हम उपरोक्त शीर्षक वाले आलेख के पहले प्रकरण में लिख चुके हैं कि आर.एस.एस. ने एम.एस. गोलवालकर को 20 वीं सदी का भारत माता का योग्य सपूत और हिन्दू समाज के लिए उत्कृष्ट उपहार के रूप में माना है। वहीं हम अपने पाठकों को यह भी बताना चाहते हैं कि ‘गोलवाकर का हिन्दू राष्ट्र व राष्ट्रीयता शीर्षक को लेकर हम श्रृखंला बद्ध आलेखों की दूसरी कड़ी में कुछ महत्वपूर्ण व अपने पाठको की जानकारी के लिए आवश्यक -उपयोगी घटकों व तत्वों के अलावा रामधारी सिंह दिनकर, डॉ. राधा कृष्णन व योगी हरि एंव अन्य विद्वानों के, इतिहास, राष्ट्र, – समाज, संस्कृति, परंपरा, भारत में आने वाली प्रजातियों का इतिहास व समस्यों से जुड़े विचारों का भी तुलनात्मक अध्ययन के साथ उल्लेख करना चाहेंगे। जबकि एम.एस. गोलवालकर द्वारा लिखित जिस पुस्तक का उल्लेख हम नियमित रूप से कर रहे हैं या आगे करेंगे वह अंग्रेज़ी में लिखी हुई है। जिसका शीर्षक नीचे लिखा है।
GOLWALKAR’S, WE OR OUR NATIONHOOD DEFINED ( 3rd Revised Edition). A Critique by SHAMSUL ISLAM.
हिन्दूओं के अवबोधक व हिन्दू चेतना के सूर्य गोलवालकर अपनी उपरोक्त पुस्तक में आर्यन को हिन्दू और भारत को हिन्दूस्थान मानते हैं।
डिफेंस ऑफ रेसइज़म अध्याय में वे लिखते हैं कि हिन्दू राष्ट्रीयता का सबसे महत्वपूर्ण तत्व जाति या जाति- भावना है। जिसे उन्होंने, हमारे धर्म का लाल (बच्चा)कह कर वर्णित किया है। वहीं उनकी धारणा अनुसार :
हिन्दुस्थान के अस्तित्व के लिए प्राचीन हिन्दू राष्ट्र दूसरा कुछ नहीं केवल हिन्दू राष्ट्र ही अपेक्षित है। वे सभी नागरिक कहें या राजवंशी इस दायरे से बाहर होने चाहिए जिनका हिन्दू जाति, धर्म, संस्कृति और भाष से संबंध नहीं है।
लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि हिन्दूओं की भारत में प्राचीनता से उनका क्या अभिप्राय: है?
इसकी भी चर्चा हम आगे करेंगे। लेकिन उससे पूर्व हमें समझना होगा कि भारत में शुरूआती दौर में आकर बसने वाली अन्य जातियां कौन-कौन सी हैं? गोलवालकर राष्ट्र व राष्ट्रीयता के लिए जिन घटको को अनिवार्य मानते हैं उनमें जाति, भाषा, धर्म, देश, और संस्कृति हैं। वहीं उनका मानना यह भी है कि सच्चे राष्ट्र-आंदोलन वहीं हैं जिनका उद्देश्य राष्ट्र का पुन:निर्माण व पुर्नोत्थान हो और उनका यहां यह भी कहना है कि, वे नागरिक जो वर्तमान में इन सब से बेखबर है या कहें कि अर्धचेतन अवस्था में हैं उन्हें इस अवस्था से बाहर लाना भी महत्वपूर्ण दायित्व है। गोलवालकर कहते हैं कि केवल वे ही राष्ट्रवादी व देश भक्त हैं जो हिन्दू जाति को गौरवान्वित करने के लिए अभिलाषित हों और राष्ट्र के प्रति प्रेम व उनके दिलों में सम्पर्ण समाया हो साथ ही वे ऐसी गतिविधियों में तत्पर हों और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में प्रयासरत रहते हों। अन्य सभी या तो देशद्रोही या राष्ट्र प्ररेणा से विमुख देश के दुश्मन हैं, अगर उन्हें उदार पूर्ण विचार से कहें तो वे मूर्ख हैं।
Now our readers should understand that what Mr. Golwalkar said about the true Nationalist and his opinion about all others? Second Chapter viz.
[sic] DEFENCE OF RACISM
The most important element of Golwalkar’s Hindu nationality happen to be race or race spirit which he went on to describe as ‘ a child of our Religion.’ According to his perception, In Hindusthan exists and must needs [sic] exist the ancient Hindu nation and nought else but the Hindu Nation. All those not belonging to the national i.e. Hindu Race, Religion, Culture and language, naturally fall out of the pale of real ‘National’ life.
We repeat: in Hindusthan,the land of the Hindus, lives and should live the Hindu Nation- satisfying all the five essential requirements of the scientific nation concept of the modern world. Consequently only those movements are truly ‘National’ as aim at re-building , re-vitalizing and emancipating from its present stupor the Hindu Nation [sic].
Those only are nationalist patriots, who, with the aspiration to glorify the Hindu race and nation next to their heart, are prompted into activity and strive to achieve that goal. All others are either traitors and enemies to the national cause, or, to take a charitable view, idiots.
वहीं पुस्तक में आगे लिखा है: निसंदेह गोलवालकर की उपरोक्त परिभाषा वीर सावरकर के हिन्दू राष्ट्र के मॉडल पर आधारित है। जिसमें पूर्णत: इस दावे को अस्वीकार किया गया है कि मुस्लिम, इसाई या फिर अन्य अल्प संख्यक हिन्दू राष्ट्र का हिस्सा हैं।
यह सच है कि गोलवालकर अनुसार हिन्दू जाति में होने के लिए उपरोक्त पांच अनिवार्य घटकों को होना ज़रूरी है। लेकिन क्या हिन्दू अवबोधक ने कहीं हिन्दू दर्शन का भी उल्लेख किया है? यह बात हम जैसे-जैसे उनकी उक्त पुस्तक का अध्ययन करते जायेंगे उसके बाद हम अपने पाठकों से जानकारी साझा कर पायेंगे।
अब जानेंगे कि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी पुस्तक संस्कृति के, ‘चार अध्याय में भारतीय समाज की रचना में क्या मुख्य बातें कहीं हैं? और वे गोलवालकर की हिन्दू-राष्ट्र की थेयरी से कितना मेल खाती हैं? दिनकर की पुस्तक में भारतीय जनता की रचना को एक सवाल का उल्लेख मिलता है कि क्या आदमी पहले-पहले भारत में पैदा हुआ था? हालांकि एक उदाहरण देकर यह बताया गया है कि सन् 1935 में गुजरात के बड़ोदा के वादनगर स्थान में लघु मानव का एक तीस इंच लंब कंकाल मिला था, जिसे वैज्ञानिकों आदि नीग्रो का कंकाल समझते हैं।
वहीं दिनकर आगे उल्लेख करते हैं : जिन्होंने इस देश को अपना देश मान लिया और जिनका एक-एक सदस्य यहां की संस्कृति और समाज में भलीभांति पच-खप कर आर्य या हिन्दू हो गया, उनमें : नीेग्रो , औष्ट्रिक, द्रविड़, आर्य, यूनानी, यूची, शक, हूण, मंगोल और मुस्लिम-आक्रमण के पूर्व आने वाले तुर्क हैं। इन सभी जातियों के लोगों अलग-अलग झुंडों में आये और हिन्दू समाज में दाखिल हो इसी का अंग बन गये।
क्रमश:
(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं)