New Delhi/Alive News : अपनों की मौत का दुख लगभग हर कोई समझता है। हर कोई इसको झेलता भी है, लेकिन हम सभी में वो हौसला नहीं होता जो मेजर कुमुद डोगरा में दिखाई देता है। मेजर कुमुद डोगरा का नाम शायद आपके लिए जाना-पहचाना न हो, या शायद आपकी आंखों के आगे से ये नाम कभी निकला हो। बहुत मुमकिन है कि आपने इस पर ध्यान भी न दिया हो। लेकिन यदि ऐसा है तो यह आपकी बड़ी चूक है। चूक इसलिए क्योंकि आपके और हमारे लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर ये मेजर डोगरा है कौन और इनका जिक्र यहां पर क्यों किया जा रहा है।
आपको नहीं पता है तो चलिए हम आपको बता देते हैं। दरअसल, कुमुद भारतीय सेना में मेजर हैं। उनके पति डी वत्स इंडियन एयरफोर्स में विंग कमांडर थे। 15 फरवरी को असम के मजोली में उनका माइक्रोलाइट हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था, जिसमें उनकी मौत हो गई थी। यह कुमुद के लिए बहुत बुरी खबर थी। इससे भी बुरी खबर उस बच्ची के लिए थी जो अपने पिता की गोद का साया पाने से महरूम रह गया थी। आपको जानकर दुख होगा कि जिस वक्त वत्स की हादसे में मौत हुई उस वक्त उनका बेटी महज चार दिन की थी।
हमारे अंदर वो हौसला शायद न हो जिसका जिक्र हम आगे करने वाले हैं। कुमुद के लिए पति का जाना किसी गहरे सदमे से कम नहीं था लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वह जानती थीं कि एक फौजी को किस तरह से विदा किया जाता है और एक फौजी को इस दौरान कैसा बर्ताव करना चाहिए। वह अपने पति के अंतिम रस्म निभाने के लिए खुद पूरी फौजी वर्दी में अपने पांच दिन की बेटी को हाथ में लिए अपने पति को अंतिम विदाई देने पहुंची थीं। इस दौरान उनके साथ उनके करीबी भी मौजूद थे।
सोशल मीडिया पर उनकी वह फोटो काफी वायरल हो रही है जिसमें वह अपने बच्चे को गोद में उठाए आगे बढ़ रही हैं। उनकी इस फोटो पर अब तक कई लोग कमेंट्स कर चुके हैं। सभी लोग उन्हें और उनके जज्बे को सलाम कर रहे हैं। इनमें से कई ने लिखा है कि यह बेहद मुश्किल घड़ी है न सिर्फ कुमुद के लिए बल्कि उनकी पांच दिन की बेटी के लिए भी जो अब कभी अपने पापा से नहीं मिल सकेगी। सोशल मीडिया पर कुमुद की पांच दिन की बेटी के लिए ढेरों प्यार भरे मैसेज भी आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक फोटो में कुमुद अपनी नवजात बच्ची के साथ मुस्कुराती भी दिखाई दे रही हैं।
ऐसी ही एक तस्वीर पिछले दिनों भी सामने आई थी जब सुंज्वां में आर्मी कैंप पर हुए हमले में शहीद जेसीओ मदनलाल चौधरी को आखिरी विदाई दी गई थी। इस दौरान उनका बेटा लेफ्टिनेंट अंकुश चौधरी वहां पर फौजी वर्दी उन्हें सलामी देने पहुंचे थे। अंकुश एक जेंटलमैन कैडेट (जीसी) हैं। वह सिंकदराबाद स्थित मिलिट्री कॉलेज ऑफ इलेक्ट्रिॉनिक एंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग से पढ़ाई कर रहे हैं।
वर्ष 2015 में पुलवामा जिले के त्राल में हिज्बुल मुजाहिदीन के साथ हुई मुठभेड़ में शहीद हुए कर्नल एमएन राय के अंतिम संस्कार पर भी कुछ ऐसा ही दिखाई दिया था, जब उनकी 11 वर्षीय बेटी ने उन्हें अंतिम श्रद्धासुमन अर्पित किए थे।
उस वक्त सभी की आंखें नम थी। कर्नल राय की बेटी अलका ने अपने पिता पर फूल अर्पित करते हुए वहां मौजूद सभी अधिकारियों के समक्ष कड़े स्वर में इस रेजिमेंट का मूल मंत्र बोला था। जिसका वहां मौजूद सभी अधिकारियों ने पूरी जांबाजी के साथ जवाब भी दिया था। कर्नल राय गोरखा राइफल्स के थे और 42 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर थे। 42 राष्ट्रीय राइफल्स के कर्नल मुनींद्र नाथ राय को कुछ ही दिन पहले सैन्य पदक से सम्मानित किया गया था।
इस तरह का कोई एक वाकया नहीं है बल्कि कई हैं। 17 नवंबर 2015 को भी भारतीय सेना ने कर्नल संतोष महाडि़क के रूप में एक और जांबाज को खोया था। जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान वह शहीद हुए थे। इस बात से बेखौफ की फौजी की जिंदगी किस तरह से मुश्किल हालातों में गुजरती है उनकी पत्नी ने उसी राह पर चलने में कोई देर नहीं लगाई।
उनकी पत्नी स्वाति ने सर्विस सिलेक्शन बोर्ड की परीक्षा पास करने के बाद चेन्नई में ट्रेनिंग ली। आज वह पुणे के आर्मी ऑर्डिनेंस कॉर्प में लैफ्टिनेंट के पद पर तैनात हैं। शहीद कर्नल संतोष महाडि़क महाराष्ट्र के सतारा जिले के पोगरवाड़ी के रहने वाले थे। वह 41 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग अफसर थे। अपनी वीरता के लिए उन्हें सेवा मैडल से सम्मानित किया गया था। सरकार ने 26 जनवरी को उन्हें मरणोपरांत शौर्य पुरस्कार से सम्मानित किया था।