Faridabad/Alive News : भूपानी स्थित सतयुग की पहचान व स्वाभिमान का प्रतीक यह ध्यान कक्ष हरियाणा का प्रमुख पर्यटक स्थल और स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण तो है ही, साथ ही यहां से सतयुगी नैतिकता के अनुरूप, समाज के हर वर्ग के चारित्रिक व नैतिक उत्थान का भी भरसक यत्न किया जा रहा है। इसलिए यहां पर दिन में जिस समय जाओ बहुत भीड़ मिलती है। इसी संदर्भ में आज भी वहां पर हमें आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों, खास तौर पर नई भूपानि के काफी परिवार मिलें।
बातचीत करने पर पता चला कि उन्हें आज यहां यह बताया गया कि हर मानव के लिए अपने यथार्थ स्वरूप में बने रहने हेतु, समभाव-समदृष्टि की युक्ति के व्यवहारिक रूप को समझना आवश्यक है। अत: बाल-अवस्था के मनगढ़ंत स्वार्थपर भक्ति-भावों को छोड़, सब इस कुदरत प्रदत्त युवावस्था के भक्ति भाव को एकरस अपनाओ व शारीरिक, मानसिक व आत्मिक रूप से ताकतवर हो, उसे प्राप्त कर धन्य-धन्य हो जाओ।
इस संदर्भ में शत-प्रतिशत कामयाब होने हेतु अविलमब भौतिक व्यवस्था से नैतिक व्यवस्था को उच्चतर मानते हुए, उसी के अनुसार आचार-व्यवहार अपनाना सुनिश्चित कर, अपने मूल स्वाभाविक गुण/धर्म पर स्थिरता से खड़े हो जाओ। जानो इस सनातन तत्त्व को धारण करने व इस मायावी जगत में विचरते समय उस पर सुदृढ़ता से स्थिर बने रहने पर ही, आत्मा और परमात्मा की शाश्वतता का अनुभव हो सकेगा और आप शाश्वत मूल्यों में विश्वास रखते हुए एक सदाचारी इंसान की तरह पुण्य कर्म करते हुए परोपकारी नाम कह सकोगे। यही नहीं ऐसा सुनिश्चित करने पर ही आप मानव जीवन के नियम, विधि, लोक नीति आदि का भली-भांति पालन करते हुए न्यायसंगत जीवन जीने के योग्य बन अपने जीवन के साथ सही मायने में न्याय कर सकोगे।
आगे उन्हें कहा गया कि मानो कि यह अपने आप में एक मानव के लिए कुदरती वेद-शास्त्रों में विदित शब्द ब्रह्म विचारों के अनुसार जीवन शैली अपना कर, आत्मस्वरूप में स्थित रहते हुए, नित्यता के भाव से निर्भयतापूर्ण निष्पाप जीवन जीने की यानि जीवन के वास्तविक आनन्द का अनुभव करने की महत्वपूर्ण बात है। तभी आप सत-वादी बन अहिंसा के पुजारी बन पाओगे और क्षमाशीलता के भाव को अपने स्वभाव के अंतर्गत कर हृदय में सजन भाव उजागर कर पाओगे। इस तरह स्वत: ही समभाव आपकी नजरों में हो जाएगा और आप समदर्शिता अनुरूप परस्पर सजन-भाव का व्यवहार करते हुए, जीवन के उन्नति पथ पर निष्कंटक आगे बढ़ पाओगे और अंत में अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त कर अपना अनमोल मानव जीवन सफल बना लोगे।
इसी के साथ उन्हें यह भी कहा कि समय के आवाहन को समझो जो युग परिवर्तन की कगार पर खड़ा है यानि कुदरत के नियमानुसार अब कलुकाल हटने को तैयार खड़ा है व शीघ्र ही सतयुग के सुनहरे काल का आगमन होने जा रहा है। अत: अविलमब जाग्रति में आ व सब अन्य मनगढंत भाव-स्वभाव छोड़, समभाव अपना सत-वादी बन जाओ। इस हेतु असत्य को छोड़ सत्य को धारण कर लो यानि सच बोलचाल, खान-पीन व सच का ही सौदा करो यानि सच ज़बान, सच हृदय व दोनों नयनों से सच्चाई विशाल झलकें। तभी हृदय सचखंड हो पाएगा और आप समभाव से सर्वव्याप्त भगवान का दर्शन कर समदृष्टि हो जाओगे और अपने जीवन को अखंड यश-कीर्ति की प्राप्ति का भागी बना पाओगे। अंत में उन्हें समझाया गया कि आज के दौर में यह शुभ कार्य भौतिक विकास के लिए किए जाने वाले समस्त अन्य प्रयत्नों से अधिक प्राथमिकता की अपेक्षा रखता है और ऐसा सुनिश्चित करने पर ही भौतिक विकास भी अर्थपूर्ण सिद्ध हो सकता है।