November 17, 2024

हमारा दर्द क्या जाने समाज के ठेकेदार…

Poonam Chauhan/Alive News
Faridabad : कुछ महिलाएं काल से होड़ लेती दिखाई देती है, इनके चेहरे की झुरियां और इनकी तकलीफ कभी इनके इरादों के बीच नहीं आएं। इन्हे कभी अपनों ने दर्द दिया, तो कभी समाज के दिए जख्म ने उनके घावो को कुरेदने का काम किया है। मगर, असहनीय पीड़ा को भी मुस्कुरा कर सह लेने वाली इन महिलाओं को कभी भी इस बात का पता नहीं चल सका कि इनके लिए कोई दिन विशेष भी है। वैसे भी रोज कमाने खाने वाली इन महिलाओं ने कभी भी पुरस्कार की अपेक्षा की ही नहीं, न कभी सम्मान की।

पुरानी कहावत है कि विशेष दिन कुछ विशेष लोगों के लिए ही बनाया गए है। मसलन, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर जो मंच सजाया जाता है वो क्या सिर्फ नाम के लिए है। समाज में महिलाओं के सम्मान और उनके सामाजिक हक का ठेका लेने वाले तथाकथित सामाजिक ठेकेदारो को निश्चित तौर पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन ऐसी महिलाओं का ख्याल नहीं आता जिसने जीवन भर मछली बेचकर, सब्जी बेचकर या फिर रोज मजदूरी के दम पर अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने की कोशिश की है। मंच पर रंगे-पूते और नामचीन चहरों का सम्मान दशको से होता आया है आगे भी होगा, वैसे भी इन महिलाओं को फर्क इसलिए भी नहीं पड़ता क्योंकि इन्हे मालूम ही नहीं है कि विश्व में महिलाओं के सम्मान के लिए कोई दिन विशष भी तय है।

– भूख ने सिखाया बिजनेस


सनोवर डबुआ मण्डी में पिछले 20 वर्षो से सब्जी बेच रही है, उनका कहना है कि भूख इंसान को बिजनेस करना सीखा देती है, उन्होंने भी सब्जी बेचनी सीखी और आज अपना घर चला रही है। उनका धंधा अच्छा नहीं चलता है जिससे उनके बच्चे पढ़ नहीं पाते है और उनके साथ ही सब्जी बेचते है। वहीं एक छोटी बच्ची पढऩे-लिखने की उम्र में मच्छली बेचती हुई दिखी। उसने नाम न छापने की एवज में बताया कि उसके पापा शराब पीते है जिससे उसे मच्छली बेचनी पड़ती है और मजबूरी में गुजारा करना पड़ रहा है।

– पसीना बहाकर मिलती है रोटी


३० वर्षीय राजकुमारी पिछले ६ सालों से बेलदारी कर रही है, उनके घर का चुल्हा उनके दम पर चल रहा है, वो भी पूरा नहीं पड़ता है। गरीबी से परेशान है लेकिन फिर भी अपने बच्चों को दो जून की रोटी खिला रही है। वहीं बेलदार संजू कहती हैं कि अनपढ़ और गरीबी के कारण उन्हे मजबूरी में पिछले 3 सालों से बेलदारी का काम करना रही हैं और अपना घर चला रहीं है। उन्होंने कहा कि महिलाओं का दिन तो बड़े लोगों के शौख है भूखा क्या कोई दिन मनाएगा।

– हाथों का हुनर दिखा, भरता है पेट


कुम्हार का काम करने वाली सौमलता और मंजु ने बताया कि पिछले 20 से 22 सालों से मिट्टी के बर्तन बनाकर परिवार का पेट भर रहीं है। दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद भी उन्हे उतना मेहनताना नहीं मिल पाता है जिससे उनका गुजर हो सके। उन्हे भी महिलाओं के विशेष दिन की कोई जानकारी नहीं है न ही इसे जानना चाहती है। उन्होंने सरकार से अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि सरकार को कुम्हारों के लिए भी आरक्षण और पेंशन जैसी सुविधा मुहैया करानी चाहिए जिससे की हम और हमारे बच्चे भूखे पेट न सोए।