-आईवीएफ तकनीक कैसे है कारगर
-अब आईवीएफ की मदद से बन सकते हैं माता पिता, डॉक्टर ने बताया इलाज
-आईवीएफ से माता पिता बनना चाहते हैं तो रखने इन बातों का ध्यान
-आजकल महिलाओं को गर्भधारण करने में क्यों आ रही है परेशानी
Faridabad/Alive News: खानपान और खराब जीवनशैली के कारण वर्तमान में महिलाओं को गर्भधारण करने में परेशानी हो रही है। अनदेखी और लापरवाही के कारण गर्भाशय से संबंधित कई बीमारियों का शिकार हो रही हैं। कई महिलाएं गर्भधारण भी नहीं कर पा रही हैं। ऐसे में महिलाएं आईवीएफ ( इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) की मदद से मां बन सकती हैं।
केएमसी हार्ट एंड मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अफशा खान ने बताया कि आईवीएफ की मदद से महिलाएं मां बनने का सुख प्राप्त कर सकती हैं। आईवीएफ एक प्रजनन तकनीक है, जिसमें अंडे और शुक्राणु को प्रयोगशाला में मिलाकर गर्भधारण किया जाता है। आईवीएफ की मदद से कई दंपती माता-पिता बने हैं। आईवीएफ पीरियड शुरू करने से लेकर प्रेगनेंसी टेस्ट के पॉजिटिव आने तक में करीब 6 हफ्ते का समय लग सकता है। इसके बाद भ्रूण कोख में विकास के हिसाब से प्रेगनेंसी का टाइम आगे बढ़ती जाती है।
आईवीएफ से पहले महिला व पुरुष इन बातों का रखें ध्यान
आईवीएफ की सफलता महिला पर अधिक निर्भर करती है। महिलाओं की प्रजनन क्षमता 32 वर्ष के बाद कम होने लगती है। वहीं 35 के बाद तेजी से गिरावट देखी जाती है। उम्र बढ़ने के कारण गुणवत्ता और मात्रा कम हो जाती है। ऐसे में गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है और साथ ही बच्चे में जन्मजात विसंगतियां भी होती हैं। 30 वर्ष से कम आयु की महिलाओं के लिए, आईवीएफ की सफलता दर 60 प्रतिशत से अधिक है। वहीं 35 वर्ष से अधिक की महिलाओं के लिए, सफलता दर 50 प्रतिशत है।
इसके अलावा अधिक वजन वाली और मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में आईवीएफ उपचार प्रक्रिया के दौरान स्टिमुलेशन के प्रति खराब प्रतिक्रिया होती है। मोटापे के कारण निषेचन दर कम हो सकती है और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। मोटापा शराब , धूम्रपान और जंक फूड के कारण बढ़ता है। आईवीएफ कराने वाली महिलाओं को वजन कम करना चाहिए। वजन घटाने से आईवीएफ परिणाम को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।
इसके अलावा आईवीएफ के सकारात्मक परिणाम के लिए अंडाणु और शुक्राणु की गुणवत्ता तथा अंडे व शुक्राणु के संलयन से बनने वाले भ्रूण की गुणवत्ता भी बहुत महत्वपूर्ण है। 35 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं या आनुवंशिक विकारों वाले दम्पति के मामले में पीजीटी (प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग) जैसी तकनीकों के उपयोग से स्थानांतरण के लिए भ्रूण का चयन किया जा सकता है। इससे गर्भपात का खतरा कम हो जाता है।