Chandigarh/Alive News: संविधान बनने के बाद से राजनीति के लिए आरक्षण का इस्तेमाल और मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर दिए आरक्षण को रिव्यू न करने को चुनौती देने वाली याचिका पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) से 13 अप्रैल तक जवाब मांगा है।
स्नेहांचल चैरिटेबल ट्रस्ट ने याचिका दाखिल करते हुए हाईकोर्ट को बताया था कि भारत में आजादी के बाद जब संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया, तब से लेकर अब तक राजनीति के लिए इसका इस्तेमाल किया गया है। वोट बैंक के लिए आरक्षण पाने वाली जातियों की संख्या में बढ़ोतरी कर दी जाती है, लेकिन किसी जाति को इससे बाहर नहीं किया जाता है।
याची ने कहा कि आरक्षण लागू करते हुए हर 10 वर्ष में इसे रिव्यू करने का प्रावधान रखा गया था, लेकिन यह कार्य किसी ने भी नहीं किया। हरियाणा में आरक्षण के लिए मंडल कमीशन की रिपोर्ट को 1995 में अपनाया गया और इस रिपोर्ट के आधार पर शेड्यूल ए और बी तैयार किया गया था।
इस रिपोर्ट में भी यह कहा गया था कि 20 वर्षों में पिछड़े वर्ग को दिए गए आरक्षण की समीक्षा की जाए। याची ने कहा कि इस आयोग की रिपोर्ट को 15 साल बाद 1995 में अपनाया गया था और ऐसे में 2000 में इसकी समीक्षा होनी चाहिए थी। 2017 तक 37 साल बीत गए हैं, लेकिन किसी भी स्तर पर समीक्षा का प्रयास नहीं किया गया।
हाईकोर्ट ने इसपर पूछा था कि इस बारे में किया किया जा सकता है। याची ने कहा कि नए सिरे से आंकड़े एकत्रित करते हुए यह देखा जाना चाहिए किस जाति को आरक्षण की जरूरत है और किसे नहीं। यह प्रक्रिया हर दस साल में अपनाई जानी चाहिए। याची ने उदाहरण के माध्यम से कहा कि 1951 से 71 जातियों को पिछड़ा वर्ग के तहत आरक्षण लाभ प्राप्त है और क्या अभी तक इन में से कोई एक जाति भी आगे नहीं बढ़ पाई है।
कोरोना के चलते लंबे समय से याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकी थी। याचिका पर सोमवार को सुनवाई होनी थी लेकिन वकीलों की हड़ताल के चलते कोई पेश नहीं हुआ। इस पर हाईकोर्ट ने सुनवाई 13 अप्रैल तक टालते हुए एनसीबीसी और हरियाणा सरकार से जवाब मांगा है।