऐसे में कयास लगाए जा रहे है कि कोरोना आपदा के बाद प्रदेश के मासूमों को, प्रदेश प्रशासन की लापरवाही का शिकार होना पड़ा।
मिली सूचना के अनुसार अब शिक्षा निदेशालय ने मिड-डे मिल की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए कुछ सुझाव दिए है। निदेशालय ने कहा है कि स्कूल की ओर से जो भी मिड-डे मिल का भोजन बच्चों को उपलब्ध करवाया जाता है। उसकी गुणवत्ता की जांच पहले बच्चों की माताओं के साथ-साथ स्कूल के मुखिया को भोजन का पहला निवाला खाना होगा ताकि भोजन की गुणवत्ता की जांच हो सके।
शिक्षा निदेशालय ने कहा कि हर तीसरे माह में उपायुक्त की अध्यक्षता वाली कमेटी जिसमें स्वास्थ्य विभाग, समाज कल्याण, नागरिक आपूर्ति और पब्लिक हेल्थ के अधिकारी शामिल हो, उनके साथ बैठक कर रिर्पोट लेनी होगी। साथ ही जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी और खंड शिक्षा अधिकारी को भी समय समय पर मिड डे मिल का औचक निरीक्षण करना होगा।
निदेशालय ने कहा कि पहले स्कूलों में बच्चों के लिए मिड-डे मिल का भोजन पहले खुले में बनाया जाता था। लेकिन अब कोरोना संक्रमण के कारण भोजन खुले में बनाना बैन कर दिया गया है। जिसके बाद से साफ सुथरे बर्तन और किचन में खाना बनाने के निर्देश दिए गए है। निदेशालय ने कहा कि कोरोना आपदा के चलते अभी बच्चों को मिड-डे मिल का कच्चा राशन ही दिया जा रहा हैं। खाना पकाने में आने वाले खर्च की राशि को बच्चों के अकाउंट में ट्रांसफर किया जा रहा है।