New Delhi/Alive News : साल 2012 से 2014 के बीच नाबालिगों द्वारा किए गए बलात्कार के मामलों में 70 प्रतिशत का इजाफा हुआ। वहीं छेड़छाड़ और अन्य अपराध 160 प्रतिशत की गति से बढ़ गए। हम 21वीं सदी में पहुंच गए हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि महिलाओं के लिए समय थम सा गया है। समानता के मामले में महिलाएं पुरुषों से कही पीछे नजर आती हैं। समय के साथ महिलाओं पर होने वाले अपराधों में कमी आनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। देश में महिलाओं पर होने वाले अपराधों में लगातार इजाफा होता जा रहा है। महिलाएं घर से लेकर ऑफिस तक यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं। वे ज्यादा भीड़ भरी बस में चढ़ने से कतराती हैं। देर रात घर से बाहर रहने से उन्हें डर लगता है। किसी सुनसान, अंधेरे रास्ते से गुजरने पर सहम जाती हैं। आज महिलाएं खुद को हर जगह असुरक्षित महसूस करती हैं। इन समस्याओं के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? सच कड़वा है, क्योंकि इसके लिए हमारा समाज ही दोषी है। आज नाबालिगों द्वारा महिलाओं पर किए जाने वाले अपराधों में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जो चिंता का विषय है।
बच्चे देश का भविष्य होते हैं और उन्हीं के कंधों पर आर्थिक और सामाजिक विकास की जिम्मेदारी होती है। लेकिन जब नाबालिग(जुवेनाइल) ही महिलाओं का सम्मान नहीं करेंगे, तो एक सभ्य समाज की कल्पना कैसे की जा सकती है? साल 2012 में 1175 महिलाएं नाबालिगों द्वारा बलात्कार का शिकार हुईं। साल 2013 में ये संख्या 1884 हो गई और 2014 में 1989 पहुंच गई। अपराध के आंकड़ों से जाहिर होता है कि नाबालिगों के मन में महिलाओं के प्रति बराबरी या सम्मान की भावना खत्म होती जा रही है। इसी के परिणामस्वरूप नाबालिगों द्वारा महिलाओं पर किए जाने वाले जघन्य अपराधों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।
नाबालिगों द्वारा किए जा रहे अपराधों के मद्देनजर तात्कालिक सरकार को ‘जुवेनाइल’ की परिभाषा भी बदलनी पड़ी। अब इन अपराधों में शामिल 16 से 18 साल के नाबालिगों को भी बालिगों वाली सजा का प्रावधान है। लेकिन इसके बावजूद अपराध की संख्या में कोई गिरावट नहीं हुई है। अगर इस समस्या पर काबू पाना है, तो हमें बच्चों को छोटी उम्र से ही ‘जेंडर सेंसिटाइजेशन’ का पाठ पढ़ाना होगा। हमें समझाना होगा कि लड़कियों को भी लड़कों के समान अधिकार प्राप्त हैं, इसलिए दोनों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए।
हम सब चाहते हैं कि समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार हो, उनके साथ कहीं भी लैंगिक भेदभाव न हो। महिलाएं हर जगह खुद को सुरक्षित महसूस करें। वे अपनी मर्जी से जिंदगी का आनंद उठा सकें। समाज में उन्हें बराबरी का हक मिले। उन्हें लैंगिक भेदभाव का शिकार ना बनाया जाए। इसके लिए एक ऐसे समाज का निर्माण करने की जरूरत है, जहां लड़कों और लड़कियों में कोई भेदभाव ना किया जाए। इसकी शुरुआत हमें अपने घर से ही करनी होगी। हमें अपने घर और आसपास की महिलाओं के साथ समान व्यवहार करना होगा। उन्हें हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। पढ़ाई के साथ-साथ खेल-कूद में भी उन्हें पर्याप्त अवसर प्रदान करने होंगे। ऐसे में लड़कियों के आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होगी। साथ ही लड़कियां समाज में खुद को सुरक्षित महसूस कर पाएंगी।
टाटा टी ने अपने अभियान ‘अलार्म बजने से पहले जागो रे’ के जरिए एक ऐसे ही समाज को बनाने की मुहिम छेड़ी है। इस अभियान के दूसरे पड़ाव में अब लोगों से एक पेटिशन साइन करने की अपील की जा रही है, जिसमें स्कूलों में ‘जेंडर सेंसिटाइजेशन’ को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाने की मांग की गई है।
बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते हैं। इन्हें जैसा ढाला जाता है, वैसे ही ढल जाते हैं। अगर बचपन से इन्हें कोई बात सिखाई जाए, तो उनके मन में गहराई तक बैठ जाती है। इसलिए अगर बच्चों को स्कूल से ही यह पाठ पढ़ाया जाए कि लड़कियां कमजोर नहीं होती है, वे भी हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लड़कों को हमेशा लड़कियों को अपने बराबर समझना चाहिए, तो आने वाले कल में यकीनन बदलाव देखने को मिलेगा। अगर आप महिलाओं को असल में बराबर समझते हैं और उन्हें सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो टाटा के जागो रे अभियान से जुडि़ए। इस अभियान के तहत एक याचिका के जरिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जेंडर सेंसिटाइजेशन प्रोग्राम को हर स्कूल में अनिवार्य बनाने की अपील करें। आपकी एक छोटी-सी याचिका सामाजिक और विधायी परिवर्तन के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बन सकती है।
अगर आप भी बदलाव के पक्षधर हैं, तो ये याचिका आपकी आवाज बन सकती है। इस याचिका पर आपका हस्ताक्षर एक सामाजिक कार्य होगा जो इस आंदोलन के अगले संभव पड़ाव में मदद करेगा। इस जागरूकता अभियान में शामिल होकर आप देश की आधी आबादी को उनका पूरा हक दिलाने की राह में एक कदम बढ़ा सकते हैं।