Faridabad/Alive News : एक तरफ जहां बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई करवाना अभिभावकों की मजबूरी बनी हुई है। वहीं स्कूलों की ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों को उनके परिवार से दूर करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। बच्चों को गेम्स की ऐसी लत लग गई है कि मौका पाते ही बच्चे मोबाइल से चिपक जाते हैं। बीके अस्पताल के कमरा नंबर-23 में हर महीने करीब 350 परिजन अपने बच्चों का उपचार करवाने के लिए आ रहे हैं, जिसमें से ज्यादातर परिजनों का कहना है कि उनके बच्चे घर पर होते हुए भी दूर हो रहे हैं। वह न तो उनके साथ कोई परेशानी को साझा करते हैं और न ही उन्हें अपनी खुशी में शामिल करते हैं। इन सभी बातेें को लेकर उनके परिजन काफी परेशान हैं।
मिली जानकारी के अनुसार बीके अस्पताल के ओपीडी में हर महीने करीब 350 बच्चे उपचार के लिए जाते हैं। उन्होंने बताया कि पहले उनकी ओपीडी में जो बच्चे आते थे। उनको पढ़ने लिखने में परेशानी होती थी लेकिन, अब उनकी ओपीडी में बच्चों के परिजनों के द्वारा एक ही बीमारी बताई जाती है कि उनका बच्चा अब घर पर होकर भी अकेले रहना पसंद करता है। बच्चों को अपने दोस्तों के साथ बात करना व घूमना बिल्कुल भी पसंद नहीं है। बच्चे अधिकतर फोन व इंटरनेट पर समय बिताना पसंद करते हैं। परिजनों ने उनको बताया कि महामारी के दौर में उनके बच्चों को पढ़ाई के लिए फोन के माध्यम से ऑनलाइन क्लास लेनी पड़ती थी लेकिन, क्लास खत्म होने के बाद भी फोन पर ही ज्यादा समय व्यतीत करते हैं।
बता दें, कि लॉकडाउन होने की वजह से नौकरीपेशा लोगों ने वर्क फ्रॉम होम करना शुरू कर दिया है। नौकरीपेशा लोग भी घर पर अपने परिवार के साथ रहने के बाद भी अपने ही परिवार को समय नहीं दे पा रहे। अगर किसी परिवार में पति पत्नी दोनों नौकरी पेशा हैं, तो महामारी के दौर में वह बच्चों पर ध्यान नहीं दे पा रहे थे। जिसकी वजह से बच्चों में जो मम्मी पापा के लिए प्यार था वह खत्म होता चला गया। बच्चों में इस समय नकारात्मक सोच और गुस्सा बहुत ज्यादा आने लगा है। उन्होंने बताया कि उनकी ओपीडी में इस बीमारी को लेकर जो भी परिजन आ रहे हैं उनको सिर्फ यही कहा जा रहा है कि वह अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय दें। साथ ही उनको छुट्टी के दिनों पर परिवार के साथ बाहर घूमाने के लिए लेकर जाएं। वहीं बच्चों की भी काउंसिलिंग की जाती है।
परिजनों की भी काउंसिलिंग
महामारी के दौर में विद्यार्थी के द्वारा ऑनलाइन क्लास ली जा रही थी। जिसकी वजह से स्कूल में पढ़ाई करने वाले बच्चों के सिर में दर्द, डिप्रेशन व नकारात्मक सोच अधिक पनपी हैं। 40 प्रतिशत बच्चों में स्कूल में पढ़ाई करने वाले छात्र शामिल हैं।